भारतीय वेशभूषा की परंपरा में बांधनी और लहरिया का चलन तेजी से आगे बढ़ा है। राजस्थान की सभ्यता की पहचान बांधनी और लहरिया ने फैशन के दुनिया में अपने सतरंगी रंग को सदाबहार फैशन से भरा हुआ है। यह कहने में कोई गुरेज नहीं है कि राजस्थान के लहरिया और बंधेज प्रिंट के दुपट्टे और साड़ियां देश-विदेश में काफी पसंद किए जाते हैं। इस प्रिंट के न केवल दुपट्टा बल्कि शर्ट और बैग्स, ज्वेलरी तक बनाई जाती है। आप यह भी कह सकती हैं कि बांधनी का फैशन कभी-भी आउटडेटेड नहीं होता है। आइए विस्तार से जानते है कि बांधनी और लहरिया के साथ कैसे सदियों पुरानी फैशन की परंपरा का नाता रहता है।
पुरानी रंगाई परंपरा
बंधनी को बंधेज नाम से भी जाना जाता है। यह एक पारंपरिक भारतीय टाई-डाई तकनीक है। बंधनी संस्कृति के शब्द बांदा से आया है। जिसका मतलब होता है बांधना। भारतीय परंपरा के अनुसार 5 हजार साल पहले भारतीय राज्य गुजरात में हुआ था। इसे खत्री समुदाय के जरिए भारत में लाया गया था, जो सिंध में आए थे। बंधनी का उपयोग शाही दरबारों में अमीर परिवारों के लिए कपड़ा बनाने के लिए किया जाता है। गुजरात की बंधनी ने वर्तमान में राजस्थान, सिंध और पंजाब क्षेत्र के साथ तमिलनाडु में अपने फैशन स्टेटमेंट के लिए लोकप्रिय है।
17 वीं शताब्दी से फैशन में
वहीं लहरिया की बात करें, तो राजस्थान में बने रेत के टीलों पर हवा से लहर बन जाते हैं। ऐसा माना गया है कि लहरिया प्रिंट इसी से प्रेरित है। लहरिया में कई सारे रंगों का समावेश होता है। अगर बात बांधनी की करें, तो इसमें घारचोला प्रिंट, बांधनी सिल्क, शुद्ध बांधनी कॅाटन, शिकारी बंधेज का इतिहास 17 वीं शताब्दी से फैशन में बना हुआ है।
क्या है लहरिया और बांधनी प्रिंट की कहानी
यह जान लें कि बंधनी और लहरिया प्रिंट भारतीय कपड़ा कला की समृद्ध और जीवंत परंपरा का प्रतिनिधित्तव करते हैं। साथ ही बंधनी और लहरिया अक्सर उपयोग कई तरह के कपड़ों को आकर्षित बनाने के लिए किया जाता है। खासतौर पर सांस्कृति और धार्मिक कार्यक्रमों में, जैसे- नवरात्रि जैसे कई बड़े समारोह और उत्सव में अपनी जगह कायम करते हुए बंधनी भारतीय फैशन में अपनी गौरवगाथा लिखता है।
राजस्थान के थार रेगिस्तान से प्रेरित
लहरिया प्रिंट की बात की जाए, तो यह राजस्थान के थार रेगिस्तान से प्रेरित है। बांधनी और लहरिया का फैशन न केवल साड़ियों में दिखाई देता है। वहीं होम डेकोर से लेकर ज्वेलरी और बैग मं ंभी लहरिया और बांधनी का फैशन लगाार दिखाई देता रहा है। आप यर भी कह सकती हैं कि बंधनी एक सुंदर और बहुमुखी कला है, जो कि भारतीय संस्कृति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। बांधनी और लहरिया अपने जटिल डिजाइन और जीवित रंगों से समृद्ध सांस्कृतिक को प्रस्तुत करती है।
क्या कहता है इतिहास
बांधनी जहां गुजरात की कला की पहचान है,वहीं लहरिया पांरपरिक टाई- एंड-डाई तकनीक है। खासतौर पर मानसून के समय लहरिया प्रिंट फैशऩ में सबसे अधिक चलन में दिखाई देता है। ज्ञात हो कि लहरिया शब्द लेहर से आया है। जो कि रेगिस्तान की रेत में पानी के गतिशील प्रवाह को दर्शाता है। इसे मुख्य तौर पर शिफॅार्न कपड़ों पर बनाया जाता है। लहरिया प्रिंट को बनाने के लिए कपड़े को बांधकर रंगा जाता है। इससे कपड़ों को खास तरीके से मोड़ कर धागे से बांधा जाता है।
प्राचीन कला
राजस्थान के सीकर और बीकानेर में बंधेज और लहरिया के कपड़े बनाए जाते हैं। साथ ही इसका उत्पादन केंद्र जोधपुर, उदयपुर और जयपुर में है। आप यह भी कह सकती हैं कि राजस्थान की जीवंत संस्कृति की सच्ची प्रतिबिंब बांधनी और लहरिया प्रस्तुत करती है। प्राचीन कला होने के नाते बांधनी और लहरिया का प्रिंट कपड़ों पर तैयार करने के लिए काफी मेहनत भी करनी पड़ती है। इस प्राचीन कला को लेकर यह जानकारी सामने आयी है कि प्रिंट बनाने वाले कारिगरों के पास लंबे नाखून होने चाहिए। इससे कारीगर बांधनी का आकार देने के लिए कपड़े को तेज हाथों से सटीक बांधें। इसके पीछे की वजह यह है कि गांठ जितनी छोटी होती है।
कुल मिलाकर देखा जाए, तो फैशन की दुनिया में अपनी सदाबहार उपस्थति दर्ज कराने वाले बांधनी और लहरिया भारतीय प्राचीन कला की अनमोल भेट है। जो कि नए युग नए फैशन में भी अपने रंग को बिखरने में कायम रही है।