बारिश एक ऐसा मौसम है, जो अपने साथ कई ऐसे त्योहार लेकर आता है। यह प्रकृति के प्रति आभार व्यक्त करने से जुड़ा होता है। बारिश कई राज्यों में उत्सव और नयेपन की बहार लेकर आती है, जो कि भारत की संस्कृति और सभ्यता का विस्तार सालों से करती आ रही है। बारिश के इन त्योहारों की महिमा यह है कि आने वाली पीढ़ी के बीच भी कई दशकों से जारी इन त्योहारों की चमक बरकरार है। आइए जानते हैं विस्तार से कि बारिश से जुड़े त्योहारों की संस्कृति के बारे में।
आदि पेरुक्कू, दक्षिण भारत
दक्षिण भारत में इसे पारिवारिक त्योहार के रूप में भी मनाया जाता है। इस त्योहार को उफनती नदियों से आए पानी को लेकर मनाया जाता है। मुख्य रूप से कावेरी नदी को इस त्योहार को जरिए आभार व्यक्त करते हैं। इस त्योहार के दिन सभी अपने घर में स्वादिष्ट भोजन पका कर, फिर इसे घर के पास किसी झील या फिर तालाब के किनारे पर लेकर आते हैं और पिकनिक मनाते हैं। ऐसा करना लोगों को नदी के प्रति अपना प्रेम भाव प्रकट करने के साथ पर्यावरण के प्रति भी अपना आभार दर्शाते हैं। खास तौर पर यह त्योहार कावेरी नदी के किनारे बसी जगहों पर इरोड, तंजावुर और सलेम में विस्तार से मनाया जाता है। यह त्योहार उन किसानों के लिए महत्व रखता है, जिनका जीवन पानी पर निर्भर करता है। बारिश का आगमन और भी अच्छे तरीके से हो, इसलिए भी इस त्योहार को मनाया जाता है।
मिंजर, हिमाचल प्रदेश
हिमाचल प्रदेश में मिंजर मेले का आयोजन सावन के मौसम यानी कि बारिश में होता है। मुख्य तौर पर इस मेले का आयोजन चंबा में होता है, हालांकि बारिश के अंत के समय इस मेले का आयोजन अगस्त महीने में होता है। इस मेले का आयोजन 10 वीं शताब्दी में राजा साहिला वर्मन की कांगड़ा के राजा के विजय प्राप्त करने से शुरू हुआ था, इसके बाद यह हिमाचल प्रदेश के त्योहारों की सभ्यता का एक हिस्सा बन गया। इस मेले में कई सारे सांस्कृतिक कार्यक्रमों का भी आयोजन होता है।
हेमिस, लद्दाख
लद्दाख का प्रमुख बौद्ध त्योहार हेमिस है। यह मुख्य तौर पर बौद्ध समुदाय द्वारा बनाया जाता है। इस त्योहार में पूजा, प्रार्थना, मास्क डांस और शम्भुनाथ वेशभूषा पहनने जैसे कई सारे कार्यक्रम का आयोजन होता है। खासतौर पर लद्दाख की संगीत, नृत्य और रंग-बिरंगे परंपरागत पहनावे के लिए देश और विदेश के लोगों को आकर्षित करता है। इस त्योहार का नजारा ऐसा होता है कि इसे देखने के लिए टूरिस्ट लद्दाख आते हैं। हेमिस फेस्टिवल में चाम नृत्य किया जाता है, इसमें अनोखे मुखौटे और रंग-बिरंगी पोशाकें पहनी जाती हैं। इसके साथ विशाल थांगका भी फहराया जाता है, जो कि बौद्ध चित्रों की एक प्राचीन निशानी है।
ओणम उत्सव, केरल
केरल में बारिश के आने के कुछ समय पहले से ओणम त्योहार की तैयारी शुरू हो जाती है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार तीनों लोकों पर राजा बलि का राज था और राजा बलि के पराक्रम और जीत के लिए ओणम उत्सव मनाया जाता था। ओणम के दौरान पारंपरिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है, जहां पर राजा बलि की कहानी को नाटक और नृत्य के जरिए दिखाया जाता है। यह त्योहार इतने बड़े स्तर पर होता है कि कई बार बारिश के कारण केरल के ओणम महोत्सव को रद्द भी करना पड़ा है।
सावन का झूला, सावन का त्योहार, बिहार एवं उत्तर प्रदेश
मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और बिहार में सावन का उत्सव धूमधाम से मनाया जाता है। खास तौर पर ग्रामीण इलाकों में महिलाएं अपने लिए नए कपड़े और शृंगार के नए सामान खरीदती हैं। सावन के मेले का आयोजन होता है और वहां पर झूले में बैठ सावन के मधुर गीत गाकर बारिश होने का जश्न मनाया जाता है। बिहार में बारिश का मौसम शुरू होने के साथ ही आर्द्रा पर्व की शुरुआत होती है, बिहार में इस दिन खास तौर पर थाली बनाई जाती है। हर घर में दाल-पूरी और खीर बनाई जाती है और बारिश के आगमन की खुशी का उत्सव मनाया जाता है।