साड़ी सिर्फ छह से नौ गज का परिधान नहीं है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति का अभिन्न अंग सदियों से रही है। भारतीय सभ्यता की पहचान साड़ी नारी के जीवन को पूर्ण करती आयी है। यह न सिर्फ फैशन को दिखाती है, बल्कि भारत की सभ्यता और परंपरा को उजागर करती रही है। इसी को देखते हुए हर साल 21 दिसंबर को विश्व साड़ी दिवस मनाया जाता है। यह कहने में कोई गुरेज नहीं है कि उत्तर प्रदेश के भव्य बनारसी रेशम की साड़ी से लेकर तमिलनाडु के हाथ से बने हुए कांजीवरम और राजस्थान की जीवनी बांधनी तक, साड़ियां हमेशा से ही हमारी भारतीय संस्कृति की विविधता और कलात्मकता का प्रतिनिधित्व करती है। विश्व साड़ी दिवस के मौके पर हमने भारतीय कला के क्षेत्र से जुड़ी चुनिंदा महिलाओं से बात की, जिनके लिए साड़ी केवल फैशन का जरिया नहीं है, बल्कि साड़ी को वे अपनी पहचान मानती हैं।
बंगाल में साड़ी एक नए युग का जन्म
पहनावे के लिहाज से देखा जाए, तो बंगाल की बंगाली साड़ी दुर्गा पूजा के समय अपने लाल रंग से आकर्षित करती है। अभिनेत्री रिंकू घोष इस संबंध में कहती हैं कि साड़ी 6 गज की होती है, जो कि प्योर एलिगेंस ( शिष्टता) बताती है। मैं साड़ी में सबसे ज्यादा आत्मविश्वास महसूस करती हूं। साड़ी कभी-भी महिलाओं को उनके शरीर के आकार से नहीं आंकती है, बल्कि साड़ी हर महिला के शरीर को अपनाती है। भारत में साड़ी अपने आप में भारतीय संस्कृति है। इतने सारे अलग-अलग राज्य है। हर कोई अपनी परंपरा के अनुसार साड़ी पहनता है। बंगाल में साड़ी एक नए युग का उदय है। इसी वजह से वहां पर साड़ी पहनने की बंगाली शैली लोकप्रिय है।बंगाल की साड़ी वहां की राष्ट्रीय पहचान है। साड़ी विरासत का प्रतीक है। ,साड़ी फैशन से परे है। कुल मिलाकर देखा जाए.तो साड़ी का सार भारत की समृद्ध विरासत और सांस्कृतिक विविधता का प्रतीक है।
कांजीवरम और चंदेरी साड़ी महिला गरिमा की पहचान
टीवी की लोकप्रिय एक्ट्रेस एकता तिवारी साड़ी को लेकर अपना प्यार जाहिर करते हुए कहती हैं कि उन्हें अलग-अलग राज्य और सभ्यता की साड़ियां पसंद है। साड़ी के प्रति अपने प्यार को लेकर कहती हैं कि साड़ी महिला के गरिमा को दर्शाता है। साड़ी की खूबसूरती इसके विविधता और रंगत में है।जाहिर की बात है कि भारत की संस्कृति को आने वाली पीढ़ी तक पहुंचाने के लिए हमें साड़ी के पारंपरिक पहनावे को अपने जीवन में शामिल करना चाहिए। साड़ी कहीं न कहीं भारत की विभिन्न सभ्यता का आईना दिखाती है। साड़ी के कई सारे पैटर्न है। तमिलनाडु कांजीवरम साड़ी, उत्तर प्रदेश की बनारसी साड़ी, महाराष्ट्र की पैठनी साड़ी,मध्य प्रदेश की चंदेरी साड़ी। यह सभी साड़ी अपनी संस्कृति की पहचान है और भारतीय सभ्यता को प्रस्तुत करती है।
इतिहास के पन्नों में पैठणी साड़ी
महाराष्ट्र की पैठणी साड़ी की लोकप्रियता को इतिहास से जोड़ते हुए ब्रांड गुरू जान्हवी राऊल कहती हैं कि साड़ी हमारी भारतीय संस्कृति का अहम हिस्सा है। महाराष्ट्र की बात करें, तो यहां की परंपरागत वेशभूषा नऊवारी और पैठणी है। इतिहास के पन्नों में साड़ी में रानी ताराबाई और रानी लक्ष्मीबाई ने वीर गाथा लिखी हैं। यह साड़ी हमारे महाराष्ट्र की शान है। इसे शक्ति,साहस और समानता के तौर पर देखा जाता है। शुरुआती दौर में यह साड़ी कच्छम या धोती के तौर पर देखी जाती थी। इसे अंखड कपड़े के तौर पर भी देखा जाता रहा है। ब्राह्मणी स्टाइल, पारंपिक मराठी साड़ी, पेशवाई मराठी साड़ी, कोली और किसान महिलाओं की साड़ी कंटेम्पररी मराठी साड़ी है। वहीं दूसरी तरफ पैठणी साड़ी महाराष्ट्रीयन संस्कृति का अभिन्न अंग है। इसे साड़ियों की रानी माना जाता है।
भारतीय साड़ी सबकी पसंद
बॉलीवुड की लोकप्रिय स्टंट वूमन मुस्कान को साड़ी में स्टंट करना पसंद है। उनका कहना है कि साड़ी में स्टंट करना मुश्किल होता है। लेकिन फिर भी, मैं अपने कई सारे स्टंट करती हूं। मुझे सिंपल भारतीय साड़ी पहनना पसंद है। उनका कहना है कि शादी का माहौल हो या किसी उत्सव का साड़ी ने हमेशा सुंदरता और शालीनता को जाहिर किया है।
बनारसी साड़ी हमारी विरासत का हिस्सा
एक्ट्रेस और डांसर नेंसी ठक्कर साड़ी को लेकर अपने लगाव पर कहती हैं कि मेरी संस्कृति में रेशम की साड़ियां काफी लोकप्रिय है। साड़ी एक कला है, जो कि हमारी भारतीय संस्कृति की विरासत को दिखाती है। मेरे लिए साड़ी परंपरा, शान और सुंदरता का अवतार है। मेरी संस्कृति में रेशम की साड़ियां,बनारसी साड़ियां एक विशेष स्थान रखती हैं। क्योंकि मेरे मेरठ का उत्तर प्रदेश से घनिष्ठ संबंध है। आप यह भी देखेंगे कि एक्ट्रेस रेखा जी बनारसी साड़ी में दिखाई देती हैं। विश्व साड़ी दिवस पर मैं यह कहना चाहती हूं कि महिलाओं को ज्यादा से ज्यादा साड़ी पहनना चाहिए, यह हमारी विरासत का हिस्सा है।