भारत और उसके भिन्न प्रकार की संस्कृति कहीं न कहीं इस बात की गवाही देती है कि हमारी सभ्यता में से आज भी माटी की खुशबू आती है। असम की संस्कृति ने भी ठीक इसी तरह की पहचान से अपने सम्मान की गाथा लिखी है। कई दशकों से असम की संस्कृति की अनमोल भाग माने जाने वाले रंग-बिरंगे मुखौटों ने कीर्तिमान स्थापित किया है। यह जान लें कि असम के माजुली मुखौटों को व्यावसायिक बढ़ावा देने का प्रयास किया जा रहा है। उल्लेखनीय है कि इन मुखौटों को 16 वीं शताब्दी से असम के मठों द्वारा बनाया जाता रहा है। आइए जानते हैं विस्तार से।
मुखौटों को मिला जीआई टैग
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केंद्र सरकार ने असम की संस्कृति की पहचान माजुली मुखौटों के साथ सदियों पुरानी लोक शिल्प कला को पहचान दी है। असम में गाय के गोबर, मिट्टी और बांस से बनने वाले रंग-बिरंगे मुखौटों के साथ पांडुलिपी चित्रकारी को प्रतिष्ठित ज्योग्राफिकल इंडिकेशन जी आई के टैग से सम्मानित किया गया है। बता दें कि माजुली असम में ब्रह्मपुत्र नदी पर स्थित है। यहां पर मुख्य तौर पर 240 से अधिक गांव हैं, जहां पर कई जातियों का मिश्रण आपको दिखाई देगा।
मुखौटे केवल कला कला नहीं
यहां की संस्कृति में कई दशकों से मुखोटों को बनाने की परंपरा शुरू है। असम में मध्यसुगीन काल में संत शंकरदेव ने इन मुखोटों को बनाने की शुरुआत 1500 के दशक के दौरान की थी। माजुली संस्कृति के सारे मुखौटे केवल असम की कला को नहीं दर्शाते हैं, बल्कि मुखोटे कहीं न कहीं माजुली संस्कृति के सामाजिक और धार्मिक संस्कृति को भी अपने रंगों और आकृति के जरिए दर्शाते हैं। आज भी माजुली संस्कृति की यह परंपरा स्थानीय गांवों के कुशल कारीगरों के माध्यम से कायम है।
माजुली मुखौटों के साथ पांडुलिपि पेंटिंग
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यह जान लें कि माजुली की पांडुलिपी पेंटिंग हिंदू महाकाव्य कहानियों के साथ भागवत पुराण कथाओं को भी दर्शाती हैं, जो कि सांस्कृति विरासत और कलात्मक रंगों का प्रदर्शन करती है। आप इस पांडुलिपि को देखेंगे, तो पायेंगे कि अपने कलाकृतियों के जरिए पांडुलिपि के पेंटिंग के जरिए प्राचीन धर्मग्रंथों का बारीक वर्णन खूबसूरती के साथ किया है। इसमें पेंटिंग के लिए कैशल और बामुनिया के साथ कई अन्य पांडुलिपी लेखन शैलियों का भी उपयोग किया जाता रहा है, जो इसकी सुंदरता और मौलिकता को और अधिक बढ़ावा देता है।
मुखौटे को बनाने की प्रक्रिया
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इस मुखौटे को बनाने की प्रक्रिया काफी जटिल है। इस मुखौटे को बनाने के लिए सबसे पहले बांस की पट्टियों से खांचा तैयाक किया जाता है। फिर इस खाते के ऊपर मिट्टी की परत चढ़ाई जाती है। इसे गाय के गोबर का भी इस्तेमाल किया जाता है। ध्यान दें कि इस बनाने में दो से तीन दिन का समय लगता है। फिर इसे अलग-अलग रंगों में पेंट किया जाता है। इसी तरह से काफी मेहनत के बाद एक मुखौटे का निर्माण होता है।