बिहार और उत्तर प्रदेश की शादियों में अब भी ऐसे कई रीति रिवाज हैं, जिनमें पुरानी चीजों को अहमियत दी जाती है और जो आज भी पर्यावरण के अनुकूल हैं। आइए संस्कृति की इन खूबसूरत रीति-रिवाजों पर एक नजर डालते हैं।
सूप और दउरा (टोकरी), पान पत्ता और सुपारी
आज भी बिहार और उत्तर प्रदेश में जब नयी दुल्हन का नए घर में प्रवेश होता है, तो उनके कदम सूप और दउरा पर रखवाए जाते हैं, दूल्हा-दुल्हन एक-एक करके कदम आगे बढ़ाते जाते हैं, इस रीति के बारे में मान्यता है कि जैसे-जैसे दुल्हन कदम आगे की ओर बढ़ाती जाती है, घर में नेगेटिविटी दूर हो जाती है। इस रस्म को निभाने के दौरान, घर की बुजुर्ग महिलाएं, लोकगीत गाती हैं। तो जैसा कि आप जानती हैं कि सूप और दउरा पूरी तरह से बांस से बनती है और यह पूरी तरह से पर्यावरण के अनुकूल होता है। बिहार में शादियों में तोहफे देने के लिए बांस की टोकरियों का इस्तेमाल खूब होता है। पान पत्ते और सुपारी का भी शादी में बेहद इस्तेमाल होता है, जो हमें प्रकृति के करीब लाता है।
आटे से परछावन
बिहार और उत्तर प्रदेश में दुल्हन के घर आने पर एक और रस्म की जाती है, लोढ़ा और चावल के आटे की लोई लेकर दुल्हन की सवारी पर फेंका जाता है, इससे माना जाता है कि जो भी मुसीबत, परेशानी दुल्हन या दूल्हे पर है, उसे हटा दिया जाए। उन पर किसी भी तरह की आंच न आये। यहां भी बिल्कुल प्राकृतिक चीजों का ही इस्तेमाल किया जाता है और आज भी इसमें कोई बदलाव नहीं आया है, इसलिए भी इस रस्म को पर्यावरण के अनुकूल ही माना जाता है।
कोहवर
बिहार और उत्तर प्रदेश में आज भी कोहवर के रस्म को काफी तवज्जो दी जाती है, कोहवर में एक कमरा होता है, जिसमें दीवारों पर लड़के या लड़की की बुआ या बहन कोहवर बनाती है, वो जो चित्र बनाती हैं, वो पर्यावरण को ही समर्पित होता है, उसमें पेड़-पौधे और पक्षी सब कुछ नजर आते हैं। इस रस्म के बाद, बहनों और बुआओं को नेग भी मिलता है। दो पंक्तियां भी दूल्हा और दुल्हन के लिए लिखे जाते हैं। बिहारी संस्कृति की भी यह खूबी रही है कि हमेशा ही अहमियत लोक संस्कृति को दी जाती है और बिहार की लोक संस्कृति हमेशा ही पर्यावरण संरक्षण का संदेश देती है।
सिलपोहा और इमली घुटाई
सिलपोहा बिहारी विवाह की रस्में हैं, जो शादी के दिन निभाई जाती हैं। एक पारंपरिक बिहारी शादी में दुल्हन की माँ लावा या चावल या चूड़ा या पोहा इनके कुछ टुकड़े लेती हैं और उन्हें सिलबट्टा या मूसल की मदद से पीसती हैं, यानी अब भी सिलबट्टा का महत्व कम नहीं हुआ है, संस्कृति अब भी बरकरार रखने की कोशिश की जा रही है। वही एक रस्म होती है इमली घुटाई समारोह की, जिसमें दूल्हा और दुल्हन के मामा आम का पत्ता और पानी वर-वधू को देते हैं, आम का पत्ता भी पर्यावरण के महत्व को दर्शाता है।
हल्दी की रस्म
हल्दी के रस्म में शादी के कुछ दिनों पहले से ही हल्दी सुखाई जाती है, फिर शादी के दो दिन या तीन दिन पहले सारी महिलाएं मिल कर हल्दी कूटती हैं और फिर हल्दी का उबटन दूल्हा और दुल्हन को लगाया जाता है, अब यह तो जगजाहिर है कि हल्दी से अधिक प्राकृतिक चीज तो कुछ भी नहीं हो सकती है और रस्मों के बहाने ही सही प्रकृति से जुड़े रहने का इससे अच्छा मौका और कुछ नहीं हो सकता है।
मंडपाचदान
बिहारी शादी में मंडप की उपयोगिता और महत्व है, जहां वर और वधू सात फेरे लेते हैं और कन्यादान भी होती है। आम या केले के पत्तों से सजाया जाता है। इसमें बांस का उपयोग किया जाता है, यहां की शादियों में मिट्टी के घड़े का और उन पर बनी हुई आकृतियों का भी काफी महत्व है, जो कि हमें प्रकृति से करीब लाता है।
गोयठा का प्रयोग
आज भी शादियों की सारी रस्मों में गाय के गोयठे का ही प्रयोग हो रहा है, इसे बेहद शुभ माना जाता है।