होली न केवल मिलन का समारोह है, बल्कि होली रंगों के साथ उन सारे बंधनों को भी तोड़ चुका है, जिससे महिलाएं बंधी हुई रहा करती थीं। शहरों में महिलाओं का होली खेलना आम बात हो गई है, लेकिन यह रोचक है कि छोटे शहरों में महिलाओं के लिए होली आजादी का पर्व भी बन चुका है, जहां घर की दहलीज से बाहर निकलकर महिलाएं गर्व के रंग में खुद को रंग कर इस पर्व की धूम से अपने जीवन में भी रंगों को घोल लेती हैं। होली को लेकर देश में कई जगह पर कई सारे आयोजन होते हैं, जो कि महिलाओं द्वारा किए जाते हैं। होली एक तरफ जहां धार्मिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और पारंपरिक सोच को लेकर आती है, वहीं यह त्यौहार समाज में मानसिक तौर पर स्वस्थ माहौल का संचार करता है। आइए जानते हैं विस्तार से होली, महिलाएं और हमारी परंपरा के बारे में।
बरसाने की लट्ठमार होली में महिलाओं का महत्व
भारत में सबसे अधिक लट्ठमार होली की चर्चा है। होली के खास दिन से पहले से ही मथुरा, वृंदावन, और बरसाने की होली में इंद्रधनुषी रंग देखने को मिलता है। होली के मौके पर खास तौर पर देश-विदेश से कई लोग बरसाना की होली का हिस्सा बनने के लिए आते हैं। ज्ञात हो कि यहां 5000 साल से होली का पर्व उत्साह के साथ मनाया जाता है। यहां पर रिवाज है कि पुरुषों और महिलाओं के बीच लट्ठमार होली का यादगार खेल होता है। हालांकि यहां महिलाओं द्वारा होली नृत्य और संगीत भी होता है, जिसे देखने के लिए विदेश से भी लोग आते हैं। परंपरा के अनुसार इस दिन पुरुष कृष्ण की तरह तैयार होते हैं और महिलाएं गोपियों की तरह सज कर लाठियों के साथ इस प्रथा को निभाती हैं। मथुरा और वृंदावन में पूरे 15 दिनों तक होली का पर्व होता है, जहां गीत-संगीत, महाभोज के साथ होली मेला आदि का आयोजन होता है।
उत्तर प्रदेश और बिहार में महिलाओं की होली
उत्तर प्रदेश और बिहार में होली का उत्सव फुगआ रंग के बिना अधूरा है। खाने का विशेष तौर पर महत्व है। जहां पर बिहार में पुए- दही वड़े के साथ फाल्गुन का जश्न मनाया जाता है, वहीं उत्तर प्रदेश में बुकवा( एक तरह का देसी उबटन) लगाने का रिवाज है, ये बुकवा इस तरह बनाई जाती है कि होलिका दहन के दिन राई को सेंक कर उसे पीस लिया जाता है और इसके बाद बुकवा से होली खेली जाती है, जहां घर की महिलाएं परिवार के अन्य सदस्यों के पैर और हाथों पर बुगवा लगाती हैं और फिर बचे हुए बुकवे को होलिका दहन में डाल दिया जाता है। ऐसा मानना है कि इससे बीमारियां खत्म होती हैं और नकारात्मकता भी होलिका दहन में जल जाती है। साथ ही उत्तर प्रदेश में गुड़ का मीठा गुलगुला, कटहल के पकोड़े और कटहल की सब्जी के साथ चावल की खीर बनाने का रिवाज है। साथ ही गांव में महिलाओं की टोली निकलती है, जो कि एक घर से दूसरे घर जाते हुए महिलाओं का बड़ा समूह बनता है, जो कि एकत्र होकर एक साथ पारंपरिक गीतों के साथ रंग खेलती हैं और समाज में एकता का संदेश भी देती हैं।
आंध्र प्रदेश में मेदुरू होली में महिलाओं का जुलूस
इस होली की सबसे बड़ी खूबी यह है कि यहां पर रंगों के उत्सव में नृत्य और संगीत को शामिल किया जाता है। इसमें महिला प्रतिभागी बढ़ चढ़कर हिस्सा लेती हैं। पूरे शहर में अलग-अलग स्थानों पर जुलूस के साथ रास्ते पर रंग का उत्सव मनाया जाता है। महिलाओं द्वारा आंध्र प्रदेश के पांरपरिक संगीत और नृत्य मेदुरू होली की खूबी को बढ़ा देते हैं। यहां होली के इन जुलूस में महिलाओं खास तौर पर पारंपरिक गीत गाती हैं और एक-दूसरे पर रंगों की बारिश करती हैं।
महाराष्ट्र में होली और महिलाएं
महाराष्ट्र में होली की परंपरा खान-पान, रंग और पारंपरिक संगीत के ईद-गिर्द घूमती है। यहां पर होली के एक दिन पहले से ही पकवानों के रंग घर की रसोई में सजने लगते हैं। जहां पर करंजी, पूरन पोली, खीर और कटहल के फल से होली की शुरुआत होती है। होली मोहल्ला का आयोजन किया जाता है, जहां महिलाओं की टोली होली मोहल्ला की शोभा को बढ़ाती है। महाराष्ट्र में कई स्थानों पर महिलाएं पारंपरिक नौवारी साड़ी के साथ ढोल की थाप पर रंगों का खेल खेलती हैं और एक-दूसरे के साथ इस रंगों के त्योहार का उत्सव मनाती हैं। महाराष्ट्र में होली ‘फाल्गुन पूर्णिमा’ और ‘रंग पंचमी’ के नाम से जाना जाता है।
हरियाणा में महिलाओं का फाग महोत्सव
हरियाणा में महिलाएं भी पारंपरिक तरीके से होली का जश्न मनाती हैं। यहां पर हरियाणा में भाभी और देवर की होली काफी लोकप्रिय है। होली के दिन भाभी और देवर आदर-भाव के साथ एक-दूसरे को गुलाल लगाकर और मीठा खिलाकर होली की सुबह की शुरुआत करते हैं। इसके साथ होली के आगमन के एक महीने पहले से हरियाणा में कई जगहों पर महिलाओं द्वारा फाग महोत्सव भी मनाया जाता है। हरियाणा में कई स्थानों पर सखी सहेली परिवार नामक संस्था हैं, जिसके द्वारा फाग महोत्सव का आयोजन महिलाओं द्वारा महिलाओं के लिए किया जाता है। फागुन महोत्सव में फाल्गुन गीत गाकर उत्सव का आनंद उठाया जाता है। पूरे महीने हर दिन अलग-अलग क्षेत्र में फूलों की होली के साथ पानी, अबीर और गुलाल के साथ लट्ठ मार होली खेलते हुए रासलीला की जाती है। साथ ही ईश्वर से प्रार्थना भी की जाती है। इसके साथ फाग गीतों के साथ महिलाएं एक दूसरे को तिलक लगाकर एक दूसरे पर फूल डालते हुए फूलों की होली खेलते हैं।
गोवा में पारंपरिक होली महा मेला
गोवा में होली पर परंपरा और संगीत का रंगीनमय संगम देखने को मिलता है, जो कि देश और विदेश के कई सैलानियों के लिए आकर्षण का केंद्र बन जाता है। इस होली की सबसे बड़ी खूबी यह है कि विभिन्न धर्म और समुदाय के लोग एक साथ मिलकर होली का जश्न मनाते हैं। गोवा में होली के आगमन से 14 दिन पहले ‘शिग्मो त्योहार’ मनाया जाता है। यह त्योहार खासतौर पर योद्धाओं की घर वापसी के तौर पर मनाया जाता है, जो दशहरा के दौरान दुश्मनों से युद्ध के बाद होली पर घर वापसी करते हैं। आप यह भी कह सकती हैं कि शिग्मो एक तरह से पौराणिक कथाओं और सांस्कृतिक कार्निवल का मेलजोल हैं, जहां महिलाएं हर कदम पर आपको इस उत्सव का मुख्य चेहरा बनते हुए दिखाई देंगी। गोवा के गांवों से लेकर शहरों तक शिग्मों के जरिए महिलाएं उत्सव मनाती हैं। पारंपरिक गीत और नृत्य के साथ महिलाएं गोवा के कार्निवल और जुलूसों का हिस्सा बनती हैं। एक दूसरे को गुलाल लगाने के साथ गीत भी गाए और बजाए जाते हैं। यहां पर महिलाओं की परैड भी निकलती है। झांकियों का प्रदर्शन भी किया जाता है। साथ ही परेड में शामिल महिलाएं और पुरुष पौराणिक पात्रों के आधार पर खुद को तैयार करके इस परेड में होली का जश्न मनाते हैं।
ओडिशा और असम में पीली होली
ओडिशा और असम में महिलाएं पीले रंग के कपड़े पहन और बालों में फूल सजाकर गायन और नृत्य करती हैं। इस दौरान महिलाएं चावल के आटे को पानी में घोलकर उससे रंगोली बनाती हैं और पूरे घर को फूलों से सजाती हैं। ज्ञात हो कि ओडिशा में होलिका दहन का प्रचलन नहीं है, ऐसे में खान-पान की परंपरा है, जहां महिलाएं होली के एक दिन पहले फसल की नई दाल का सेवन करते हैं। साथ ही आम को खाने की शुरुआत भी होली के दिन से ही होती है।
कुल मिलाकर देखा जाए, तो महिलाओं के लिए वक्त के साथ होली की परंपरा बदली है या आप यह भी कह सकती हैं कि महिलाओं के जीवन में एकल रहने की खोखली परंपरा को होली के उत्सव ने अपने रंगों से भर दिया है। पहले की होली और अब की होली में महिलाओं की भूमिका में बड़ा लेकिन सुखद फेरबदल हुआ है। पहले जहां फगुआ गीत, उत्सव और होली मेले में महिलाएं शामिल नहीं होती थीं, वहीं अब महिलाएं अपना होली मंच बना रही हैं और लैंगिक असमानता की दीवार को रंगों की बौछार से तोड़ती आ रही हैं, जो कि होली के पर्व के महत्व को पूरी तरह से सार्थक कर रहा है। होली का पर्व हमें यही सीख देता है कि कैसे अपने जीवन में रंगों को महत्व देना चाहिए। कैसे होली का महत्व रंगों के जरिए अपनी खुशियों को प्रकट करने के साथ बुराई पर अच्छाई की जीत का उत्सव है। महिलाओं ने इसे साबित कर दिखाया है कि उन्हें खुश रहने के लिए, आजाद होने के लिए और अपने अधिकार को पाने के लिए किसी एक सीमा तक या फिर किसी एक रंग में बांधा नहीं जा सकता है, उनकी उड़ान आसमान के इंद्रधनुषी रंग की तरह है, जो आसमान की सफेद चादर में भी महिला सशक्तिकरण का रंग भर सकती है।