शिक्षा पाने और देने की कोई उम्र नहीं होती, कोई सीमा नहीं होती है, अगर एक छात्र में सीखने के गुर हों, तो वह हमेशा सीख सकता है और अगर एक गुरु में कुछ सिखाने का हुनर है, तो उनके लिए कुछ भी बाधाएं नहीं होती हैं, ऐसे में आइए हम आपको कुछ ऐसे शिक्षकों से मिलवाते हैं, जिन्होंने बच्चों तक शिक्षा पहुंचाने के लिए कुछ न कुछ नए प्रयोग किये ही हैं। आइए जानें विस्तार से।
एक ऐसी शिक्षिका, जो कभी रिटायर नहीं होगी
केवी नारायणी, पिछले 50 सालों से लगातार अपने घर से कई किलोमीटर तक चल कर जाती हैं और अपने छात्रों को पढ़ाती हैं। हर दिन लगभग 25 किलोमीटर चल कर जाने वाली केवी की उम्र 66 साल हो गई है, लेकिन उन्होंने पढ़ाने का काम नहीं छोड़ा है,केरल के कसारगढ़ की रहने वालीं केवी अपने दिन की शुरुआत सुबह साढ़े बजे शुरू करती हैं और वह पहले घर में सुबह साढ़े छह बजे पहुंच जाती हैं और इसके बाद वह और भी घरों में जाती हैं और फिर देर रात लौटती हैं। आपको जान कर हैरानी होगी कि उन्होंने कभी कॉलेज की पढ़ाई नहीं की, लेकिन उन्हें अंग्रेजी, हिंदी और संस्कृत भाषा का जबरदस्त ज्ञान है और उन्होंने 15 साल की उम्र से पढ़ाई का काम शुरू कर दिया है।
वर्दी वाली दीदी टीचर का जवाब नहीं
झांसी की रहने वालीं एक महिला सिपाही दीपशिखा चौहान अपने साथियों के साथ मिल कर, पोचले कुछ महीने से लगातार बच्चों को पढ़ाने की कोशिश कर रही हैं, वह अपने कमा से समय निकाल कर झुग्गी-झोपड़ी के बच्चों के बीच जाती हैं और वहां मेहनत करती हैं कि बच्चे आएं, तो वह उन्हें कुछ सीखा सकें, पहले बच्चे आने में कतराते थे, लेकिन अब लगभग 150 बच्चे उनसे शिक्षा हासिल कर रहे हैं। गौरतलब है कि उन्हें वहां के बच्चों ने वर्दी वाली दीदी का नाम दे दिया है। दीपशिखा ऐसे बच्चों में शिक्षा का अलख जलाना चाह रही हैं, जो आर्थिक रूप से स्कूल जाने में असमर्थ हैं, इनकी सोच है कि बच्चे ज्ञान से वंचित नहीं होने चाहिए।
वन टीचर, वन कॉल वाली टीचर दीदी
उत्तर प्रदेश के बरेली की टीचर दीपमाला पांडे एक शानदार और अनोखी टीचर हैं, जो खुद स्पेशल चाइल्ड के लिए वन टीचर वन कॉल की संस्थापक हैं, इन्होंने उन बच्चों को जो अमूमन दूसरे सामान्य बच्चों की वजह पूर्ण रूप से विकसित नहीं हो पाते हैं, क्योंकि खुद में हीन भावना रखने लगते हैं, उन्होंने पढ़ाई का एक अलग रुख अपनाया और बच्चों को सामान्य करने की कोशिश की है और अब उनकी वजह से ज्यादातर दिव्यांग बच्चे स्कूल में दाखिला लेने लगे हैं। इनके काम की प्रशंसा खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी कर चुके हैं।
कविता वाली टीचर दीदी
दिल्ली के एक सरकारी स्कूल में रहने वालीं अध्यापिका अर्चना दुआ ने अपने पढ़ाने के स्टाइल में एक अलग तरीका अपनाया है, वह बच्चों को कविताओं के माध्यम से बाल साहित्य पढ़ाती हैं। बच्चे उनकी वजह से हिंदी भाषा में काफी दिलचस्पी ले रहे हैं। गौरतलब है कि वह जो कुछ भी पढ़ाती हैं, उन्हें अपने तरीके से पहले कविता का रूप देती हैं, जिससे उन्हें बच्चों को समझाने में काफी आसानी हो जाती है। वह अपनी पढ़ाई में प्राइमरी चीजें जैसे गणित से जुड़ीं कठिन चीजों को सरल बना कर, बच्चों को समझाने की कोशिश करती हैं।
यूनिफॉर्म वाली टीचर दीदी
छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के रामनगर स्थित शासकीय गोकुलराम वर्मा प्राथमिक स्कूल की टीचर जान्हवी यदु ने एक नई पहल शुरू की है, उन्होंने बच्चों की तरह ही खुद यूनिफॉर्म पहनने का फैसला लिया, ताकि बच्चों को अनुशासन का पाठ पढ़ा सकें। ऐसा करके वह खुद बच्चों के बीच यूनिफॉर्म में उनके बीच बैठ कर उनके तरीके से समझने की कोशिश की कि बच्चे किस कदर पढ़ाई समझ पा रहे कि नहीं, बच्चों को भी टीचर से यूनिफॉर्म के कारण एक कनेक्शन महसूस हुआ और वे टीचर की पढ़ाई में ध्यान देने लगे।