रंगोली के रंगों से दिवाली दशकों से खुशहाली और समृद्धि का संदेश लेकर आती है। घर के द्वार पर रंगों से बनाई गई एक छोटी-सी बिंदी परिवार की एकता और अखंडता का प्रतीक मानी जाती है। रंगोली हमेशा से भारत की प्राचीन लोककला का अहम हिस्सा रही है। दिवाली के इस मौके पर दीये के बाद हम आपके लिए लेकर आए हैं, रंगोली का इतिहास। इस दिवाली आप अपने घर में रंगों का आशियाना बनाने से पहले एक बार जरूर जान लें कि आखिर कैसे रंगोली हमारी संस्कृति की मिट्टी में अपनी खुशबू की बागवानी खिलाने के साथ महिलाओं की शक्ति का प्रतीक भी बन गई है। आइए जानते हैं विस्तार से।
64 कलाओं में शामिल रंगोली
रंगोली को भारत की प्रमुख 64 कलाओं में से एक माना जाता है। उल्लेखनीय है कि हड़प्पा संस्कृति और 5 हजार पूर्व के मोहनजोदड़ो की संस्कृति में रंगोली के चिन्ह पाए गए हैं। उस दौरान रंगोली को ‘आलेपन’ नाम से पुकारा जाता था। ‘आलेपन’ एक संस्कृत शब्द है और इसका आशय साधारण भाषा में लेप करना होता है। यह भी जान लें कि भारत में कई जगहों पर इसे ‘अल्पना’ नाम से भी पुकारा जाता है। प्राचीन समय से ही घर में होने वाले किसी भी सांस्कृतिक कार्यक्रम से पहले रंगोली बनाना उत्सव के आगमन का पहला स्वरूप होता है, वहीं दक्षिण भारत में रंगोली को कोलम नाम से जाना जाता है। चावल के आटे के घोल से रंगोली बनाई जाती है। चावल के आटे से रंगोली बनाने की पीछे की वजह चीटी को खाना खिलाना है, ताकि जीव-जन्तु को रंगोली के कारण भोजन मिले।
रंगोली से प्रकृति से मिलन
भारतीय इतिहास में यह मान्यता है कि मनुष्य को पांच तत्व आग, पानी, वायु, मिट्टी और अंतरिक्ष मानव जीवन के अंग हैं। इस वजह से नकारात्मक ऊर्जा से बचने के लिए रंगोली बनाई जाती रही है। प्राचीन भारतीय गुफाओं में भी कई सारी ऐसी आकृतियां मौजूद हैं, जिसे रंगोली माना जाता है। रंगोली के पीछे वैज्ञानिक कारण भी मौजूद है। बिंदी वाली रंगोली पर किए गए एक अध्ययन में जाहिर हुआ है कि बिंदुओं से जुड़ने वाली रंगोली ब्राह्मण का प्रतीक है। ऐसा माना गया है कि रंगोली में ध्वनि और ऊर्जा समाहित है। इसी वजह से जब भी कोई घर में प्रवेश करता है, तो बिना रंगोली के कोई भी पारंपरिक कार्य अधूरा माना जाता रहा है। साथ ही रंगोली की आकृति देखकर घर से बाहर जाने वाले और घर के अंदर आने वाले व्यक्ति का मन प्रसन्न रहता है और सकारात्मक ऊर्जा मिलती है।
महिलाओं के लिए शक्ति का प्रतीक
यह भी माना गया है कि घर की रंगोली महिलाओं की शक्ति और सहनशीलता को दिखाती है। दिवाली के मौके पर रंगोली प्रतियोगिता महिलाओं के बीच रंगोली को उत्सव बना देती है। अपनी कला का प्रदर्शन करते हुए महिलाएं रंगोली के माध्यम से पारंपरिक खेल का हिस्सा बनती हैं। जाहिर सी बात है कि इस तरह होली महिलाओं के बीच रंगोली के सहारे सांस्कृतिक खेल के महत्व को बढ़ाती है। रंगोली विभिन्न तरह की डिजाइन के जरिए महिलाओं के दिमागी कौशल, एकाग्रता और संयम को भी दिखाती है। आप यह कह सकती हैं कि रंगोली महिलाओं की शक्ति का भी प्रतीक है।
रंगोली नाम का जन्म और विभिन्न राज्यों की रंगोली
मान्यता है कि रंगोली नाम का जन्म ‘रंगवल्ली’ शब्द से हुआ था। इसका मतलब होता है सुंदर रंगों वाली लताएं। दिलचस्प है कि भारत के विभिन्न राज्यों में रंगोली को पुकारा जाने वाला नाम भी काफी अलग है। पश्चिम बंगाल में रंगोली को अल्पना कहते हैं। तमिलनाडु में कोलम, उड़ीसा में ओसा, केरल में पूविडल, गुजरात में साथिया, आंध्र प्रदेश में मुग्गु, छत्तीसगढ़ में चौक पूर्णा और बिहार में अरिपाना। यह भी जान लें कि दक्षिण भारत में रंगोली बनाने की परंपरा दिनचर्या का हिस्सा है, जहां हर दिन की सुबह चावल के आटे की रंगोली बनाने के साथ होती है।