कृष्ण जन्माष्टमी के मौके पर मोर पंख की मांग बढ़ जाती है। एक तरफ जहां मोर के पंखों का सांस्कृतिक महत्व है, तो वहीं दूसरी तरफ मोर के पंख को सजावट के लिए इस्तेमाल भी किया जाता है, लेकिन क्या आप जानती हैं कि मोर पंख की कई सारी ऐसी खूबियां हैं, जिससे आप अनजान हैं। मोर पंख का आयुर्वेद में महत्व होने के साथ इसे वैज्ञानिक दृष्टि से भी प्रमुख माना जाता है। इससे आप अवगत है कि भारत में मोर राष्ट्रीय पक्षी होने के साथ भारत की सांस्कृतिक धरोहर का प्रतीक भी माना जाता है। मोर की सुंदरता का प्रतीक पंख को माना जाता है। मोर पंख की सबसे बड़ी यह मानी जाती है कि ये सकारात्मक ऊर्जा देता है। आइए विस्तार से जानते हैं मोर पंख से जुड़े खास इतिहास के बारे में।
एक मोर के पास कितने होते हैं पंख
माना गया है कि एक मोर के पंखों की गिनती लगभग 150 के करीब होती है। यह दुखद है कि अगस्त के महीने में मोर के पंख झड़ने भी लगते हैं, वहीं बारिश के मौसम में जब मोर पंख फैलाकर नाचते हैं, तो उस खूबसूरत दृश्य का वर्णन नहीं किया जा सकता है। मोर के पंख पर भले ही आपको इंद्रधनुषी रंग दिखाई देता है, लेकिन मोर के पंख खासतौर पर नीले-हरे रंग के होने के साथ चमकदार होते हैं। मोर के पंखों के शोध के पीछे भी इतिहास है। मोर के पंख इंद्रधनुषी होते हैं, इसकी पहचान 1634 में चार्ल्स प्रथम के चिकित्सक सर थिओडोर डी मार्यन ने की थी। उन्होंने यह पाया था कि मोर के पंखों में आंख रूपी एक संरचना होती है, जो कि इंद्रधनुष के समान चमकती है। साथ ही मोर पंख में कई तरह के रंग-बिरंगे धागों के धब्बे भी भी दिखाई देते हैं।
मोर के पंख और फैशन
मोर के पंखों का इस्तेमाल साड़ियों और दुपट्टों में खासतौर पर किया जाता है। साथ ही ज्वेलरी के तौर पर भी मोर के पंखों के आकार की बनी हुई इयररिंग और नेकलेस की सबसे अधिक खरीदी होती है, हालांकि मोर के पंखों का इस्तेमाल फैशन की दुनिया में साल 1903 के दौरान हो गई थी। गौरतलब है कि साल 1903 के दौरान दिल्ली दरबार में राज्याभिषेक के एक जश्न के लिए लेडी कर्जन ने मोर पोशाक बनवाई थी, जो कि सोने और चांदी के धागे से बनी हुई थी। उनके इस गाउन को दिल्ली और आगरा के कारीगरों ने कढ़ाई से तैयार किया था। इस गाउन पर सोने की तार से मोर पंख की बुनाई की गई थी। दिलचस्प है कि लेडी कर्जन शिकागो से थी, इस वजह से उनकी इस पोशाक को शिकागो ट्रिब्यून के लेख में भी शामिल किया गया था। इसके बाद लेडी कर्जन का मोर पोशाक के साथ चित्र बनाने का फैसला किया गया। दिलचस्प जानना यह है कि इस मोर गाउन का वजन 10 किलो के करीब था।
शिल्प कलाओं में मोर के पंख का इस्तेमाल
मोर के नीले-हरे रंगों की खूबी यह है कि इसकी खूबसूरती का इस्तेमाल शिल्प कलाओं में भी किया जाता है। भारतीय कला में मोर की आकृतियां कपड़े और आभूषण के साथ दीवार की कलाकृति को डिजाइन करने के लिए भी किया जाता है। उल्लेखनीय है कि मोर की आकृति की उत्पत्ति 4 हजार साल पहले भारत में हुई थी। 3150 ईसा पूर्व के मिस्त्र के एक मकबरे में भी मोर की पूरी आकृति का चित्रण किया गया है। इस चित्रण में मोर के पंख को फैलाते हुए दिखा जा सकता है। मोर न केवल भारतीय संस्कृति का हिस्सा रहा है, बल्कि पूर्व एशिया, ग्रीस और रोम जैसे देशों में संस्कृतियों को परिभाषित करने में प्रमुख भूमिका निभाई है।
मधुबनी पेंटिंग और पिछवाई में मोर के पंख का जिक्र
भारतीय कला संस्कृति की प्राचीन कला मधुबनी पेंटिंग में कई सारे चमकीले रंगों के साथ मोर के दिव्य पंखों की आकृति बनाई जाती है। आपको कई सारे ऐसे चित्र मिल जायेंगे, जहां मोर के पंखों को और भी अधिक सजाकर और अलग तरह से चित्रण करके मधुबनी पेंटिंग को पेश किया गया है। बता दें कि मधुबनी पेंटिंग में कलाकृतियों को शामिल करने को भरनी कहा जाता है, इसमें फूल-पत्तों की डिजाइन के साथ मोर पंखों का भी अधिक इस्तेमाल किया जाता है। इसके बाद बारी आती है पिछवाई की, जो कि राजस्थान की एक पारंपरिक चित्रकला है। पिछवाई पेंटिंग में मोर की आकृति अनिवार्य मानी जाती है, जो कि पक्षी के महत्व को समझाती है। 20वीं सदी के मध्य में अमेरिका की कला और फैशन में एक नया चलन शुरू किया था, जो कि आज भी जारी है। यह कहने में कोई गुरेज नहीं है कि मोर और मोर पंख की आकृति ने दुनिया में अपनी एक लोकप्रिय छवि तैयार की है।