ओणम थुरु ओणम या थिरुवोणम के रूप में भी जाना जाता है। यह पर्व केरल के सबसे बड़े और सबसे अधिक दिनों तक चलने वाले पर्वों में से एक पर्व है। खास बात यह है कि यह प्रकृति से प्यार करने वाले ही एक पर्व के रूप में मनाया जाता है। खासतौर से जब फसल की अच्छी उपज के लिए एक तरह से यह प्रकृति से प्रार्थना का दिन होता है। इस 10 दिन तक चलने वाले त्यौहार की खासियत यह भी है कि इसमें महिलाएं, बेहद प्यारी रंगोली बनाती हैं, साथ ही तरह-तरह के पकवान भी बनते हैं और साथ ही महिलाएं लोक नृत्य भी जम कर करती हैं। ऐसे में आइए जानें, इस पर्व में महिलाएं और भी क्या-क्या खास चीजें करती हैं।
मान्यताओं के अनुसार केरल में महाबली नाम का एक असुर राजा था, उसके आदर सत्कार में इस त्यौहार को मनाया जाता है, क्योंकि उनके राज्य में प्रजा बेहद सुखी और संपन्न थी, इस दौरान भगवान विष्णु वामन अवतार लेकर आये और तीन पग में उनका राज्य लेकर उनका उद्धार कर दिया था। ऐसे में ओणम में माना जाता है कि वह एक बार अपनी प्रजा को देखने के लिए आते हैं।
थुंबी थुल्लाल
थुंबी थुल्लाल (महिला नृत्य) महिलाओं द्वारा की जाने वाली एक लोक कला है। यह ओणम उत्सव का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह नृत्य ओणम की सबसे महत्वपूर्ण गतिविधियों में से एक है, क्योंकि यह त्योहार की सच्ची भावना को स्थापित करने की कोशिश करता है। थुंबी थुल्लाल में, पारंपरिक परिधान पहने लगभग छह से सात महिलाएं भाग लेती हैं। ये सात महिलाएं एक मंडली में बैठती थीं और प्रमुख कलाकार जिसे थुंबी (ड्रैगन फ्लाई) कहा जाता था, सर्कल के केंद्र में बैठेगी। वह केरल में आमतौर पर उपलब्ध होने वाले थुंबा के फूलों का एक गुच्छा पकड़े हुए होंगी। अब, मुख्य कलाकार तेज गति वाला गीत गाएंगी और अन्य महिलाएं उसके साथ हो जाएंगी। धीरे-धीरे गाना तेज गति बढ़ती जाती है। यह नृत्य, केरल के महिलाओं की एकजुटता, आपसी सौहार्द, परस्पर प्रेम और सामूहिक उल्लास का प्रतीक होता है। महिलाएं आपस में अपनी सहेलियों के साथ झूला भी झूलती हैं।
ड्रेपिंग कसावु
कसावु एक साड़ी है, जो केरल की महिलाओं की खास पहचान है, और इनकी यही पहचान उन्हें अन्य भारतीय महिलाओं के परिधान से एकदम खास बना देती है। यह एक तरह की सुनहरे बॉर्डर वाली सफेद सूती साड़ी है। कसावु शब्द वास्तव में साड़ी के बॉर्डर में इस्तेमाल की जाने वाली सुनहरी जरी को दर्शाता है । केरल की कसावु बेहतरीन पारंपरिक साड़ियों के रूप में उभरी है, जो हर मलयाली महिला की सुंदरता को परिभाषित करती है। इसे केरल में महिलाओं की सबसे शुभ पोशाक माना जाता है। खासतौर से ओणम के दौरान महिलाएं इसे पहनना बेहद पसंद करती हैं। इन साड़ियों के बॉर्डर में सोने भी जड़े होते हैं।
ओणम सद्या
ओणम सद्या (पर्व) थिरुवोनम का एक और आवश्यक हिस्सा है, और लगभग हर मलयाली इसे अपने तरीके से बनाते ही हैं। कम से कम इसका एक हिस्सा तो अवश्य बनाते हैं। ओणम सद्या मौसम के मिजाज को दर्शाता है और पारंपरिक रूप से विभिन्न मौसमी सब्जियों के साथ बनाया जाता है जिसमें खीरा, रतालू, लौकी और बहुत कुछ शामिल हैं। यह नौ कोर्स भोजन पारंपरिक रूप से केले के पत्तों पर परोसा जाता है। सद्या में परोसे जाने वाले व्यंजन दो दर्जन से अधिक भी हो सकते हैं। ओणम सद्या की विशेषता प्रसिद्ध मलयालम कहावत 'कणम विट्टम ओणम उन्नाम' में व्यक्त की गई है, जिसमें कहा गया है कि 'जरूरत पड़ने पर अपनी संपत्ति बेचकर भी ओणम का दोपहर का भोजन करना चाहिए'।
पुक्कलम
पुक्कलम ओणम उत्सव के लिए की जाने वाली फूलों की क्यारी है। पुक्कलम बनाने की यह पारंपरिक मेकिंग महिलाओं द्वारा थिरुओनम से दस दिन पहले अथम के दिन तैयार की जाती है। प्रामाणिक पुक्कलम को दस मंडलियों के साथ खासतौर से डिजाइन किया जाता है। इसे लेकर मान्यता है कि प्रत्येक चक्र हिंदू धर्म में दस अलग-अलग देवताओं का प्रतिनिधित्व करता है। इसके अलावा, यह भी माना जाता है कि ये फूलों की सजावट राक्षसों और देवताओं (डेमी देवताओं) के बीच युद्ध का प्रतीक है।
ओणम के पहले दिन केवल एक घेरा बनाया जाता है, फिर अगले दिन दो घेरे होते हैं और इसी तरह दसवें दिन तक, जिस पर विभिन्न रंगों के फूलों का उपयोग करके दस घेरे बना लिए जाते हैं। यह भी कहा जाता है कि पुक्कलम पर दिन के प्रत्येक नक्षत्र का प्रतिनिधित्व करता है । वर्तमान समय में, लुप्त होती परंपरा ने इस पारंपरिक पुक्कलम को बनाने के लिए आर्टिफिशियल रंगों का भी काफी उपयोग होने लगा है।
दस दिन, दस विविधता
जी हां,दस दिनों तक चलने वाले इस पर्व में हर दिन की खासियत होती है। जहां पहले दिन को अथम कहते हैं, इसमें सुबह-सवेरे मंदिर जाकर महिलाएं और लोग पूजा करते हैं। नाश्ते में केला पापड़ खाने की परंपरा है। इसके बाद लोग ओणम पुष्पकालीन बनाना शुरू करते हैं। दूसरा दिन चिथिरा का होता है, जिसमें महिलाएं पुष्पकालीन में नए फूलों को जोड़ने का काम करती हैं। तीसरे दिन में दसवें दिन के लिए खरीदारी की जाती है। चौथे दिन कई विसाकम होता है, जिसमें काफी खरीदारी की जाती है। साथ ही दसवें दिन के लिए, कई महिलाएं मिल कर, आपसे में बैठ कर चिप्स और अचार तैयार करती हैं। पांचवें दिन विश्व प्रसिद्ध नौका दौड़ प्रतियोगिता का आयोजन किया जाता है। इसे वल्लमकली के नाम से जाना जाता है। छठें दिन थिक्रेता में सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन होता है। लोग आपस में बधाई देते हैं। आठवें दिन, लोग मिट्टी से पिरामिड के आकार की मूर्तियां बनाते हैं। इन मूर्तियों को मां कहकर बुलाया जाता है और इन्हें पुष्प अर्पित किया जाता है। नौवें दिन को प्रथम ओणम कहते हैं, क्योंकि इसी दिन लोग मानते हैं कि राजा महाबली अब आएंगे और दसवें दिन राजा बलि का धरती पर आगमन होता है और थाली में कई तरह के पकवान सजाये जाते हैं। इसे दूसरे ओणम के नाम से भी जानते हैं।