दुर्गा पूजा नारी शक्ति का तो परिचायक है ही, साथ ही यह भारत की संस्कृति और सभ्यता को भी दर्शाता है, इस पूजा में प्राकृतिक चीजों को भी खासतौर से महत्व दिया जाता है। ऐसे में हम आपको इससे जुड़े कुछ ऐसे दिलचस्प और अनसुने प्रचलन के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसमें उल्लास के साथ आपसी प्रेम नजर आता है और साथ ही चेहरे पर हमेशा मुस्कान बनी रहे, इस बात को भी दर्शाता है, तो आइए जानें इसके बारे में विस्तार से
ढाक
देवी दुर्गा के मायके के रूप में जाना जाने वाली संस्कृति यानी बांग्ला संस्कृति में दुर्गा पूजा के दौरान ढाक का भी खास महत्व होता है। दरअसल, ढाक एक तरह का ढोल होता है, जिसे मां के मान- सम्मान और उनकी शक्ति को अर्पित करते हुए, उनकी आरती के दौरान बजाया जाता है। इसकी ध्वनी ढोल-नगाड़े जैसी होती है और इसके बिना मां की पूजा सम्पूर्ण नहीं मानी जाती है। पूरे पश्चिम बंगाल में इसकी धूम होती है। यह शोर नहीं होता है, बल्कि सकारात्मक ऊर्जा ही चारों दिशाओं में फैलाया जाता है।
धुनुची डांस
दुर्गा पूजा के दौरान किये जाने वाला धुनुची नृत्य सबसे खास होते हैं, इसमें लोग भारी संख्या में साथ आते हैं। यहां दिलचस्प बात यह है कि धुनुची एक प्रकार का मिट्टी से बना बर्तन होता है, जिसमें नारियल के छिलके जलाकर मां की आरती की जाती है। लोग दोनों हाथों में धुनुची लेकर नृत्य करते है। इसमें प्रकृति की यही कोशिश होती है कि नेगेटिव एनर्जी को खुद से दूर किया जाये और सिर्फ सकारात्मक ऊर्जा ही लोगों के आस-पास रहे।
गरबा और डांडिया
गरबा और डांडिया पहले केवल गुजरात तक ही सीमित था, लेकिन अब इसे लोग पूरे देश में खेलते हैं, यह नृत्य ही हैं, इसकी इतनी लोकप्रियता बढ़ने की वजह ही यही है कि इसमें न सिर्फ सामूहिक हर्षोउल्लास का मजा आता है, बल्कि आप लगातार एक दूसरे के साथ सामंजस्य बनाते हुए नजर आते हैं। आप इस पर्व में भी देखेंगे कि किस तरह से इसमें भी प्रकृति की अहम भूमिका है। दरअसल, नवरात्र शुरू होते ही, पहले दिन गरबा-मिट्टी के घड़े को फूल-पत्तियों और रंगीन कपड़ों के साथ सितारों से सजाया जाता है और इसके बाद की जाती है घट की स्थापना। इसकी खासियत यह होती है कि इसमें चार ज्योतियां प्रज्वलित की जाती हैं और महिलाएं उसके चारों ओर हाथ से ताली बजाती हुईं झूमती-नाचती हैं।
पुष्पांजलि
दुर्गा पूजा के दौरान पुष्पांजलि भी खासतौर से दी जाती है। यह परंपरा खासतौर से उत्तर भारत, बिहार, झारखंड जैसे जगहों पर सबसे अधिक दी जाती है। अष्टमी और नवमी को खासतौर से इसकी पूजा की जाती है और इसे बेहद खास माना जाता है। इसमें हाथों में फूल लेकर, मां की आराधना होती है और फिर मंत्रोचारण के साथ यह पूजा खत्म होती है। तो यहां भी प्राकृतिक फूलों को अहमियत दी जाती है, जो इस बात का भी संदेश है कि हमारी कोशिश हो कि हम प्राकृतिक चीजों से जुड़े रहें और अपनी पृथ्वी को बचाएं।
कन्या पूजन
पंजाब, उत्तर भारत और उत्तराखंड में भी नवमी और अष्टमी के दिन, देवी दुर्गा के नौ रूपों को मानते हुए, कन्या पूजन करवाया जाता है, ऐसे में बच्चियों को केले के पत्ते पर खीर, पूरी, खिचड़ी और कई तरह के भोग खिलाए जाते हैं। यह पूजन इस बात का तो प्रतीक है ही कि महिलाओं का सम्मान हो, साथ ही प्रकृति के साथ जुड़े रहना भी सिखाती है, जिस तरह से खाना किसी और चीज में नहीं, बल्कि केले के पत्ते में परोसा जाता है।