मातृ दिवस यानी की मदर्स डे खास तौर पर मां के त्याग, हिम्मत और समर्पण को समर्पित होता है। मां क्या है इसकी कोई परिभाषा नहीं है। मां मूल्यवान है। मां को समझ पाना मुश्किल है, क्योंकि मां में कौशल है, अपनी ममता से हमारे सारे दुखों पर अपनी शीतल छाया बरसाने का। मां के लिए जितना भी लिखा जाए, वो कम है। देखा जाए, तो मां के होने का उत्सव मनाने के लिए किसी एक दिन की आवश्यकता नहीं होती है, क्योंकि मां से ही हमारे जीवन का हर दिन है। फिर भी हर साल की तरह इस साल भी 12 मई को मातृत्व का सबसे खास दिन मनाया जा रहा है। क्या आप जानते हैं कि आखिर क्यों हर बार मई के दूसरे रविवार का दिन मां को समर्पित होता है या यह मदर्स डे का उत्सव क्यों मनाया जाता है। दरअसल, यह एक खास दिन होता है, जब सभी को अपनी मां के प्रति अपनी भावनाओं को जाहिर करने का मौका देता है। आइए जानते हैं इसका इतिहास और साथ ही मां के सेहत को क्यों महत्व देना हम सभी के लिए जरूरी है, इससे जुड़े अध्ययनों के बारे में।
मदर्स डे का इतिहास
माना जाता है कि मदर्स डे को लेकर एक खास कहानी है। कई लोगों का मानना है कि अमेरिका के वर्जिनिया में एना जार्विस नाम की महिला ने मदर्स डे की शुरुआत की थी। ऐसा माना जाता है कि एना को उनकी मां प्रेरित करती थीं और वह अपनी मां से बहुत प्यार करती थीं। अपनी मां से एना किसी भी हालत में दूर नहीं होना चाहती थीं, इसलिए उन्होंने कभी शादी नहीं की। अपनी मां के निधन के बाद उनके प्रति अपने प्यार और सम्मान को दिखाने के लिए उन्होंने इस खास दिन की शुरुआत की। यह भी जान लें कि मदर्स डे को लेकर एक और कहानी काफी प्रचलित है कि मदर्स डे सेलिब्रेशन की शुरुआत ग्रीस से हुई थी। ग्रीस में मां का सम्मान बहुत अधिक किया जाता है। इस वजह से मदर्स डे की शुरुआत हुई। फिलहाल यह भी जान लेते हैं कि आखिर क्यों मदर्स डे रविवार को मनाया जाता है। इसके पीछे की वजह यह है कि 9 मई 1914 को अमेरिकी प्रेसिडेंट वुड्रो विल्सन ने एक कानून पास किया था। इसी कानून में लिखा था कि मदर्स डे रविवार को मनाया जाएगा। इसी के बाद से भारत के साथ दुनिया में मदर्स डे मई के दूसरे रविवार को सेलिब्रेट किया जाता है।
क्या है महिलाओं की सेहत से जुड़े जरूरी अध्ययन
महिलाएं अपने उम्र के उस पड़ाव पर पहुंचती हैं, जब वह न केवल बेटी, बहू, बहन या फिर दोस्त बनकर रह जाती हैं, बल्कि उनकी जिंदगी में मां होने का अहसास भी जुड़ जाता है। लेकिन इसी के साथ बीते कुछ साल में महिलाओं से जुड़े कई ऐसे अध्ययन सामने आए हैं, जो यह बताते हैं कि महिलाएं अपने सेहत से लापरवाही नहीं कर सकती हैं।
घर से बाहर नहीं निकलती हैं महिलाएं
द प्रिंट डॉट इन की एक खबर अनुसार साइंस डायरेक्टर की पत्रिका ट्रैवल बिहेवियर एंड सोसायटी अध्ययन को जेंडर गैप इन मोबिलिटी आउटसाइड होम इन अर्बन इंडिया नाम से प्रकाशित किया गया। इस अध्ययन में पाया गया है कि शहर में रहने वाली महिलाओं का कहना है कि वे दिन में एक दफा भी अपने घरों से बाहर नहीं निकलती हैं। फिर ऐसी कई सारी ऐसी महिलाएं हैं, जो घरेलू जिम्मेदारी को घर के अंदर रहकर निभा रही हैं और काम के लिए घर से बाहर कदम नहीं रखती हैं। इस अध्ययन में पाया गया है कि 47 प्रतिशत महिलाओं ने दिन में कम से कम एक बार अपने घर से नहीं निकलने के बारे में बात की है, वहीं पुरुष की गिनती 87 प्रतिशत के करीब है। यही वजह है कि महिलाओं की तुलना में पुरुष घर पर काफी कम रहते हैं। इस अध्ययन में यह भी परिणाम सामने आया है कि महिलाएं इस वजह से घर से बाहर नहीं निकलती हैं, क्योंकि उनके पास घर से बाहर आने के लिए कोई मजबूत वजह नहीं है।
कामकाजी महिलाएं भी तनाव और डिप्रेशन का शिकार
एसोसिएटेड चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री की एक अध्ययन के अनुसार 68 प्रतिशत कामकाजी महिलाएं हाई ब्लड प्रेशर, मोटापा और तनाव से पीड़ित हैं। यह सर्वे 21 साल की उम्र से लेकर 52 साल की महिलाओं के बीच किया गया है। यह भी सामने आया है कि अधिक घंटों तक काम करने के कारण 75 प्रतिशत कामकाजी महिलाएं तनाव और डिप्रेशन का शिकार हो जाती हैं। इस रिसर्च में यह भी सामने आया है कि महिलाएं खुद का ध्यान नहीं रख पाती हैं, ऐसे में उन्हें कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है। यह भी नतीजा सामने आया है कि 70 फीसदी से अधिक महिलाओं को 50 की उम्र तक फाइब्रॉएड होने का खतरा बढ़ जाता है। वाकई, महिलाओं के लिए किया गया यह रिसर्च चौंकाने वाला है।
महिलाओं पर जिम्मेदारी का अधिक दबाव
हाल ही में सामने आयी एक सर्वे रिपोर्ट के अनुसार दफ्तर में महिला कर्मचारियों का मानसिक स्वास्थ्य पुरुष कर्मचारियों के मुकाबले अधिक प्रभावित होता है। अध्ययन में पाया गया है कि भारत में 2 में से एक कर्मचारी किसी न किसी तरह की मानसिक स्वास्थ समस्या के जोखिम में रहता है। हेडस्पेस हेल्थ की एक रिपोर्ट अनुसार 83 प्रतिशत सीईओ और 70 प्रतिशत कर्मचारियों ने थकान, तनाव और मानसिक परेशानी के कारण छुट्टी ली है। यह भी ज्ञात हुआ है कि 41 प्रतिशत पुरुषों की तुलना में 56 प्रतिशत महिलाएं किसी न किसी प्रकार की जोखिम का सामना कर रही हैं। इस अध्ययन के अनुसार माना जा रहा है कि महिलाओं पर जिम्मेदारी का अधिक दबाव होता है। इस वजह से उन्हें परिवार और काम को संभालने के दौरान कई सारी मानसिक परेशानी का सामना करना पड़ता है।
महिलाओं में डायबिटीज का खतरा कई गुना
ग्लोबल डायबेटिक कम्युनिटी की वेबसाइट के अनुसार महिलाएं अगर प्लास्टिक की बोतल में पानी पीती हैं, तो उन्हें टाइप 2 डायबिटीज का खतरा और अधिक बढ़ जाता है। इस अध्ययन में माना गया है कि प्लास्टिक में फटालेट्स केमिकल होता है। इसके संपर्क में आने से महिलाओं में डायबिटीज का खतरा कई गुना बढ़ जाता है। ज्ञात हो कि 1300 महिलाओं पर इस अध्ययन को किया गया था। इस अध्ययन को पूरा करने के लिए 6 साल तक महिलाओं की सेहत की लगातार जांच की गई है। इसके बाद पाया गया कि जो भी महिलाएं फटालेट्स केमिकल के संपर्क में आयी हैं, उनमें से 63 प्रतिशत महिलाएं डायबिटीज से पीड़ित पाई गई हैं।
सैनिटरी नैपकिन का इस्तेमाल
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण की रिपोर्ट में यह सामने आया है कि देश में 64 फीसदी महिलाएं ऐसी हैं, जो कि सैनिटरी नैपकिन का इस्तेमाल करती है। यह चौंकाने वाला है कि 50 फीसदी महिलाएं केवल कपड़े का प्रयोग करती हैं, वहीं 15 फीसदी महिलाएं देसी नैपकिन का प्रयोग पीरियड्स के समय करती हैं। इस अध्ययन में पाया गया है कि 78 फीसदी महिलाएं केवल पीरियड्स में साफ तरीके का इस्तेमाल करती हैं। यह भी जान लें कि बिहार, मध्य प्रदेश और मेघालय में महिलाएं बचाव के लिए देसी सैनिटरी के साथ टैम्पोन का इस्तेमाल करती हैं।
महिलाएं कर रही हैं, कई बीमारियों का सामना
महिलाओं की सेहत को लेकर एक सर्वेक्षण किया गया है। इस अध्ययन में पाया गया है कि 51 प्रतिशत महिलाएं ऐसी हैं, जो कि पीसीओएस और पीरियड्स से जुड़ी बीमारियों के साथ कई अन्य बीमारियों का सामना कर रही हैं। इस अध्ययन में 21 प्रतिशत के करीब महिलाओं ने इसे स्वीकार भी किया है। माना गया है कि महिलाओं पर बढ़ती हुई जिम्मेदारी और महिलाओं की बढ़ती हुई संख्या और शिक्षा के बढ़ते हुए स्तर को जिम्मेदार माना गया है। बता दें कि यह अध्ययन 3 हजार महिलाओं से किए गए सवाल पर आधारित है।
महिलाओं को 50 की उम्र तक फाइब्रॉएड होने का खतरा
एसोसिएटेड चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री की एक अध्ययन के अनुसार 68 प्रतिशत कामकाजी महिलाएं हाई ब्लड प्रेशर, मोटापा और तनाव से पीड़ित हैं। यह सर्वे 21 साल की उम्र से लेकर 52 साल की महिलाओं के बीच किया गया है। यह भी सामने आया है कि अधिक घंटों तक काम करने के कारण 75 प्रतिशत में हो जाती हैं। इस रिसर्च में यह भी सामने आया है कि महिलाएं खुद का ध्यान नहीं रख पाती हैं, ऐसे में उन्हें कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है। यह भी नतीजा सामने आया है कि 70 फीसदी से अधिक महिलाओं को 50 की उम्र तक फाइब्रॉएड होने का खतरा बढ़ जाता है। वाकई, महिलाओं के लिए किया गया यह रिसर्च चौंकाने वाला है।