‘गांधी जी हमेशा कहा करते थे, जहां संगीत नहीं, वहां सामूहिकता नहीं, जहां सामूहिकता नहीं, वहां सत्याग्रह नहीं, जहां सत्याग्रह नहीं, वहां सुराज नहीं ‘
चंदन आठ लोक भाषाओं में गायन करती हैं, लेकिन पहचान बिहारी लोकभाषाओं और उसमें भी विशेष रूप से भोजपुरी लोकगायन से है। गौरतलब है कि भोजपुरी के अश्लील होते जाने, स्त्री विरोधी होते जाने के दौर में चंदन कुछ चुनिंदा गायक कलाकारों में हैं, जो धारा के खिलाफ चलते हुए अपनी पहचान बनाने में सफल हो रही हैं। कई टीवी सिंगिंग शो और वेब सीरीज में भाग लेने के बाद स्वतंत्र गायिका के तौर पर 'पुरबियातान' नाम से अपना बैंड संचालित कर रही हैं। भोजपुरी की सबसे पुरानी संस्था पश्चिम बंग भोजपुरी परिषद ने भोजपुरी कोकिला का उपनाम दिया है। ऐसे में गांधी जयंती के अवसर पर आइए जानें विस्तार से कि आज के दौर में भी संगीत के माध्यम से गांधी के रूप में प्रासंगिक बनाया जा सकता है।
गांधी की धरती पर ही मिले, गांधी के गीत
चंदन बताती हैं कि करीब सात-आठ साल पहले की बात है, जब मुझे महाराष्ट्र के वर्धा में स्थित महात्मा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय में छात्रों ने विश्वविद्यालय में बुलाया था। वहां जाने लगी तो मन में आया कि गांधी की भूमि पर जा रही हूं, तो गांधी का कोई गीत लेकर जाऊं। तब एक गीत मिला। कैलाश गौतम का लिखा हुआ। गान्हीजी गीत। उसकी सीडी मैं तैयार कर ले गयी। वहां गायी। लोकार्पित की। लोगों को खूब पसंद आया। उसके बाद, दिल्ली के इंडिया हैबिटेट सेंटर में एक शो करने गयी थी। वहां पर मैं एक नदी गीत की सीडी भी लेकर गयी थी। वह नदी गीत प्रसिद्ध गांधीवादी मुरारी शरण का गीत था- नदिया धीरे बहो। वहां पर प्रसिद्ध गांधीवादी पर्यावरणविद अनुपम मिश्र से मिलना था। अनुपमजी के हाथों उसका लोकार्पण करवाना था। वे आये। उन्हें गीत सुनाई। सीडी दी। उन्होंने ही मुझे सबसे पहले कहा कि यह गीत तो बहुत अच्छा है, तो अगर गांधी में रुचि है तो उन गीतों को खोजना शुरू करो, जो किताबों में नहीं है। लोगों की स्मृति में है। अनुपमजी की बातों से प्रेरणा मिली। बिहार वापस लौटी, तो चंपारण गयी। तब चंपारण सत्याग्रह शताब्दी वर्ष की तैयारी चल रही थी। चंपारण गांधी के सत्याग्रह की भूमि है। वहां कुछ गीत मिले। फिर वहीं एक शो की और गायी। लोगों ने खूब पसंद किया। फिर तो इसमें मन ही रमता गया। जगह-जगह जाकर गीतों की खोज करने लगी और गीतों को कंपोज कर गाने लगी।
गांधी तो संगीत से जुड़े रहने वाले व्यक्ति थे
चंदन आगे बताती हैं कि गांधी पर गीत अनंत हैं। दरअसल, मैं गांधीजी को उनके संगीत की रुचि से जितना समझ पाई हूं, गांधी दुनिया के इकलौते महापुरुष हुए, जिन्होंने संगीत जगत को इतना प्रभावित किया। उन पर फिल्मी गीतों की भी भरमार है। उनसे हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत भी प्रभावित हुआ। उनसे लोकगीत भी प्रभावित हुए। गांधी तो संगीत के ही व्यक्ति थे। बिना भजन-प्रार्थना वह रहते कहां थे। आप गांधी के जीवन को जानेंगी, तो मालूम चलेगा कि गांधी बचपन से ही संगीत से जुड़े और फिर आजीवन वे संगीत से बंधे रहे। जहां रहे वहां संगीत का माहौल रहा। वह कहते थे कि जहां संगीत नहीं, वहां सामूहिकता नहीं, जहां सामूहिकता नहीं, वहां सत्याग्रह नहीं, जहां सत्याग्रह नहीं, वहां सुराज नहीं। दरअसल, गांधी पर पहले से ही लोग गाते रहे हैं। गांधी से तो पंडित विष्णु दिगंबर पलुस्कर, एम एस सुबुलक्ष्मी जैसे चोटी के कलाकार जुड़े रहे। ऐसे में मेरा ध्यान ज्यादातर लोकगीतों की ओर गया। मैं गांधी से जुड़े लोकगीतों में ज्यादा रुचि ली।
गांधी और उनके गीत किसी एक भाषा में सीमित नहीं
चंदन का मानना है कि गांधी केवल एक भाषा तक सीमित नहीं रहे हैं। वह भोजपुरी, मैथिली, अवधि, मगही, गुजराती,राजस्थानी और ऐसी सभी लोकभाषाओं के गीत से जुड़े रहे हैं। तो, गीत गायन की तरह ही मेरा जोर इस पर रहता है कि हम गांधी को संगीत के जरिये समझे, इसलिए मैंने गांधी कथागीत की श्रृंखला शुरू की। यानी गांधी से जुड़े जो गीत सुनाती हूं, उस गीत की कथा भी बताती हूं। जैसे यह बताने की कोशिश करती हूं कि गांधी जब चरखा आंदोलन चलाये, तो किस तरह से गांव गांव तक बात फैली और महिलाएं विवाह आदि के गीत भी चरखा और गांधी पर गाने लगीं। इसी तरह कजरी गानेवाली महिलाएं कजरी गीतों में गांधी को लाने लगीं। इसके साथ ही यह भी कोशिश रहती है कि कई ऐसे गीत गांधी के समय में ही गांधी पर रचे गये, जो गाये नहीं गये थे, लेकिन वे गीत महत्वपूर्ण थे।
मिथिला इलाके की महिलाओं ने गांधी पर गीत रचकर किया गांव- गांव आंदोलन
चंदन बताती हैं कि गांधी जब काशी गये तो वहां उन्होंने मशहूर गायिका विद्याधरी बाई से मुलाकात की। उन्होंने विद्याधरी बाई से कहा कि राष्ट्रीय आंदोलन में हिस्सा लीजिए आपलोग भी। गांधी की इस पहल पर पहली बार काशी तवायफ संघ का गठन हुआ। गांधी कलकत्ता पहुंचे तो वे गौहर जान से मिले। गौहर जान से भी गांधी ने कहा कि आप भी मदद कीजिए आजादी की लड़ाई में। गांधी के कहने पर गौहर जान ने स्पेशल कांसर्ट किये राष्ट्रीय आंदोलन के लिए। गांधी बिहार पहुंचे, तो वहां उन्होंने सामान्य महिलाओं से आग्रह किया कि वे भी जुड़ें। उस वक्त बिहार के मिथिला इलाके की महिलाओं ने गांधी पर गीत रचकर गांव- गांव आंदोलन चलाना शुरू किया। अपना गहना, जेवर सब दान करने लगीं। इस तरह के ही अनेक गीत। एक उदाहरण के तौर पर रसूल मियां का गीत बताना चाहूंगी। वे तो गांधी के भक्त थे। उन्होंने गांधी के आंदोलन को गीतों से आगे बढ़ाया। गांधी जिस दिन दुनिया से विदा हुए, उस दिन उन्होंने गांधी पर कोलकाता (तब कलकत्ता) में गीत गाया। इस तरह के अनेक गीत हैं। जैसे एक भजन हम सबलोग सुनते हैं। अवधि भजन है- उठ जाग मुसाफिर भोर भई। इस गीत की कहानी भी दिलचस्प है। गांधी जब यरवदा जेल में बंद थे तो कैदियों को एकजुट करने के लिए यह जेल में ही गाना शुरू कर दिये थे। उनके साथ सभी कैदी गाने लगे थे। गांधी संगीत को सिर्फ मनोरंजन नहीं बल्कि सृजन और आंदोलन का औजार मानते थे, मनुष्यता के निर्माण का औजार मानते थे, मैं उसी सिद्वांत को लेकर गांधी गीतों का चयन करती हूं और गाती हूं।
अंग्रेजों को गीतों के माध्यम से करती थी गुस्से का इजहार
चंदन बताती हैं कि महिलाएं गांधी जी के साथ उनके आंदोलन में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेती थीं। गांधी जब बिहार के चंपारण में गये तो वहां की महिलाएं तो रातो रात-गीत रचकर गाने लगीं। महिलाएं वहां अंग्रेजों को चिढ़ाने के लिए गाती थीं कि अब गांधी आ गये हैं, तुम्हारा कोठी बिक जाएगी। हमारे देश में जो मजा उड़ा रहे हो, सब खत्म हो जाएगा। इतना ही नहीं, बल्कि गांधी के वहां जाने के बाद विवाह गीतों में भी गांधी को दुल्हा के रूप में ढालकर गीत गाने लगीं। ऐसे गीत महिलाएं अंग्रेजों को चिढ़ाने के लिए गाती थीं। इसी तरह गांधी ने जब चरखा लाया, तो सबसे ज्यादा महिलाएं ही जुड़ीं। ऐसे अनेक गीत मिलते हैं, जिसमें महिलाएं अपने पतियों को कहती हैं कि मैंने चरखा सिख लिया है, तुम भी सिखो और इसी से कमायेंगे। गांधी कह रहे हैं कि अपने गांव में ही रहकर आंदोलन की लड़ाई में भाग लेना है। अंग्रेजों के यहां काम करने नहीं जाना है। गांधी के प्रभाव में तो जमींदारों की पत्नियां भी गीतों के माध्यम से अपने पतियों को कहना शुरू करती हैं कि जमींदारी छोड़ दो। गांधी कह रहे हैं कि खादी पहनकर, चरखा चलाकर ही बड़ा बनना है, जमींदार बनकर नहीं।
शुरू में लोगों ने कहा कि गांधी को कौन सुनेगा, लेकिन …
चंदन कहती हैं कि मैंने जब गांधी गीतों को गाना शुरू किया, तो सबसे पहले तीन प्रसिद्ध गांधीवादियों के पास गयी। उन्हें सुनाने। उसके बाद गांधी गीतों को गाने का अभियान शुरू किया। अनेक लोगों ने कहा कि बाजार की डिमांड के अनुसार गाओ। क्या गांधी के गीत को लेकर चल रही हो। कौन सुनेगा और ऐसे गीतों के गायन से पिछड़ जाओगी। लेकिन तब भी मेरा जवाब यही था कि पब्लिक डिमांड के अनुसार ही क्यों गाऊंगी। पब्लिक का डिमांड बदले, इसके लिए भी थोड़ी कोशिश करनी चाहिए। अनेक किस्म के अनुभव रहे गांधी गीतों को गाते हुए। गांधी गीतों को लेकर अनेक शो किया है मैंने। गुजरात, दिल्ली,बिहार,यूपी समेत अनेक जगहों पर। युवा नहीं सुनना चाहते ऐसे गीत, यह मैं नहीं मानती। मेरा अनुभव यह रहा है कि संगीत के जरिये गांधी को जानने में सबकी दिलचस्पी है। मैं जहां भी गयी, लोगों ने ध्यान से सुना। गांधी के संगीत कथा को भी और गीतों को भी। गीत किसी भी भाषा में हो, लोग पहले उस गीत की कथा सुनकर उससे जुड़ते हैं।
लोग गांधी को संगीत के जरिये भी जानें
चंदन कहती हैं कि गांधी के गीतों के माध्यम से बस साधारण तरीके से यह बताने की कोशिश करती हूं कि गांधी के सभी पक्षों पर हमेशा बात होती है, लेकिन उनके संगीत पक्ष पर बात नहीं होती। तो लोग गांधी को संगीत के जरिये भी जानें। वे दुनिया के इकलौते नेता हैं, जो संगीत को बेपनाह प्यार करते थे। उनके न रहने पर फिल्मी संगीत ने कई अमर गीत उनकी याद में रचे। उनके न रहने पर भारतीय शास्त्रीय संगीत में उनकी याद में दो धुन गांधी के नाम पर बने। दूसरी बात यह है कि मैं यह बताने की कोशिश करती हूं कि संगीत सिर्फ मनोरंजन का माध्यम नहीं। यह मनुष्यता का निर्माण करता है। आपकी संगीत की रुचि से आपके व्यक्तित्व का पता चलता है। गांधी ने अपने आश्रम भजनावली के लिए जिन गीतों का चयन किया, उससे पता चलेगा कि गांधी कैसे संगीत को धर्म, संप्रदाय, जाति,भाषा से परे एक मुकम्मल धर्म मानते थे संगीत को। उनके गीतों के चयन से गांधी के मन मिजाज को समझ सकते हैं कि मनुष्यता के कितने बड़े हिमायती थे। फिर यह बताने की कोशिश करती हूं कि गांधी ने कहा था कि भजन भी वैसे गाएं, जो मनुष्य में भय का भाव ना पैदा करे, उनके गीत संगीत ने कभी लोगों में ईश्वर का डर भरने की कोशिश नहीं की। साथ ही उनकी यह भी सोच थी कि स्त्रियों का अपमान न करें या उन्हें छोटा नहीं समझें।
एक टेक्सॉडियो बुक लाने पर विचार
चंदन बताती हैं कि वह टेक्सॉडियो लेकर आएं। वह कहती हैं कि मैं इसे आजीवन गाना चाहती हूं। इन गीतों का निरंतर विस्तार चाहती हूं। अभी एक टेक्सॉडियो बुक लाने पर विचार कर रही हूं, जिसमें गांधी से जुड़े गीत संकलित होंगे और उन गीतों के नीचे सभी गीतों के गायन का ऑडियो भी, ताकि सामान्य लोग भी गांधी के गीत गा सके। गीतों के जरिये गांधी को याद कर सकें। मैंने योजना कोरोना से पहले की ही थी कि मैं अधिक से अधिक स्कूल,कॉलेज में जाकर छात्रों और युवाओं के बीच गांधी यात्रा निकालकर गांधी गीत गाऊंगी। संगीत के जरिये गांधी के व्यक्तित्व-कृतित्व को बताने समझाने की कोशिश करूंगी। एक बार फिर इस योजना पर काम कर रही हूं। और फिलहाल, गांधी गीतों को लेकर लड़कियों और महिलाओं का एक बैंड बना रही हूं, जो गांधी गीत का ही गायन करेंगी। चरखा,सत्याग्रह,सुराज, सत्य, अहिंसा के गीत।