भगवान गणेश को बुद्धि, सिद्धि और रिद्धि का प्रतीक माना जाता है। भगवान गणेश उन देवताओं में से एक रहे हैं, जिन्होंने हमेशा ही बराबरी में यकीन किया है। इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि उनकी जिंदगी में महिलाओं का खास योगदान रहा है। उनकी उत्पत्ति से लेकर, उन्होंने जीवन कल्याण के लिए जो भी कदम उठाए हैं, उनमें महिलाओं का दृष्टिकोण जरूर रहा है, तो आइए उन महिलाओं पर नजर डालते हैं, जो गणेश के जीवन में अहम रही हैं और उन्होंने इन महिलाओं से कुछ न कुछ जरूर सीखा है।
माता पार्वती
भगवान गणेश का अस्तित्व ही माता पार्वती की वजह से ही आया। यह बात तो जगजाहिर है। पार्वती ने बेटे के रूप में गणेश को स्वीकारा और साथ ही उन्हें मां की तरह प्यार तो दिया ही। लेकिन सबसे खास बात यह है कि उन्होंने गणेश को हमेशा ही शक्तिशाली बन कर, विनाशकारियों का नाश करना सिखाया और गणेश भी मां भक्त बन कर, सबकुछ सीखते गए। भगवान गणेश ने हमेशा ही मां पार्वती को सम्मान दिया, हमेशा उनकी बातों को और सिखाये गए गुरों को अपनी जिंदगी में शामिल करें।
रिद्धि और सिद्धि
ऐसी मान्यता रही है कि रिद्धि से शादी करने से गणेश ने शादी करने से उन्हें अपनी बुद्धि और ज्ञान मिला है और इस वजह से उन्हें बुद्धि प्रदान करने वाले भगवान के रूप में जाना जाता है। रिद्धि का बहुत अधिक प्रभाव गणेश पर रहा है। वह हमेशा ही अपने सूझ-बूझ से काम लेते आये हैं, ऐसे कई संदर्भ मिलते हैं, जब भगवान ने बड़ी परेशानियों का हल अपनी सूझ-बूझ से की है। वहीं सिद्धि का मतलब है समृद्धि है, भगवान गणेश को अपने व्यक्तित्व में यह गुण रिद्धि से मिली है। इसका मतलब यह है कि जिस घर में गणेश होते हैं, वहां बुद्धि और समृद्धि दोनों का ही वास होता है। इस लिहाज से यह बात भी साफ होती है कि महिलाएं जिस घर में होती हैं, उस घर में बुद्धिमानी वाली बातें, समझदारी वाली बातें होती ही हैं,, तो दूसरी तरफ समृद्धि भी आती है। इस तरह से भगवान गणेश ने रिद्धि और सिद्धि से शादी कर उनके गुणों को अपने जीवन में शामिल किया और जीवन के कई चरण में सफलता हासिल की।
विनायकी
इस बारे में काफी कम लिखा गया है। लेकिन यह सच है कि हैं विनायक गणेश के स्त्री रूप को विनायकी के रूप में जाना जाता है। देवी पुराण में इस बात के बारे में लिखा गया है कि विनायकी गणेश की शक्ति का ही एक रूप हैं, जिसमें बाधाओं को दूर करने की ही क्षमता है और गजनानी, विघ्नेशी और गजरूपा गणपति भगवान के स्त्री रूप हैं।
माता लक्ष्मी
माता लक्ष्मी की पूजा कभी गणेश के बगैर नहीं होती है। लक्ष्मी के दत्तक पुत्र कहलाते हैं गणेश। माना जाता है कि जिसके पास धन यानी लक्ष्मी हों और जिनके पास उसे खर्च करने और बचाने की बुद्धि हो, वहीं सबसे बुद्धिजीवी या बुद्धिमान माना जाता है। धार्मिक रूप से यह माना जाता है कि यह मां लक्ष्मी का ही वरदान था, जिसमें उन्होंने गणेश को यह बात कही कि लक्ष्मी के साथ उनके दत्तक पुत्र की पूजा जरूर हो, तभी पूजा को सफल माना जायेगा और क्योंकि माता सदैव अपने पुत्र के दाहिनी ओर विराजमान होती हैं। इसलिए लक्ष्मी-गणेश की पूजा इस तरह होती है।
माता दुर्गा
दुर्गा का ही स्वरूप पार्वती और पार्वती का ही स्वरूप दुर्गा मानी जाती हैं, ऐसे में मां दुर्गा को भगवान गणेश की मां कहा जाता है और उन्हें गणेश जननी के रूप में जाना जाता है। इसलिए जब दुर्गा पूजा होती है, तो मान्यता है कि मां अपने मायके आ रही हैं और उनके साथ उनके बच्चे भी होते हैं, इसलिए पंडालों में मां के साथ भगवान गणेश की भी मूर्ति रखी जाती है।