भारत में एक ही समय में बिहू, संक्रांत और पोंगल मनाये जाते हैं और अलग-अलग प्रांत में इसे अलग ही तरीके से हर्षोल्लास के रूप में मनाया जाता है। जब सूर्य उत्तरायन होकर मकर रेखा से गुजरता है, तब यह दिन मनाया जाता है। यह पर्व हिन्दू धर्म के प्रमुख त्योहारों में शामिल है। ऐसे में आइए एक नजर डालते हैं कि अलग-अलग प्रांतों की संस्कृति में इस दिन को किस तरह से मनाते हैं।
मकर सक्रांति में है पतंगबाजी का महत्व
दरअसल, मकर संक्रांति पूर्ण रूप से सूर्य देवता को समर्पित त्यौहार होता है, जिसे भारत में बहुत ही धूमधाम से मनाया जाता है। मकर संक्रांति का संबंध सीधा पृथ्वी के भूगोल और सूर्य की स्थिति से है। ऐसे में यह हिंदू त्यौहारों में प्रमुख त्यौहार है, यह त्यौहार उत्तरायण के शुभ समय के शुरुआत का प्रतीक माना जाता है। ऐसे में पतंगबाजी और संक्रांति एक दूसरे के पूरक हैं। पतंगबाजी इस बात का भी संकेत होता है कि अब सर्दियों का अंत होगा। इसी दिन रबी की फसल की कटाई के जश्न के रूप में मनाया जाता है। कुछ मान्यताओं के अनुसार इस दिन इसलिए पतंगबाजी की जाती है, ताकि लोग सूर्य की किरणों के सम्पर्क में आ सकें। धूप के संपर्क में आने मात्र से त्वचा के संक्रमण और सर्दी से जुड़ी समस्याओं से राहत मिल पाए, क्योंकि इससे विटामिन डी भी मिलती है। साथ ही यह देवताओं को धन्यवाद कहने का एक तरीका है। ऐसा माना जाता है कि छह महीने की अवधि के बाद इस संक्रांति के मौके पर देवता अपनी नींद से जाग जाते हैं। पतंगबाजी सबसे अधिक गुजरात और राजस्थान में होती है। गुजरात में इस दिन के लिए पतंगबाजी हो, इसके लिए काफी समय पहले से वे घर पर पतंग बनाने लगते हैं। गुजरात में पतंगबाजी का अंतर्राष्ट्रीय महोत्सव भी मनाया जाता है।
वहीं बिहार, झारखंड और उत्तर प्रदेश प्रांतों में 14 जनवरी या 15 जनवरी को मकर संक्रांति होती है, इस दिन काफी कुछ होता है। सुबह के समय स्नान करने के बाद, इस बात का खास ध्यान रखा जाता है कि इसके बाद, गरीबों को जरूर भोजन खिलाया जाये। वहीं महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में भी इस दिन को बखूबी सेलिब्रेट किया जाता है। इस दिन बिहार में तिलकुट खूब खाये जाते हैं, तो मध्य प्रदेश में गजक खाये जाते हैं, महाराष्ट्र में चिनिया बादाम और तिल की चिक्की खाई जाती है। काला तिल मुख्य रूप से इस दिन खाया ही जाता है।
पंजाब हरियाणा की लोहड़ी
पंजाब और हरियाणा में यह दिन 13 जनवरी यानी मकर संक्रांत के एक दिन पहले मनाई जाती है। ऐसा माना जाता है कि इस वक़्त रातें लंबी और दिन छोटे होते जाते हैं। इस दिन सभी नए कपड़े पहनते हैं और लोग बॉनफायर करते हैं, साथ ही उसके इर्द-गिर्द नाचते गाते हैं। फिर अग्नि में लोग मूंगफली, रेवड़ी, मेवे और गज्जक अर्पित करते हैं। लावा भी अर्पित किया जाता है। इसे किसानों के लिए नया साल भी माना जाता है। लोहड़ी में लोग एक दूसरे को तोहफे भी देते हैं। साथ ही लोग गाना-बजाना करते हैं।
असम का बिहू पर्व
असम में माघ महीने की संक्रांति के पहले दिन से माघ बिहू अर्थात भोगाली बिहू मनाया जाता है। इस दौरान खान-पान धूमधाम से होता है, क्योंकि तिल, चावल, नारियल और गन्ना फसल उस समय भरपूर होती है। इस दिन लोग नाचते गाते हैं और कई तरह के पिठ्ठे बनते हैं।