घर के आंगन के बीच पाटे पर बैठकर घर की महिला जब पत्थर के सिल बट्टे पर चटनी या मसाले पीसती, तो उसकी खुशबू से घर महक उठता। सिल और बट्टा का जुड़ाव हमारे देश की पाक कला में ठीक सुई और धागे सा नाता रहा है। नमक पीसने से लेकर चटनी और मसाले पीसने तक, पत्तथर के बड़े आकार के सिल और गोल आकार की बट्टा हमेशा से भारतीय रसोई का आधार रहे हैं। जान लें कि सिल-बट्टा का इस्तेमाल घर में आयोजित बड़े से लेकर छोटे कार्यक्रमों में किया जाता रहा है। राजस्थान, यूपी, बिहार, बंगाल, भारत के हर शहर और हर भाषा के लोगों की रसोई से सिल-बट्टा का जुड़ाव सदियों पुराना रहा है। पाषाण काल से के साथ ही सिल-बट्टा का उपयोग हमारी पाक कला की संस्कृति से जुड़ा हुआ है। आइए विस्तार से जानते हैं सिल-बट्टा से भारतीय महिला का जुड़ाव और संस्कृति।
स्वाद की गहराई सिल-बट्टा से आयी
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गृहिणी सुचित्रा राय कहती हैं कि मुझे लगता है सिल-बट्टा हमारी रसोई की पारंपरिक खुशबू और स्वाद को संजोने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। मैं लगभग 45 सालों से इसका इस्तेमाल कर रही हूँ और आज भी इसे ही पसंद करती हूँ। सिल-बट्टे से चटनी या मसाले पीसने पर उनकी प्राकृतिक खुशबू और स्वाद बरकरार रहता है। यह मिक्सर या ब्लेंडर की तुलना में अधिक प्रामाणिक स्वाद देता है। इसका कारण ये है कि सिल-बट्टे पर पीसने से धीरे-धीरे सामग्री का तेल और रस बाहर आता है, जो स्वाद को गहराई देता है। साथ ही स्वास्थ्य के लिहाज से भी ये फायदेमंद है क्योंकि इसे सामग्री से पोषक तत्व नष्ट नहीं होते। आज के समय में, मिक्सर-ग्राइंडर ने सिल-बट्टे की जगह काफी हद तक ले ली है। फिर भी, स्वाद के लिहाज से सिल-बट्टा उत्कृष्ट है। खासकर चटनी या मसालों के लिए।
सिल-बट्टा से जुड़ा दादी-नानी का प्यार
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जान लें कि हिंदी भाषी प्रदेशों में और दक्षिण के हिस्सों में सिल-बट्टा अलग-अलग आकार का होता है। दक्षिण में ज्यादातर चावल और चटनी पीसने के लिए गोल आकार के बड़े सिल-बट्टा होता है, वहीं बाकी जगहों पर आपको चपटे और लंबे सिल-बट्टा दिखाई देगा। कई जगहों पर चीजों को सिल-बट्टा पर पीसने के लिए उसे घुमा कर पिसा जाता है, वहीं कई जगहों पर रगड़ कर हाथों का बल देकर मसाला या चटनी पीसा जाता है। होममेकर रेखा पोरवाल ने सिल-बट्टे के साथ अपनी यादों को जाहिर करते हुए कहा कि सिलबट्टे की चटनी की बात ही कुछ और है, चाहे टमाटर की हो या फिर आम या अमरूद की। सिलबट्टे के साथ पीसने से उसका स्वाद लाजवाब हो जाता है। ऐसा स्वाद मिक्सर ग्राइंडर से कभी नहीं मिल सकता है। जब हम सपरिवार चटनी के साथ खाना खाते थे तो क्या मस्ती हुआ करती थी। सब्जी हो या न हो, कई बार चटनी से ही पूरा खाना खा लिया जाता था। कभी कभी चटनी जरूर कम पड़ जाती थी।सिलबट्टे के साथ साथ उसमें मां, बुआ, दादी, नानी का प्यार भी होता था। इस चटनी में स्वाद के साथ पौष्टिकता से भरपूर होती थी।यह भारतीय संस्कृति से हमारा जुड़ाव दर्शाती है। आज भी बहुत घरों में सिल-बट्टा का इस्तेमाल किया जाता है.
सिल-बट्टा के खाने से गहरा रिश्ता
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हालांकि मिक्सर के दौर में सिल बट्टा अब केवल पाक कला की खूबसूरती को दर्शाता हुआ एक कोने में दिखाई पड़ता है। वक्त की कमी और तकनीकी के बढ़ते हुए साधन ने हमें सिल बट्टा के जादुई स्वाद से दूर कर दिया है। इस संबंध में होम कुक जानकी वेंकटरमण कहती हैं कि मुझे याद है कि सिल-बट्टा पर हर तरह की चटनी पीसा करती थी। साउथ इंडियन परिवार से जुड़े रहने के कारण हमारे यहां सबसे अधिक नारियल की चटनी हर दिन सिल बटट्टे पर बना करती थी। हमारी दादी हमें साथ में बिठा कर सिल बट्टे पर चटनी पीसती थी। उनसे जुड़ी यह याद मैं कभी नहीं भूल सकती। आज भी हमारे घर में सिल बट्टा है, जिस पर में महीने में एक बार चटनी पीस कर उसका स्वाद लेते हैं। पूरन पोली के पूरन को भी सिल-बट्टा पर ही पीसते थे। इस तरह खाने के साथ हमारा गहरा रिश्ता सिल बट्टे के साथ ही जुड़ा है।
यह कहने में कोई गुरेज नहीं है कि सिल-बट्टा हमेशा से भारतीय पाक कला यानी कि खाना बनाने की अनमोल हिस्सा है। वर्तमान में भले ही, हम सिल-बट्टा को अपने घर के एक कोने में रखकर भूल चुके हैं, लेकिन सालों बाद भी अगर आप इसका इस्तेमाल करेंगी, तो पायेंगी कि खाने का स्वाद केवल बनाने वाले के हाथ से नहीं आता, बल्कि किसके जरिए बनाया जा रहा है, उससे भी आता है। अगर पाक कला एक फिल्म होती, तो सिल-बट्टा उस फिल्म का ऐसा सहायक कलाकार होता,जिसके बिना पाक कला यानी कि खाना बनाने की कला की फिल्म की कहानी बेस्वाद सी लगती ।