कई बार जब सुबह-सुबह अलार्म आपको ऑफिस जाने के लिए जगाने में लग जाते हैं, तब दिल पर हाथ रख कर बताइए आपको बचपन की याद आती है, जब आपको लीव लैप्स होने की चिंता नहीं होती थी, तो कभी गर्मियों की तो कभी सर्दी की छुट्टियां बिताने के लिए लंबी छुट्टियां मिल जाती थीं। बचपन में कभी कैलोरी काउंट के चक्कर में फंसना नहीं होता था, दरअसल, बचपन जिंदगी के बेहतरीन पलों में से एक होता है और जैसे-जैसे जिम्मेदारियां बढ़ती हैं, हम बचपन की उस आजादी को भूलने लगते हैं, जबकि उसे बरकरार रखना जरूरी है। तो आइए जानें कैसे वो बचपन वाली आजादी को अब भी जिंदगी में शामिल कर सकते हैं।
छुट्टियों पर जाएं
हमारी सोच के साथ एक दिक्कत आती है कि हम छुट्टियां लेने में हमेशा हिचकिचाते हैं, ऑफिस में आपको निर्धारित छुट्टियां मिलने के बावजूद आप उन्हें लेने से कतराते हैं। जबकि यह आपका हक है, इसलिए आप अपनी जिंदगी में छुट्टी लेने की प्रवृति को लागू करें, यह बेहद जरूरी है। विदेश में वर्किंग कल्चर की बात करें, तो वहां जो भी कर्मचारी रहते हैं, उन्हें एक समय के बाद छुट्टियों पर जाने के लिए दबाव दिया जाता है, ताकि उनकी मेंटल स्थिति अच्छी रही और वे अपने काम को और अधिक निपुण तरीके से कर पाएं। भारत की कंपनियों में अब भी यह संस्कृति नहीं आई है, लेकिन ऐसे में आपको खुद से अपने बारे में सोचना चाहिए और छुट्टियों पर जाना चाहिए।
छोटी खुशियां सेलिब्रेट करें
अक्सर जैसे-जैसे हमारी उम्र बढ़ती जाती है, हम छोटी खुशियों को सेलिब्रेट करना भूल जाते हैं, हमें इस बारे में पता ही नहीं होता है कि हमारी छोटी खुशियां ही जिंदगी की पूंजी होती है। हमें अपने जन्मदिन पर अक्सर ये कहने की आदत हो जाती है कि जन्मदिन मना कर क्या करना है। इसमें बड़ी चीज क्या है, हमेशा तो आता है जन्मदिन। आपको अपने अंदर के बच्चे को जिन्दा रखने के लिए जरूरी है कि छोटी खुशियों को बड़े तरीके से सेलिब्रेट करें।
नाप तौल वाली जिंदगी
यह भी एक बात है कि आप जब अपनी जिंदगी में बहुत अधिक नाप तौल कर जीने लगती हैं, तो आपको हर इंसान भी कैलक्युलेटिव लगने लगता है, हमें हर बात में साजिश या कोई बात नजर आती है, ऐसे में हम कई बार अच्छे दोस्त या अच्छे इंसानों से जुड़ना भूल जाते हैं, इसलिए जरूरी है कि हम नापे तौले तरीके से न चलें, क्योंकि यह आपकी जिंदगी में नुकसान ही पहुंचाएगा, एक बच्चे की तरह जरूरी है कि आप बेपरवाह जीना सीखें।
ईमानदार रहें
ईमानदारी की बात की जाए, तो बच्चे सबसे ज्यादा ईमानदार होते हैं, वे फायदे या घाटे के बारे में बिना सोचे, जो उनके मन में होता है, वहीं जुबान पर भी होता है। वक़्त के साथ कई बार लोगों से मिलना, दुनियादारी सीख लेने के बाद, हम बातों को तोड़-मड़ोड़ के परोसना शुरू कर देते हैं और धीरे-धीरे ईमानदारी का साथ छूटता चला जाता है। जबकि आपको अपने लिए अपने ईमान से यही आजादी मांगनी चाहिए कि आप ईमानदार बनी रहें, फिर चाहे कुछ भी स्थिति आये।
जो खाना चाहें खाएं
हालांकि आजकल सभी फिटनेस को लेकर सजग हो गए हैं, लेकिन अगर आपको कुछ भी सेहत से जुड़ी समस्याएं नहीं हैं, तो जिंदगी को ठीक वैसे ही जियें और खाएं पिएं, जैसे बचपन में खाया पिया करते थे, बहुत अधिक कैलोरी काउंट में जीवन कब बीत जाए पता नहीं होता है। इसलिए इतना अधिक न सोचें।
रिश्तों को लेकर सोच-विचार
बच्चे बेधड़क होते हैं। वे बोलने में, रिश्तों को निभाने को लेकर कभी अधिक नहीं सोचते हैं, आपको भी उम्र के साथ अधिक सोच विचार में नहीं फंसना चाहिए, सही को सही, गलत को गलत कहने की कुब्बत रखनी चाहिए, फिर कौन क्या सोचेगा, इस आडंबर में फंसने की कोशिश एकदम नहीं करना चाहिए। तभी रियल मायने में आप बचपन की तरह आजादी को महसूस करने की कोशिश कर पाएंगी।