भारतीय संस्कृति की यही पहचान है कि इस संस्कृति में सस्टेनेब्लिटी भी होती है और प्रकृति से जुड़ाव भी और इस संस्कृति की यही खासियत भी है कि यहां हर पर्व त्यौहार में आपको वो जुड़ाव भी महसूस होगा। दिवाली भी एक ऐसा ही त्योहार है, जिसमें मिट्टी से आपको जुड़ने का मौका कई रूपों में मिलता है। आइए जानें इसके बारे में विस्तार से।
दिवाली पर क्यों बनता है मिट्टी का घरौंदा
पौराणिक कथाओं के अनुसार मिट्टी का घरौंदा बनाने के पीछे एक पौराणिक कथा प्रचलित है। कार्तिक माह की अमावस्या के दिन भगवान राम, माता सीता और लक्ष्मण अयोध्या वापस लौटे थे तो उस दिन उनकी नगरी अयोध्या में वहां के लोगों ने भगवान राम के स्वागत के लिए अपने घरों में मिट्टी से बने दीपक जलाएं और कई लोगों ने उस दिन मिट्टी के घरौंदे बनाये थे और साथ ही उसे खूबसूरती से सजाया था। तब से आज तक दीपावली के दिन मिट्टी का घरौंदे दिवाली में बना कर सजाये जाते हैं और फिर इसमें मिठाई, बताशे रख कर दीप भी जलाये जाते हैं, साथ ही रंगोली भी बनाई जाती है।
बच्चों में होता है खास उत्साह
मिट्टी का घरौंदा बनाने का सबसे अधिक उत्साह किसी में होता है, तो वो बच्चों में ही होता है, क्योंकि उनको उत्साह आता है, जब वे मिट्टी से खेलते हैं और फिर उसे एक आकार देते हैं, कई बच्चे तो यह भी सपना देख लेते हैं कि आगे चल कर वे इंजीनियर ही बनेंगे और अपने सपनों का संसार बसायेंगे। आजकल बच्चे इसमें लाइट्स लगाना भी बेहद पसंद करते हैं, बड़े जब पूरे घर को सजाने में व्यस्त रहते हैं, तब बच्चे अपने इस मिट्टी के घरौंदे को सजाने में व्यस्त रहते हैं।
मिलता है प्रकृति से जुड़ने का मौका
शहरों में अमूमन आप छोटी जगहों में रहते हैं, तो आपको अपने घर में मौका नहीं मिल पाता है कि आप प्रकृति से जुड़ें, तो कम से कम प्रकृति से जुड़ने का एक अच्छा मौका तो मिल ही जाता है। बच्चे एक बार के लिए ही सही, कुछ देर के लिए ही सही, बच्चे मिट्टी से कुछ देर खेल तो लेते हैं। इसलिए ये एक अच्छा मौका है।
घरौंदा और आधुनिकता के रंग
घरौंदा के डिजाइन भी अब आधुनिकता के लिहाज से बदल रहे हैं। अब घरों में मिट्टी का घरौंदे की जगह थर्मोकोल, कूट और चदरा के भी घरौंदे बन रहे हैं। दरअसल,पहले महिलाएं, युवतियां मिट्टी से घरौंदा तैयार करती थी। फिर उसको रंगों से सजाती थी। मिट्टी के दीये जलाकर रंग-बिरंगे मिठाई, सात प्रकार का भुंजा आदि मिट्टी के बर्तन में भरकर विधि-विधान के साथ महिलाएं घरौंदा पूजन करती थी। इसके बाद आतिशबाजी भी की जाती है। घरौंदा में सजाने के लिए कुल्हिया-चुकिया का प्रयोग किया जाता है और उसमें कुंवारी लड़कियां लावा और मिष्ठान बना रही है। इसको लेकर एक वजह बताई जाती है कि भविष्य में जब वह शादी के बाद ससुराल जायें तो वहां कभी अनाज कम नहीं होगा।