पूरे भारत में फसल के उगने की खुशी में कई पर्व मनाये जाते हैं, आइए इनके बारे में विस्तार से जानने की कोशिश करते हैं।
लोहड़ी का महत्व पंजाब में खास
लोहड़ी, सिक्खों और पंजाबियों के लिए लोहड़ी खास मायने रखती हैं। इस दिन की खासियत यह होती है कि इस दिन से ही माघ मास की शुरुआत होती है। लोहड़ी के दिन, लोग अग्नि जला कर परिवार के सभी सदस्यों के साथ परिक्रमा करते हैं। यह त्यौहार पूरे विश्व में खासतौर से मनाया जाता है। इसे पंजाब, हरियाणा और दिल्ली में भी धूमधाम से मनाया जाता है। अब तो यह त्यौहार पूरे विश्व में मनाया जाने लगा है। लोहड़ी की रात को सूर्य धनु राशि से निकल कर मकर राशि में प्रवेश करते हैं और फिर अगले दिन मकर संक्रांति मनाई जाती है। बेटियों की शादी के लिए लोहड़ी के उत्सव को खास माना जाता है, जब बेटियां शादी के बाद अपनी पहली लोहड़ी मनाती हैं, तो उन्हें उपहार में ढेर सारी चीजें दी जाती हैं। जिस घर में नयी शादी होती है या फिर बच्चे का जन्म होता है, तो पहली लोहड़ी को काफी महत्व दिया जाता है। इस दिन विवाहित बहनों और बेटियों को घर पर बुलाया जाता है और यह त्यौहार बहन और बेटियों की रक्षा और सम्मान के लिए खास होता है। खास बात यह है कि अब समय ने जिस तरह से करवट बदली है, अब लड़की के जन्म पर भी काफी धूमधाम से लोहड़ी का त्यौहार मनाया जाता है। मकर संक्रांति के एक पहले सूर्य मकर राशि में इस वर्ष 15 जनवरी को सुबह 2 बजकर 43 मिनट में प्रवेश करेंगे, इसलिए उदया तिथि को मनाते हुए मकर संक्रांति का पर्व 15 जनवरी के दिन सोमवार को मनाया जाएगा। वहीं मकर संक्रांति से एक दिन पहले लोहड़ी का पर्व मनाया जाएगा। इस साल लोहड़ी 14 जनवरी के दिन रविवार को मनाई जायेगी। लोहड़ी का दरअसल, अग्नि और सूर्यदेव को समर्पित होता है।
मकर सक्रांति और पतंगबाजी का महत्व
दरअसल, मकर संक्रांति पूर्ण रूप से सूर्य देवता को समर्पित त्यौहार होता है, जिसे भारत में बहुत ही धूमधाम से मनाया जाता है। मकर संक्रांति का संबंध सीधा पृथ्वी के भूगोल और सूर्य की स्थिति से है। ऐसे में यह हिंदू त्यौहारों में प्रमुख त्यौहार है, यह त्यौहार उत्तरायण के शुभ समय के शुरुआत का प्रतीक माना जाता है। ऐसे में पतंगबाजी और संक्रांति एक दूसरे के पूरक हैं। पतंगबाजी इस बात का भी संकेत होता है कि अब सर्दियों का अंत होगा। इसी दिन रबी की फसल की कटाई के जश्न के रूप में मनाया जाता है। कुछ मान्यताओं के अनुसार इस दिन इसलिए पतंगबाजी की जाती है, ताकि लोग सूर्य की किरणों के सम्पर्क में आ सकें। धूप के संपर्क में आने मात्र से त्वचा के संक्रमण और सर्दी से जुड़ी समस्याओं से राहत मिल पाए, क्योंकि इससे विटामिन डी भी मिलती है। साथ ही यह देवताओं को धन्यवाद कहने का एक तरीका है। ऐसा माना जाता है कि छह महीने की अवधि के बाद इस संक्रांति के मौके पर देवता अपनी नींद से जाग जाते हैं। पतंगबाजी सबसे अधिक गुजरात और राजस्थान में होती है। गुजरात में इस दिन के लिए पतंगबाजी हो, इसके लिए काफी समय पहले से वे घर पर पतंग बनाने लगते हैं। गुजरात में पतंगबाजी का अंतर्राष्ट्रीय महोत्सव भी मनाया जाता है।
बिहार-झारखंड में खास संक्रांति
बिहार, झारखंड और उत्तर प्रदेश प्रांतों में 14 जनवरी या 15 जनवरी को मकर संक्रांति होती है, इस दिन काफी कुछ होता है। सुबह के समय स्नान करने के बाद, इस बात का खास ध्यान रखा जाता है कि इसके बाद, गरीबों को जरूर भोजन खिलाया जाये। इस दिन चूड़ा और दही खाया जाता है, गोभी की सब्जी के साथ-साथ रात में खिचड़ी बनाई जाती है और खूब एन्जॉय करके खाया जाता है। इस दिन बिहार में तिलकूट भी खाया जाता है।
महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश
महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश में भी इस दिन को बखूबी सेलिब्रेट किया जाता है। इस दिन मध्य प्रदेश में गजक खाये जाते हैं, महाराष्ट्र में चिनिया बादाम और तिल की चिक्की खाई जाती है। काला तिल मुख्य रूप से इस दिन खाया ही जाता है।
असम का बिहू पर्व
असम में माघ महीने की संक्रांति के पहले दिन से माघ बिहू अर्थात भोगाली बिहू मनाया जाता है। इस दौरान खान-पान धूमधाम से होता है, क्योंकि तिल, चावल, नारियल और गन्ना फसल उस समय भरपूर होती है। इस दिन लोग नाचते गाते हैं और कई तरह के पिठ्ठे बनते हैं। बिहु दरअसल, असम के तीन अलग सांस्कृतिक उत्सवों के एक समूह को दर्शाता है और दुनिया भर के असमी प्रवासी इसे धूमधाम से मनाते हैं। बता दें कि बिहू शब्द की जो उत्पत्ति हुई है, उसका अर्थ नृत्य और लोक गीत दोनों से है। दरअसल, रोंगाली बिहू या बोहाग बिहू असम के खास और महत्वपूर्ण त्योहार में से एक हैं। बिहू की गिनती असम के महत्वपूर्ण त्यौहार में से एक मानी जाती है और इसे सर्व धर्म एक समान मान कर मनाया जाता है। बिहू का कार्यक्रम साल में तीन बार होता है, बैसाख के समय भी होता है। जनवरी और अक्टूबर में भी मनाया जाता है।
पोंगल की खास बातें
मकर संक्रांति का ही एक और नाम है पोंगल। पोंगल को भी काफी धूमधाम से मनाया जाता है। इसे तमिलनाडु का मुख्य त्यौहार माना जाता है और इसे जनवरी के महीने में ही इसे मनाया जाता है। इसे दरअसल, कुदरत को थैंक यू कहने का महत्वपूर्ण उत्सव माना जाता है। यहां लोग नए वर्ष की उपज प्रदान करने के लिए प्रकृति मां के प्रति अपनी कृतज्ञता जाहिर करते हैं । यह भारत के सबसे रंगीन फसल त्योहारों में से एक है, इस फेस्टिवल का सेलिब्रेशन पूरे 4 दिनों तक मनाया जाता है। यह तमिलनाडु के सबसे लोकप्रिय त्योहारों में से एक है। इस दिन की खास बात यह होती है कि इन चार दिनों में जो पहला दिन होता है, वो प्रचुर बारिश के लिए भगवान इंद्र को समर्पित करने वाला भोगी महोत्सव मनाया जाता है, तो वहीं दूसरे दिन, नयी फसल के कटे हुए चावल और दूध को घर से बाहर बाहर पकाया जाता है और सूर्य देव को अर्पित किया जाता है। तीसरा दिन जानवरों की पूजा की जाती है और फिर चौथे दिन, पोंगल या पारंपरिक रंगीन चावल को हल्दी, पान के पत्ते और सुपारी के साथ प्रकृति को चढ़ाया जाता है।
अन्य फसलों पर आधारित फेस्टिवल
पूरे भारत में अगर फसलों पर आधारित फेस्टिवल की बात करें, तो कई सारे फसलों पर आधारित फेस्टिवल मनाये जाते हैं। नुआखाई दरअसल, एक फसल का उत्सव है, जो मुख्य रूप से ओडिशा राज्य में मनाया जाता है। यह भाद्रबा में अगस्त-सितंबर के चंद्र महीने की पंचमी तिथि को मनाया जाता है और नई फसल के मौसम की शुरुआत का प्रतीक है। इस पर्व के दौरान लोग देवता को मौसम की पहली फसल चढ़ाते हैं और चावल, दालमा और मिठाइयों की दावत का आनंद लेते हैं। इनके अलावा, हेमिस एक ऐसा फसल पर आधारित उत्सव है, जो लद्दाख राज्य में मनाया जाता है। यह हर साल जून-जुलाई में हेमिस मठ में मनाया जाता है और लोग इस पर्व में चाम जैसे पारंपरिक नृत्य करते हैं, साथ ही साथ रंगीन पोशाक पहनते हैं और पारंपरिक लद्दाखी व्यंजनों का आनंद लेने में यकीन रखते हैं। गौर करें, तो वांगला भी एक फसल उत्सव है, जो मुख्य रूप से मेघालय राज्य में मनाया जाता है। यह हर साल नवंबर में मनाया जाता है और लोग वंगाला जैसे पारंपरिक नृत्य करते हैं, पारंपरिक गारो व्यंजनों का आनंद लेते हैं और ध्वजारोहण समारोह देखते हैं।