महिलाओं की सार्थकता को बयान करते हुए कई सारे तीज-त्योहार भारतीय परंपरा में मौजूद हैं। गौर करें कि नवरात्रि जहां महिला सशक्तिकरण का गुणगान करती है, वहीं गुड़ी पड़वा का पर्व हमारे जीवन में महिलाओं की प्रतिष्ठा और शक्ति का बखान करता है। हालांकि देश के विभिन्न हिस्सों में गुड़ी पड़वा के त्योहार को अलग-अलग नाम से पहचाना जाता है, जैसे- गोवा और केरल में कोंकणी समुदाय गुड़ी पड़वा को पड़वा के तौर पर मनाते हैं। वहीं कर्नाटक,आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में इस त्योहार को युगादी नाम से लोकप्रियता मिली है। कश्मीर में इसे नवरेह के रूप में मनाया जाता है। देखा जाए तो, भले ही हर प्रांत में इसे पुकारे जाने वाला नाम अलग हो, लेकिन स्त्री के महत्व को दर्शाने की विशेषता एक ही है। खास तौर पर महाराष्ट्र में इसे पारंपरिक तरीके से परिवार के साथ मनाया जाता है, जहां पर गुड़ी पड़वा की महक इसके गुड़ी में छुपी हुई है, जो कि महिला सशक्तिकरण का प्रतीक मानी गई है। उल्लेखनीय है कि भारतीय त्योहारों की सबसे बड़ी खूबी यह है कि ये सभी न केवल खाने-खिलाने और परिवार के साथ जश्न मनाने का मौका देती हैं, बल्कि जीवन से जुड़ी सीख भी देती हैं। ठीक इसी तरह गुड़ी पड़वा भी परिवार और समाज के साथ हमारी जिंदगी में नारी की महिमा का वर्णन करती है। आइए जानते हैं विस्तार से।
स्त्री सम्मान और प्रतिष्ठा
गुड़ी पड़वा में गुड़ी का अर्थ विजय पताका को दर्शाता है। इन दिन विशेष तौर पर मराठी समुदाय के लोग गुड़ी लगाते हैं। यानी कि बांस की लकड़ी के ऊपर चांदी, पीतल या फिर तांबे का उल्टा खाली कलश रखते हैं। फिर इसे नई साड़ी से सजाया जाता है। इस गुड़ी को सजाने के लिए नीम, आम के डंठल और लाल फूलों से सजाया जाता है। गुड़ी को फिर ऊंची जगह पर रखा जाता है, ताकि दूर से भी विजय पताका दिखाई दे। दिलचस्प यह है कि गुड़ी पड़वा के दिन गुड़ी की सजावट का हर चरण, हमारे जीवन में स्त्री के सम्मान और प्रतिष्ठा को दिखाता है।
स्त्री गौरव का प्रतीक
गुड़ी पड़वा त्योहार की सुंदरता का सबसे मुख्य आकर्षण साड़ी होती है। गुड़ी पड़वा के दिन नई साड़ी खरीदी जाती है, फिर इस नई साड़ी को गुड़ी की लकड़ी पर लपेटा जाता है और लकड़ी को बिंदी, मंगलसूत्र,चूड़ी से सजाकर रस्सी से बांध कर ध्वजा के तौर पर फहराया जाता है। इस बांस की छड़ी के ऊपर तांबे,चांदी या फिर कांसे के कलश रखा जाता है। मान्यताओं के अनुसार गुड़ी पर नई साड़ी से की गई सजावट स्त्री सम्मान और सशक्तिकरण का प्रतीक माना गया है। यह माना जाता है कि समाज की हर स्त्री कमजोरी नहीं, बल्कि गौरव को दर्शाती है।
स्त्री से मिलती है मजबूती
गुड़ी को सजाने के दौरान उसे बांधा जाता है। घर में मौजूद पुरुष जैसे भाई-पति या पिता इस कार्य को पूरा करते हैं। इस गुड़ी को बांधने के दौरान घर की महिला लकड़ी को पकड़ कर रखती हैं, ऐसा करना यह दिखाता है कि समाज और परिवार को मजबूती से संभालने का काम एक स्त्री बखूबी कर सकती है।
महिला का कद सबसे ऊपर
भारतीय परंपरा में रंगोली को शुभ माना गया है। इसी वजह से रंगोली को गुड़ी के पास बनाया जाता है। माना गया है कि रंगोली शुभ और खुशियों का चिन्ह है। इसलिए गुड़ी के आगे रंगोली बनाने और पूजा करने का अधिकार घर की महिला को मिलता है, जो यह बताती है कि समाज में महिलाओं का कद सबसे ऊपर और प्रथम है।
आपसी प्रेम और सम्मान
यह भी इस पर्व का रोचक पहलू है कि गुड़ी यह भी बताती है कि जीवन को सही तरीके से जीने का जरिया सुख और दुख से होकर जाता है। इसलिए गुड़ी को सजाने के लिए नीम की कोंपलें लगाई जाती हैं। जो कि यह बयान करती है कि आपके जीवन में सुख और दुख एक साथ आयेंगे, इसकी कड़वाहट का भी स्वागत करना है। हालांकि नीम के साथ गुड़ी में शक्कर की गांठ को बांधा जाता है, इससे जाहिर होता है कि सुख हो या दुख महिला और पुरुष को एक गांठ में बंधकर हर हालात का सामना करना चाहिए, जो कि आपसी प्रेम और सम्मान का प्रतीक है।
प्यार और विश्वास की महक
गुड़ी की सुंदरता को मोगरे की माला से चार चांद लगाया जाता है। मोगरे की माला यह बताती है कि हमारे जीवन में महिला कोमलता और मधुरता की खुशबू लेकर आती है, जो कि हर किसी के जीवन को हमेशा महकती रहती है। ऐसे में अपने आपसी रिश्ते को प्यार और विश्वास की महक में रंग दें।
जीवन में अंधकार मिटाने का जरिया बनती हैं हरेक महिला
गौरतलब है कि गुड़ी पड़वा की शुरुआत सूर्योदय से होती है। सूर्योदय होने के साथ घर के दरवाजे पर गुड़ी बांधी जाती है। इसकी तैयारी में महिलाएं मीठे पकवान बनाने के साथ गुड़ी को सजावट करने की भी तैयारी शुरू करती हैं। सूर्योदय के दौरान गुड़ी को साड़ी पहनाकर सजाने के पीछे की मान्यता यह है कि हर महिला अपने अंदर की ऊर्जा को पहचाने, जिस तरह सूर्य अपनी रोशनी से रात के अंधकार को मिटा देते हैं, ठीक उसी तरह हर स्त्री अपने भीतर की ममता और कड़े परिश्रम की रोशनी से समाज और परिवार अज्ञानता और उदासी को समाप्त करती हैं।
यह कहने में कोई गुरेज नहीं है कि गुड़ी पड़वा का त्योहार अपने हर कदम के साथ महिलाओं की अहमियत को मजबूत बनाने की सीख देती है। ऐसे में इस बार अगर आप अपने घर में गुड़ी बांध रही हैं, तो यह जरूर ध्यान रखें कि समाज और परिवार में सुख, समृद्धि और ज्ञान तक पहुंचने का हर मार्ग महिला के विकास और सम्मान से होकर गुजरता है।