गणेश चतुर्थी किसी त्योहार या फिर परंपरा का प्रतीक नहीं हैं, बल्कि प्रकृति की संस्कृति से कैसे गणपति जुड़े हुए हैं, इसे भी लेकर कई मान्यताएं हैं। कई जानकारों का मानना है कि गणपति प्रकृति और पर्यावरण का विराट रूप हैं। यह भी माना गया है कि गणपति अपने साथ हर साल केवल त्योहारों की रौनक नहीं लेकर आते हैं, बल्कि प्रकृति कैसे हमारी संस्कृति, सभ्यता और मानव जीवन से जुड़ी हुई है, उसकी अहमियत हमारी जिंदगी में कितनी अधिक होनी चाहिए। उसे भी दर्शाते हैं। आइए जानते हैं विस्तार से।
गणपति का मस्तक हाथी
गणेश का मस्तक हाथी का है। इससे हमें यह सीख मिलती है कि प्रकृति की अनमोल भेंट हाथी करूणा और सहानुभूति का रूप हैं। हाथी को हमेशा से ही प्रकृति का दूसरा स्वरूप माना गया है। गणपति की पूरी प्रतिमा इस बात की साक्षी है कि किस तरह प्रकृति मानव जीवन को दी गई अनमोल भेंट है। गणपति की पूजा के समय एक तरफ अगर हम ध्यान दें, तो हम प्रकृति की सुंदरता के प्रति और उसके हमारे जीवन में होने के प्रति आभार व्यक्त करते हैं।
इकोफ्रेंडली गणपति का चलन
दूसरी तरफ इको-फ्रेंडली गणपति का चलन बीते कई सालों से चलन में है। इको-फ्रेंडली गणपति के जरिए मिट्टी के गणेश की प्रतिमा स्थापित कर, प्रकृति के सबसे जरूरी स्वरूप का आदर किया जाता है। यहां तक कि गणपति का मंडप भी कपड़े, फूल और लकड़ी की सजावट से सजाया जाता है, जो कि उनकी प्राकृतिक सुंदरता को अधिक निखार देता है।
पहाड़ों के प्रति प्रेम भाव
चूहे, मोर और सांप को भी गणेश के परिवार का सदस्य माना गया है। चूहा, मोर और सांप सबसे अधिक जंगल में पाए जाते हैं। जंगल की संस्कृति भारत में धीरे-धीरे समाप्त हो रही है, जो कि पर्यावरण और ग्लोबल वार्मिंग के लिहाज से खतरनाक मानी गई है। साथ ही पर्वत उनका घर माना जाता है, जो कि पहाड़ों के प्रति प्रेम भाव को दिखाता है। भारत में ऐसे कई जंगल और पहाड़ है, जिन्हें खत्म करके उनका शहरीकरण करने की योजना बनाई गई है। प्रकृति जिस तरह से मानव जीवन में अपना स्थान गवां रही है, उसकी कीमत को गणेश स्थापना 11 दिन तक के अपने कार्यक्रम के दौरान बतलाती है।
जंगल बना क्रीड़ा स्थल
वन यानी कि जंगल को गणपति का क्रीड़ा स्थल माना गया है। इन दिनों जहां मोबाइल के आने से बच्चों से लेकर बड़े तक आउटडोर खेल का मतलब खो चुके हैं, ऐसे में गणपति यह सीख देते हैं कि कैसे प्रकृति की गोद ने उन्हें रहने के लिए पहाड़ के तौर पर छत दी है, तो वहीं खेलने के लिए खुला मैदान है। गणपति यह बताते हैं कि प्रकृति हमें जहां खुली हवा में सांस लेने की मंजूरी देती है, ठीक इसी तरह प्रकृति के प्रदूषण से बचाना भी हमारी जिम्मेदारी है, ताकि हम पहाड़ का ठोसपन और जंगल के घासों की नमी अपने जीवन में महसूस कर सकें।
गणेश के चारों हाथों में से एक हाथ में शंक है, जो कि साफ पानी और नदी के महत्व को बताता है। दूसरे हाथ में उन्होंने प्रकृति की सुंदरता का प्रतीक कमल पकड़ कर रखा है। साथ ही उनके शरीर का हरा रंग प्रकृति और लाल रंग शक्ति का प्रतिक माना गया है।