बिहार और उत्तर प्रदेश के लोकगीत की महक वहां की मिट्टी में महसूस की जाती है आती है। खासतौर पर शादी, खेती और मौसम पर आधारित गीतों का महत्व सबसे अधिक है। शादी और बाकी समय में गाए जाने वाले लोकगीत ग्रामीण जीवन के हर पड़ाव को कभी खुशनुमा बना देता है, तो कई बार भावुक भी कर देते हैं, हालांकि वक्त के साथ शादी के गीत लुप्त हो रहे हैं, ग्रामीण इलाकों से लेकर छोटे शहरों तक लोकगीतों का महत्व सबसे अधिक है, अफसोस है कि डीजे के गानों के कारण गीतों की परंपरा दबती चली जा रही है। आइए विस्तार से जानते हैं कि बिहार और उत्तर प्रदेश के लोकगीतों के बारे में।
बिहार और होली में लोकप्रिय फगुआ गीत
आरे होली खेलत रामनु हो, से आरे होली खेलत रामनु हो, सुमंगल होत हद्य, होली खेलत राम नु हो । बिहार और उत्तर प्रदेश के बसंत पंचमी के समय यानी होली के दौरान इसी तरह का फगुआ गीत गाया जाता है। कई जगहों पर इन गीतों को फाग कहा जाता है। होली के दिन और होली के अगले दिन होली के गीत महिलाएं सबसे अधिक गाती है। फगुआ गीत में रंगों से जुड़े गीत गाए जाते हैं, साथ ही परिवार से जुड़े संबंधों से जुड़ी बातें गीतों में होती हैं। ढोल और मजीरा लेकर फगुआ गीत को गाया जाता है। महिला और पुरुषों की मंडली फगुआ गीत गाती है।
कजरी गीत में संवाद
कजरी गीत भी बिहार और उत्तर प्रदेश में ऋतु गीत के तौर पर जाना जाता है। शादी के मौके पर भी कजरी गीत का भी महत्व अधिक है। जहां पर शादी से जुड़ी रस्मों की व्याख्या की जाती है। कजरी मूल तीन तौर पर बनारसी, मिर्जापुरी और गोरखपुरी कजरी होती है। बनारसी कजरी में बिंदास लिखावट के लिए पहचानी जाती है। कजरी के गीतों में ननद-भाभी का संवाद से लेकर बसंत ऋतू की व्याख्या और साथ ही कजरी के जरिए शादी की रस्मों को भी भावुक तरीके से बयान किया जाता है। यहां तक कि बिहार और उत्तर प्रदेश में कई जगहों पर कजरी तीज महोत्सव भी मनाया जाता है। कजरी महोत्सव के दौरान गीत-संगीत के साथ मेले का भी बड़े स्तर पर आयोजन होता है।
ऋतु गीत और उबटन गीत
यह भी जान लें कि ऋतु गीत के तौर पर चतुर्मासा और बारहमासा भी गीत होते हैं, जहां पर पेड़ों का महत्व लोक कहानियों के जरिए गाकर बताया जाता है। ऋतुगीत के जरिए बारहमासा गीत का भी प्रचलन है, वहीं मिथिलाचंल में स्त्री प्रधान गीत गाए जाते हैं, जो कि घरेलू महिलाओं की विशेषता बताते हैं।
क्रीड़ा गीत
महिलाओं के साथ बच्चों के लिए उबटन गीत और अपटोनी गीत गाए जाते हैं।ग्रामीण स्थानों पर कई जगह पर अटकन-मटकन, चोरा-मुक्की के साथ कबड्डी के दौरान भी क्रीड़ा गीत गाए जाते हैं।
जानें इन लोकगीतों के बारे में भी
शादी के मौके पर मिथिलांचल में सम्मरी गीत गाने की प्रथा है। इसके साथ ही कोहबर गीत भी होता है, जहां पर गाने के जरिए रस्म की व्याख्या की जाती है। उल्लेखनीय है कि उत्तर प्रदेश और बिहार में कई विद्यालय और विश्व विद्यालय में समाज-सुधार गीत , वीर गाथा गीत,नारी स्वतंत्रता गीत, माटी गीत और मेलों के गीत भी काफी प्रचलित हैं।