लखनऊ की कला में कई सारे रंग भरे हुए हैं। कई सारी ऐसी कलाएं मौजूद हैं, जो कि दशकों पुरानी है। हालांकि दिक्कत यह है कि कुछ अनमोल कलाएं अपनी पकड़ को खोती हुई नजर आ रही हैं। इस फेहरिस्त में एक नाम चिनहट पॉटरी का भी है। आज हम इसी कला की दुनिया से आपको रूबरू कराएंगे और बतायेंगे कि लखनऊ की संस्कृति में चिनहट पॉटरी कला की क्या अहमियत है। आइए जानते हैं विस्तार से।
चिनहट पॉटरी की शुरुआत
चिनहट पॉटरी दस्तकारी वाले मिट्टी के बर्तनों का एक रचनात्मक और सुंदर कला का रूप है, जो कि स्थानीय कारीगरों द्वारा की जाती रही है। साल 1958 से पहले चिनहट पॉटरी का काम शुरू हुआ। कुछ समय बाद लखनऊ में चिनहट पॉटरी नाम से यूनिट की स्थापना की गयी, जहां एक दर्जन से अधिक यूनिटों में चीनी मिट्टी का काम किया जाता था।
लखनऊ बना लोकप्रिय केंद्र
आपको जानकर हैरानी होगी कि लखनऊ की यह कला वहां की संस्कृति में इस तरह रची बसी थी कि 100 से 150 करोड़ रुपए का कारोबार होता था। विदेशों में भी चिनहट पॉटरी ने अपना दबदबा कायम रखा था, लेकिन एक वक्त के बाद चिनहट पॉटरी का काम दो से तीन लाख रुपए में सिमट गया है। साल 1970 के दौरान उत्तर प्रदेश मिट्टी के बर्तनों के लिए एक लोकप्रिय केंद्र बनकर उभरा।
मुगल और नवाबों के जमाने से
यह कहने में कोई गुरेज नहीं है कि लखनऊ की संस्कृति की पहचान नवाबों से रही है। इसी वजह से लखनऊ को नवाबों का शहर भी कहा जाता है। नवाबों के शासन के समय से ही लखनऊ में मिट्टी के बर्तन और वस्तुएं बनाई जाती रही हैं और उनकी मांग भी रही है। उस वक्त मिट्टी के बर्तन बनाने वाले कलाकारों को पूजा जाता था।
ऐसा तैयार होता चिनहट
जान लें कि चीनी मिट्टी के बर्तनों को पका कर चिनहट तैयार किया जाता है। चिन्नी मिट्टी के बर्तनों को 600 डिग्री से 1200 डिग्री तक पकाकर चिनहट शैली के मिट्टी के बर्तन तैयार किए जाते हैं। इन बर्तनों को पकाने के बाद भी इस पर विस्तार से कार्य किया जाता है। इन बर्तनों को बनाने के मुख्य रूप से कई चरण होते हैं, सबसे पहले बर्तन का निर्माण होता है और फिर बर्तन पर चमक लाने के लिए मिट्टी का लेप लगाया जाता है और फिर बर्तन को सजाने के साथ उस पर रंग भरने का काम होता है।
चिनहट उद्योग की शुरुआत
चिनहट बर्तनों की लोकप्रियता को देखते हुए इसके लिए पॉटरी का निर्माण किया गया। एक समय ऐसा था, जब लखनऊ के दर्जनों घरों में चिनहट का काम किया जाता था। चिनहट को बेचने के लिए पॉटरी उद्योग बिक्री केंद्र की शुरुआत भी की गयी। उस वक्त कुम्हार खुद अपनी कला का विस्तार करते हुए कई तरह की आकृति को चिनगट पर पर उतारते थे। खासतौर पर चिनहट पॉटरी में मग, कटोरे, फूलदान, कप और प्लेट जैसे उत्पादों को अधिक बढ़ावा दिया जाता था। उल्लेखनीय है कि चिनहट पॉटरी पर कलाकृति अधिकतर महिलाओं द्वारा बनाई जाती थीं, हालांकि एक जमाने में लखनऊ की संस्कृति का हिस्सा रही और लखनऊ शहर की पहचान चिनहट पॉटरी को 1997 के दौरान घाटे में बात कर बंद कर दिया गया।