हर पुरुष के जीवन में मां, बहन, पत्नी और बेटी का स्थान सर्वोपरी होता है, किंतु जननायक कृष्ण के जीवन में ऐसी कई महिलाएं रहीं, जिन्होंने उनके जीवन में न सिर्फ कई रंग बिखेरे, बल्कि उनके व्यक्तित्व को श्रेष्ठता भी दी। आइए जानते हैं ऐसी ही कुछ विशिष्ट महिलाओं के बारे में जिन्होंने कृष्ण को उदात्त स्वरूप दिया।
यशोदा
माता देवकी की कोख से निकलकर कृष्ण, माता यशोदा की आंचल में पहुंच गए थे। यह भी अजब संयोग था कि पीर सहकर कृष्ण को जन्म दिया माता देवकी ने और उनकी अठखेलियों की गवाह बनीं माता यशोदा। कृष्ण को अपनी आंचल में छुपाकर माता यशोदा ने न सिर्फ ये बतलाया कि जन्म देनेवाली मां, बल्कि पालनेवाली मां बड़ी होती हैं, बल्कि यह भी साबित किया कि मातृत्व खून की मोहताज नहीं।
देवकी
64 कलाओं से परिपूर्ण कृष्ण का जन्म माता देवकी की कोख से आठवें बालक के रूप में उस समय हुआ, जब वे सलाखों के पीछे अपने भाई कंस के क्रोध का शिकार थीं। अर्धरात्रि में हुआ यह बालक कंस का काल बनकर आया है, इस बात पता देवकी-वासुदेव को बहुत पहले ही चल चुकी थी। ऐसे में कंस के हाथों मारे जा चुके सात पुत्रों के बाद अपने इस आठवें पुत्र को बचाने के लिए देवकी ने अपने मातृत्व पर पत्थर रखकर अपने नवजात शिशु को यशोदा के घर भेजवाने का फैसला कर लिया, जिन्होंने उसी दौरान एक पुत्री को जन्म दिया था। उफनती-गरजती यमुना को पार कर वासुदेव ने कृष्ण को यशोदा की गोद तक पहुंचा दिया था और यहां मां देवकी, निराश होकर भी निश्चिंत थी कि दूर ही सही लेकिन लल्ला जीवित तो रहेगा। देवकी का व्यक्तित्व जताता है कि मां की ममता किसी से नहीं डरती और मां के समर्पण को कभी भूलना नहीं चाहिए।
राधा
माताओं के बाद प्रेम के सर्वोच्च सिंहासन पर आसीन राधा, कृष्ण के जीवन की सबसे महत्वपूर्ण महिला रही हैं, जिन्होंने प्रेम का ऐसा स्वरूप प्रस्तुत किया कि लोग आज भी कृष्ण के नाम से पहले उनका नाम लेते हैं। विवाह और प्रेम, समाज के इन दो तत्वों को समाहित किए बिना करोड़ों वर्षों से आज भी राधा, कृष्ण से जुड़ी हुई हैं। ऐसा माना जाता है कि वे राधा ही हैं, जिन्होंने सबको मोहित करनेवाले कृष्ण को मोहित कर रखा है। इतने प्यार के बावजूद राधा का व्यक्तित्व दर्शाता है कि प्रेम सिर्फ पाने या हासिल करने का नाम नहीं है।
द्रौपदी
द्रौपदी के प्रति कृष्ण और कृष्ण के प्रति द्रौपदी का सखा भाव किसी से छुपा नहीं है। अपने पांच पतियों से अधिक कृष्ण पर विश्वास करनेवाली द्रौपदी ने न कभी अपनी मर्यादा का उल्लंघन किया और न कृष्ण ने उस मर्यादा को तोड़ा। एक स्त्री-पुरुष के बीच भी सखा भाव की पवित्र घनिष्ठता हो सकती है, ये इन दोनों की मित्रता से सहज ही प्रकट होती है। ये मित्रता की ही पराकाष्ठा थी कि कृष्ण ने द्रौपदी को अपना नाम दिया और वे कृष्णा कहलायीं ।
सुभद्रा
अपनी छोटी बहन सुभद्रा को बेटी समान प्रेम करनेवाले कृष्ण ने कभी लोक-लाज की चिंता नहीं की। यही वजह है कि बहन सुभद्रा के हृदय में अर्जुन के प्रति पनप चुके प्रेम की खबर मिलते ही जरा भी देर किए बिना उन्होंने अर्जुन को सुभद्रा का अपहरण कर विवाह रचाने की सलाह दे दी। स्त्रियों की अस्मिता को लेकर कृष्ण कितने दृढ़ थे, ये बात उनके निर्णय से ही पता चलती है।
सत्यभामा
कृष्ण की दूसरी पत्नी और योद्धा सत्यभामा का सम्मान कृष्ण के मन में रुक्मिणी से जरा भी कम नहीं था। विशेष रूप से युद्धभूमि में सत्यभामा के पुरुषार्थ के बल पर ही उन्होंने कई दानवों का संहार किया और उनकी युद्ध निति को सराहा। नारी-पुरुष के बीच समानता की बजाय कृष्ण ने श्रेष्ठता पर बल दिया।
गोपियां
ऐसी मान्यता है कि राधा की सखियां हों या कृष्ण की सखियां, गोपियां, कृष्ण के हर रूप से परिचित हैं। कभी बाल कृष्ण की माखन चोरी ने उन्हें आकर्षित किया, तो कभी युवा कृष्ण के प्रेम ने। यही वजह है कि कृष्ण के मन में भी गोपियों का एक अलग और ऊंचा स्थान रहा। द्वारका का राजा बनने के बाद भले ही कृष्ण ने कभी वृन्दावन की तरफ पलटकर न देखा हो लेकिन राधा के साथ गोपियों को याद कर वे अकेले में खूब तड़पे हैं।
कुंती
ऐसी मान्यता है कि कृष्ण के पिता वासुदेव की बहन कुंती, रिश्ते में कृष्ण की बुआ थीं, लेकिन बुआ और भतीजे का ऐसा प्रेम पूरे इतिहास में कहीं नजर नहीं आता। बुआ कुंती और उनके बेटों को राज्याधिकार दिलाने के लिए कृष्ण ने न सिर्फ अपने नियम तोड़ें, बल्कि विश्व की सबसे बड़ी लड़ाई महाभारत का कलंक भी अपने माथे पर लिया।
गांधारी
ऐसी मान्यता है कि कृष्ण सदैव भाव के भूखे रहे हैं, जिसने जो दिया उन्होंने प्रेम से लिया। यही वजह है कि जब गांधारी ने अपने 99 पुत्रों की मृत्यु का जिम्मेदार कृष्ण को ठहराते हुए उन्हें वंश नाश का श्राप दिया, तो उन्होंने ये भी खुशी-खुशी स्वीकार कर लिया। हालांकि श्राप देने के बाद स्वयं गांधारी काफी व्यथित हो गई थीं, लेकिन उनकी इस भूल को न सिर्फ कृष्ण ने क्षमा किया, बल्कि उन्हें भी कर्मयोग की शिक्षा दी।
श्रुतश्रवा
ऐसी मान्यता है कि शिशुपाल की माता और कृष्ण की दूसरी बुआ श्रुतश्रवा के प्रति भी कृष्ण का प्रेम सदैव प्रकाशित रहेगा। शिशुपाल के 100 अपराधों को क्षमा करने का वचन दे चुके कृष्ण ने अपनी बुआ के लिए न सिर्फ भरी सभा में शिशुपाल का अपमान बर्दाश्त किया, बल्कि उसे 99 अपशब्दों तक लगातार क्षमा करते रहें। सिर्फ यही नहीं शिशुपाल का वध करने से पहले उन्होंने अपने इस कृत्य के लिए अपनी बुआ श्रुतश्रवा से क्षमा भी मांगी।
कुब्जा
मन की सुंदरता, तन की सुंदरता से कहीं अधिक श्रेष्ठ होती है, इस बात को कृष्ण ने कुब्जा के माध्यम से बड़ी ही खूबसूरती से दर्शाया है। कुब्जा, कंस की दासियों में से एक थी, जिसे शरीर से द्वियांग होने की वजह से एक विशेष नाम से पुकारा जाने लगता था। उन्हें कुब्जा नाम मिला था। कंस की दासी होने के बावजूद मन से वह कृष्ण के प्रति समर्पित थी। कृष्ण ने हमेशा उनके मन को देखा और उनके मन की सुंदरता को महत्व दिया।
पूतना
माता का दूध जहर नहीं हो सकता पूतना के माध्यम से माताओं को सदैव श्रेष्ठ स्थान देनेवाले कृष्ण ने ये संदेश भी हमें दिया है। कंस की आज्ञा से नवजात शिशु कृष्ण को अपना जहर मिला दूध पिलाने पूतना वृंदावन की गलियों में आई थी, लेकिन दूध पीकर भी कृष्ण सिर्फ मुस्कुराते रहे।
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