आजाद देश में अपने आजाद ख्याल के साथ आज भी अगर हम आजादी के इतिहास को टटोलने की कोशिश करें, तो कई ऐसे शहर है, जहां से देश की आजादी को लेकर कई बलिदान दिए गए हैं, जहां पर कई ऐसे क्रांतिकारी विचारधाराओं ने जन्म लिया है, जिनकी वजह से आज हम यह गर्व से कह सकते हैं कि हम आजाद हैं। आइए विस्तार से जानते हैं कि कब और कहां से भारत के पहले स्वतंत्रता संग्राम की शुरुआत हुई थी। साथ ही कौन से ऐसे शहर रहे हैं, जहां पर क्रांति की मसाल जलाई गई थी।
मेरठ में सुनाई दी थी आजादी की पहली ललकार
10 मई 1857 को ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ विद्रोह का पहला शोर सुनाई दिया था। आजादी के इतिहास के अनुसार इसी दिन से भारत को आजादी देने का पहला कदम रखा गया था, जिसकी गूंज अंग्रेजों तक भी पहुंच गई थी। दिल्ली के करीब मेरठ में मौजूद ब्रिटिश भारतीय सेना में मौजूद भारतीय सैनिकों ने अपना विरोध जताया था। वीडी सावरकर पहले भारतीय क्रांतिकारी थे। उनके बाद एक के बाद एक करके 1857 के बाद कई सारी आवाजें उठने लगीं। कानपुर में 1857 के विद्रोह में आवाज उठाने वाले क्रांतिकारियों में नाना साहब, राव साहब, तात्या टोपे शामिल है, वहीं कुंवर सिंह और अमर सिंह ने अंग्रेजों के खिलाफ बिहार में अंग्रेजों के खिलाफ अपना गुस्सा जाहिर किया। माना गया है कि 1857 के इस विरोध ने ब्रिटिश साम्रज्य की नींव हिला कर रख दी थी। यहां तक कि इसे आजादी का पहला युद्ध भी माना जाता है।
लखनऊ में पहली महिला स्वतंत्रता सेनानी
मेरठ से उठी आजादी की आग की लपटे दूसरे शहरों तक भी पहुंचने लगीं थीं। उत्तर प्रदेश, बिहार और बंगाल इसमें प्रमुख रहे हैं। बेगम हजरत महल आजादी की पहली महिला स्वतंत्रता सैनानी रही हैं। वे नवाज अली की दूसरी पत्नी थीं। 4 जून 1857 को अंग्रेजों के खिलाफ विरोध हुआ। अंग्रेजों के खिलाफ विरोध का हिस्सा बेगम बनीं।
बिहार में आजादी की लड़ाई
बिहार में आजादी की लड़ाई की शुरुआत 12 जून, 1857 से हुई थी, जिसे पूरा बिहार दहल उठा था। हजारों की संख्या में लोगों ने अपना बलिदान दिया था। इसकी वजह यह थी कि अंग्रेजों सबके बीच में पटना के 4 क्रांतिकारियों को फांसी की सजा दी गई थी, कई लोगों को गोली मारी गई और कई गांवों को आग लगा दिया गया था। बिहार के क्रांतिकारी बाबू कुंअर सिंह ने 1858 में अंग्रेंजों के खिलाफ लड़ाई लड़ी और उन्होंने अपने हाथ गवां दिए, वहीं बिहार के शहीद क्रांतिकारियों में आज भी उमाकांत प्रसाद सिंह, सतीश चंद्र झा, जगपति कुमार और रामानंद सिंह का नाम याद किया जाता है।
उत्तर प्रदेश में भी आजादी के लिए उठी आवाज
मेरठ, बिहार और बंगाल से अंग्रेजों के खिलाफ उठी हुई आवाज के बाद बड़ी संख्या में लोग आजादी की मांग को लेकर अंग्रेजों के सामने आएं। कानपुर, लखनऊ के साथ झांसी के साथ उत्तर भारत में भी ब्रिटिश चौकियों पर हमले की शुरुआत की गयी । उत्तर प्रदेश ने आजादी के लिए कई बलिदान दिए हैं। इसकी शुरुआत होती है, झांसी की रानी लक्ष्मीबाई से, जिन्होंने बचपन से ही अंग्रेजों के खिलाफ अपनी आवाज बुलंद की और अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह की लड़ाई मरते दम तक लड़ी । मंगल पांडे का जन्म उत्तर प्रदेश के नाग्वा जिले में हुआ। उन्हें 1857 के विद्रोह का नायक माना जाता है। ठीक इसी तरह चंद्रशेखर आजाद, राम मनोहर लोहिया और राम प्रसाद बिस्मिल को उत्तर प्रदेश के आजादी के शेर नाम से हमेशा याद किए जाते है।
दिल्ली का लाल किला स्वतंत्रता सेनानियों का गढ़
दिल्ली के लाल किले पर हर साल आजादी का आजाद ध्वज तिरंगा फहराया जाता है। इसके पीछे की वजह यह है कि लाल किला देश के पहले स्वतंत्रत संग्राम का गवाह रहा है, जो कि 1947 यानी कि देश के आजाद होने तक कई स्वतंत्रता सैनानियों के बलिदान और विद्रोह की गाथा को अपनी लंबी इमारत में समाता गया है। मेरठ से 1857 से शुरू हुए पहले संग्राम की जलती हुई मसाल की लपटे भी लाल किले ने देखी है। कई क्रांतिकारी ऐसे रहें, जो कि अंग्रेजों के खिलाफ अपनी योजना बनाने के लिए लाल किले पर ही इकट्ठा होते थे और इसी वजह से 1857 के बाद लाल किला भारत की आजादी और स्वराज का एकमात्र प्रतीक माना गया।