इससे सभी वाकिफ हैं कि भारत एक कृषि प्रधान देश है, वहीं खेती के लिए उपयोगी और पर्यावरण के लिए जरूरी गाय, बैल और भैंस को ग्रामीण अर्थव्यवस्था की रीढ़ माना जाता है। इसकी सबसे बड़ी वजह है खेती। खेती के साथ ग्रामीण भागों में कई जरूरी कामों में गाय,बैल, भैंस और बकरी के साथ कई अन्य जानवरों का महत्व अधिक है। ठीक इसी तरह गाय, बैल और भैंस का गोबर गांव की संस्कृति का अटूट हिस्सा रही है। वैज्ञानिक दृष्टि से भी गाय के गोबर में पोटाश, मैंगनीज और लोहे के साथ कई जरूरी रासायनिक तत्व पाए जाते हैं। इसलिए गाय के गोबर का सबसे अधिक उपयोग खाद के तौर पर किया जाता है। लेकिन क्या आप जानती हैं कि भारतीय संस्कृति के खान-पान, सेहत और यहां तक घर की रंगाई के लिए कई दशकों से गोबर का प्रयोग किया जा रहा है। आइए जानते हैं विस्तार से।
गोबर के उपले से खाना
गांव में विकास होने के बाद कुछ ही ऐसे घर होंगे, जहां पर चूल्हे की जगह गैस ने ले ली है, हालांकि गांव में बिना गोबर के उपलों के खाना नहीं बनाने की संस्कृति एक जमाने में रही है। गाय के गोबर के उपले का इस्तेमाल ईंधन के तौर पर किया जाता। चूल्हे पर खाना बनाने के लिए चूल्हे के भीतर गाय के गोबर के सूखे उपले डालकर उसे लकड़ी के साथ जलाया जाता था। इससे निकलने वाली आग पर खाना बनाने की सभ्यता रही है। इससे भोजन की नमी और स्वाद बरकरार रहता है। गोबर के उपले से उठे धुएं की खुशबू भोजन का स्वाद बढ़ा देती है। फिलहाल, कई ऐसे गांव हैं, जहां पर आज भी गाय के गोबर के उपलों के सहयोग से चूल्हे पर खाना बनाया जाता है, वहीं कई लोग ऐसे हैं, जो कि गाय के उपले को बेचने का व्यवसाय कर इन दिनों इसे अपनी आजीविका का जरिया बना चुके हैं।
गाय के गोबर से घर की सफाई
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त्योहारों और शादी के दौरान घर की सफाई के लिए गाय के गोबर की पुताई की जाती है, जहां पर ताजा गाय के गोबर को मिट्टी के कच्चे घर में पोता जाता था। गांव की दीवारों और फर्श पर गाय के गोबर के लेप लगाए जाते हैं। कई ऐसे घर हैं, जहां पर गाय के गोबर के सूखे उपले से घर की छत गर्मियों में बनाई जाती थी, ताकि गांव की भीषण गर्मी से घर की छत को उपले की मदद से सहारा मिले। दिलचस्प यह भी है कि गाय के गोबर की पुताई करने से कीड़े भी घर से दूर रहते हैं। कई बार बारिश के मौसम में घर में आर रही बदबू को दूर करने के लिए भी गाय के गोबर के सूखे उपले को जलाकर घर के अंदर रखा जाता था।
गाय के गोबर के दीए
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यह काबिले तारीफ है कि ग्रामीण इलाकों में गाय के गोबर को भारतीय संस्कृति के भिन्न हिस्सों के साथ अर्थव्यवस्था से भी जोड़ दिया गया है। इसका नजारा गांव के कई इलाकों में देखने को मिलता है, जहां पर गाय के गोबर के दीए बनाकर इसका कारोबार किया जा रहा है। कई बड़े कारखाने मौजूद हैं, जहां पर गाय के गोबर से दीए बनाए जा रहे हैं, जिसकी बिक्री त्योहारों के समय सबसे अधिक होती है। मिट्टी के दीए के मुकाबले गाय के गोबर के बने हुए दिए सस्ते होते हैं। गाय के गोबर से बने दीए इंको फ्रेंडली होने के साथ कई रंगों से सजे होते हैं।
गाय के गोबर से बीमारी का इलाज
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गांव में यह भी परंपरा रही है कि सर्दी और बारिश के दिनों में गोबर के उपले को जलाकर कड़ाके की सर्दी में हाथ-पैर को सेंका जाता रहा है। यहां तक कि मलेरिया और डेंगू जैसी बीमारियों के गांव में फैलने पर गोबर के उपले जलाकर मच्छरों को दूर करने का काम किया जाता रहा है। गर्मी के मौसम में उपले को गीला करके उसे घर के कोनों में फैला दिया जाता था, ताकि घर में ठंडक बनी रहे।
गाय का गोबर बना व्यवसाय का जरिया
बीते कुछ सालों से गाय का गोबर ग्रामीण इलाकों में आर्थिक प्रबलता का जरिया बन गया है। गाय के गोबर से मूर्तियां भी बनाई जाती हैं। इतना ही नहीं गाय के गोबर से रसोई गैस से लेकर देसी खाद और पेंट, पेपर, बैग, दंत मंजन के साथ गोबर से ऑर्गेनिक पेंट का काम भी शुरू किया गया है।