शादियों का सीजन शुरू हो चुका है, लेकिन आजकल सोशल मीडिया पर गौर करें तो वहां हर दिन शादियां ही होती रहती हैं। ऐसे में अब आपस में बातचीत की जगह इन बातों पर सबका ध्यान अधिक होता है कि रील्स अच्छे बन जाने चाहिए। आइए इस ट्रेंड के बारे में विस्तार से समझें।
फेक ग्लोबल विलेज
शादियों का सीजन शुरू हो चुका है, लेकिन आजकल सोशल मीडिया पर गौर करें तो वहां हर दिन शादियां ही होती रहती हैं। एक ही तरह के गानों पर रील, एक ही तरह की हल्दी और मेहंदी सेलिब्रेशन। किसी और मायने में हो या न हो, सच्चाई यही है कि शादियों के शो ऑफ में हम ग्लोबल विलेज बन गए हैं, क्योंकि हम सबकुछ एक सा करने लगे हैं। दरअसल, गौर करें तो आजकल शादियों में आप नहीं आपके मोबाइल फोन का पहुंचना जरूरी होता है ऐसा लगता है, क्योंकि पूरे शादी के सेटअप पर ध्यान दें तो हल्दी से लेकर मेहंदी तक और शादी से लेकर विदाई तक में पूरे सेटअप और गाने एक जैसे लगते हैं और फिर कुछ गानों के सेटअप पर स्लो मोशन में उनकी एडिटिंग कर दी जाती है और ऐसा लगता है कि सबने एन्जॉय कर लिया है।
शादी का सीधा प्रसारण
अभी आप गौर करें तो लोग शादियों में इसलिए भी शामिल होने से गुरेज करने लगे हैं कि उन्हें महसूस होता है कि हम मोबाइल पर तो आसानी से सबकुछ देख सकते हैं। फिर क्यों शामिल होना है। दरअसल, गौर करें तो वीडियो कॉल ने भले ही दूरियां घटा दी है, लेकिन एक लिहाज से बढ़ा भी दिया है कि आप जब उन जगहों पर या उन लोगों से मिलते हैं, जिनसे हर दिन वीडियो पर बात हो ही जाती है तो आपस में बातचीत करने के लिए कोई विषय बच ही नहीं जाता है, न ही कोई टॉपिक, यहां तक कि घर में क्या नयी चीज हुई है, कौन सी चीज कहां रखी जा रही है, इसके बारे में भी वीडियो पर तो आप जान ही लेते हैं, फिर नतीजा नयी कोई बात नहीं होती, फिर थोड़ी ही देर में बातचीत में बोर हो जाते हैं और अपने-अपने फोन में व्यस्त हो जाते हैं या ज्यादा से ज्यादा कोई गेम खेलने लगते हैं।
लोक गीतों से अधिक रील के लायक गानें
शादियों और किसी फंक्शन में पहले लोक गीत अधिक गाए जाते थे। लेकिन अब केवल लोक गीतों की जगह इस बात पर अधिक फोकस किया जा रहा है कि ऐसे ही गाने बजाये जाएं, जिन पर रील्स बन सकें और रील्स ही लोगों के लिए मेमोरी कार्ड का हिस्सा बन रहे हैं, अब शादी एन्जॉय करने से अधिक लोग रील्स को एन्जॉय करना पसंद कर ले रहे हैं। ऐसे में लोक गीत की अहमियत भी अब सिमट रही है और लोगों को रील्स में ही मजा आने लगा है।
लिबास और गहने सब सोशल मीडिया की नकल
अब आप किसी शादी में भी जाएंगी, तो महसूस करेंगी कि सभी कपड़े और गहने भी इस अंदाज में पहन और खरीद रहे हैं कि उनमें तस्वीरें अच्छी आएं और आप उन्हें ही पहनें और फिर सोशल मीडिया पर शेयर करें, इस चक्कर में आजकल सारे कपड़े भी एक जैसे ही पहने जा रहे हैं। सबकुछ एक जैसा ही लगने लगा है, जबकि पहले की शादियों में यह अंतर नजर आता था, अलग-अलग संस्कृति की छाप झलकती थी, लेकिन अब यह गौण होती जा रही है। अब शादी व्याह के रीति-रिवाज हों या न हों, केवल रील्स वाले एक भी आइडियाज मिस न हो जाएं, इस पर फोकस है। आप शादी में क्या पहनेंगी से ज्यादा POV के कैप्शन क्या होंगे और फिर उस लिहाज से कपड़े और लुक तैयार करने पर अधिक फोकस किया जा रहा है।
तस्वीरें केवल मोबाइल तक सीमित
अब शादी के एल्बम मोबाइल तक ही सीमित है, हर किसी की यही ख्वाहिश होती है कि दूल्हा-दुल्हन के साथ तस्वीरें मोबाइल में कैद हो जाएं, बड़े कैमरे में कैद हों या न हों। शादियों में एक ट्रेंड ये भी बन चुका है कि फोटोग्राफर्स को वरमाला के स्टेज पर केवल दूल्हा और दुल्हन ही चाहिए, ताकि उनका फ्रेम सही बन सके, दूसरी तरफ फोटोग्राफर्स को फोन थमाने वालों की भी कमी नहीं रहती है, जब सभी उनसे जिद करने लगते हैं कि हमारे मोबाइल में फोटो ले लें, ताकि सोशल मीडिया पर शेयर हो सके।
और अंत में
तो इसलिए हमने कहा कि सच्चाई यही है कि इन दिनों, किसी भी शादी या समारोह में आप नहीं, बल्कि आपका मोबाइल का पहुंचना अनिवार्य है और आपकी आत्मा नहीं, बल्कि मोबाइल ही पहुंच रहे हैं।