सतुआन का पर्व उत्तर प्रदेश, झारखण्ड और बिहार में खूब धूमधाम से मनाया जाता है। खासतौर से इस दिन सत्तू को इष्ट देवता को अर्पित किया जाता है और इसे बड़े ही शानदार तरीके से खाया जाता है, तो वही पश्चिम बंगाल में पोइला बैसाख, तो पंजाब में होती है बैसाखी। आइए जानते हैं इसके बारे में विस्तार से।
पर्यावरण से जोड़ता है यह दिन
मेष संक्रांति के दिन झारखण्ड, बिहार, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के इलाके में सतुआन पर्व मनाया जाता है। चने से बने सत्तू का सेवन करने की सबसे बड़ी वजह यही होती है कि यह गर्मी के मौसम में ठंडक देती है। यह परम्परा लम्बे समय से चले आ रही है और यह दिन हमें प्रकृति से जोड़ता है, क्योंकि सत्तू समेत, आम के टिकोले की चटनी, प्याज और अचार हम इस दिन खाते हैं। मिट्टी के बर्तन में पानी रखा जाता है। जौ, मकई और चना का सत्तू खाया जाता है। वहीं बैसाखी में भी लोग काफी एन्जॉय करते हैं और फसलों इस महीने में रबी की फसल पककर पूरी तरह से तैयार हो जाती है और उनकी कटाई भी शुरू हो जाती है। वहीं पश्चिम बंगाल में भी इस दिन प्रकृति से जुड़ी चीजों को बढ़ावा देते हैं।
सत्तुआन की शीतलता
14 अप्रैल को हर साल यह पर्व मनाया जाता है। इस दिन मिट्टी के घड़े में जल को ढक कर रखना शुभ माना जाता है। उस जल को सतुआन के दिन पूरे घर में छिड़काव किया जाता है, बासी जल के छिड़काव में जो शीतलता होती है, उससे आंगन को शुद्ध किया जाता है और इस दिन बासी खाना भी खाया जाता है। इससे गर्मी के मौसम में शीतलता होती है। इस पर्व को बिहार के मिथिलांचल में जुड़शीतल पर्व के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन से ही मिथिला में नए साल की शुरुआत होती है। सतुआन का पर्व बैसाख माह के कृष्ण पक्ष की नवमी को सतुआन का पर्व मनाया जाता है। इस दिन भगवान सूर्य उत्तरायण की आधी परिक्रमा पूरी कर लेते हैं। इस दिन सत्तू से बनी रोटी भी खाई जाती है।
पश्चिम बंगाल का पोइला बैसाख
विश्व में नए साल का जश्न हर साल जनवरी की पहली तारीख को किया जाता है, लेकिन बंगाली समुदाय के लिए 15 अप्रैल नववर्ष की शुरुआत लेकर आता है, इसे पोइला बोइशाख या पोइला बैसाख कहते हैं। बंगाली समुदाय के लोगों के लिए पोइला बोइशाख ढेर सारी मिठाई और नए कपड़ों के साथ प्रार्थना भी लेकर आती है। साथ ही बंगाली समुदाय को लेकर अपनी मीठी बोली के साथ परिवार, दोस्तों और रिश्तेदारों के साथ पोइला बैसाख या पोइला बोइशाख का जश्न एक दूसरे को शुभो नोबो बोरसो कहकर बंगाली नववर्ष की बधाई देते हैं। इस दिन मीठे पकवानों के साथ चने की दाल यानी कि छोलार दाल बनाई जाती है, जिसे लुची के साथ परोसा जाता है। साथ ही एक पारंपरिक डिश कोशा मानशो भी बनाया जाता है, जो कि मटन से बनी एक ड्राई करी है। बंगाल में सबका पसंदीदा बैगुन भाजा भी दोपहर के खाने में परोसा जाता है, इसके साथ खस्ता कचौड़ी और आलुर दम भी नए साल के जश्न में स्वाद लेकर आता है।
बैसाखी है बेहद खास
बैसाखी के दिन एक से बढ़कर एक पकवानों को तैयार किया जाता है, जिनमें पीले वाले मीठे चावल भी पकाये जाते हैं और खूब प्यार से खाये जाते हैं। इस दिन पंजाब में पंजाबी कढ़ी भी बनाई जाती है। कई जगह छोले भटूरे खाये जाते हैं, लोग अपने दोस्तों के साथ और परिवार के साथ जाकर फसलों के खेत में डांस करते हैं, खूब सारे लोक संगीत के कार्यक्रम होते हैं। इस दिन से हर कोई अपनी नयी शुरुआत की कामना करते हैं।