होली का अवसर पर गुजिया का जिक्र न हो, भला ऐसे कैसे हो सकता है। होली के समय में कई जगहों में गुजिया बनाई जाती है। रंग के उत्सव के बीच गुजिया बनाने और खाने का रिवाज सदियों पुराना है। उत्तर प्रदेश और बिहार में ही नहीं बल्कि राजस्थान, बिहार, मध्य प्रदेश और हिमाचल प्रदेश में बहुत लोकप्रिय है। इन सारी जगहों के साथ गुजिया बनाने और खाने का ट्रेंड हर राज्य की संस्कृति के साथ जुड़ गया है। बाजारों में भी गुजिया की बिक्री होली के दौरान काफी बढ़ जाती है। ऐसे में होली के इस अवसर पर इस पर ध्यान जरूर देना चाहिए कि आखिर गुजिया और गुझिया में अंतर क्या है और इसका भारतीय संस्कृति से कैसे जुड़ाव रहा है। आइए जानते हैं विस्तार से।
गुजिया का इतिहास

भारतीय संस्कृति में गुजिया का इतिहास काफी अहम रहा है। यह खासतौर पर होली जैसे त्योहारों से जुड़ा हुआ रहता है। इसका इतिहास काफी प्राचीन है, कई बार यह विभिन्न राज्यों में अलग-अलग तरीकों से बनती रहती है। हालांकि गुजिया का सटीक इतिहास तलाश करना मुश्किल है, लेकिन भारतीय संस्कृति में गुजिया के असिस्तव का होना है। जानकारों का मानना है कि गुजिया कि जिक्र सबसे पहले उत्तर प्रदेश में हुआ था। माना जाता है कि यह मिठाई खासतौर पर राजस्थान, उत्तर प्रदेश और बिहार के क्षेत्रों से ली गई है। उत्तर प्रदेश, बिहार और राजस्थान में गुजिया को होली की पारंपरिक मिठाई माना जाता है।
राजपूतों से गुजिया का संबंध

कई इतिहासकारों का मानना है कि गुजिया का इतिहास राजपूतों और कछवाहा राजवंश से जुड़ा हुआ है। वहां पर राजवंश के समय से राजस्थान के अलवर और जयपुर के क्षेत्र में गुजिया को त्योहारों पर बनाने की परंपरा शुरू हुआ थी। इसके बाद धीरे-धीरे यह मिठाई बिहार और उत्तर प्रदेश में लोकप्रिय हुई। इसके बाद भिन्न राज्यों में गुजिया पसंद की जाने लगी। इसे न केवल उत्तर भारत में बल्कि मध्य भारत, पश्चिमी भारत के साथ नेपाल जैसे देशों में भी होली के त्योहार के लिए पसंद किया जाने लगा। भले ही इसे बनाने की विधि अलग क्यों न हो, लेकिन गुजिया में भरी जाने वाली मूल सामग्री जैसे मावा यानी कि खोया, सूजी और मेवे ( ड्राई फ्रूट्स) हर जगह समान ही रहते हैं।
बकलावा से प्रेरित

तुर्किए की लोकप्रिय मिठाई बकलावा है और ऐसा माना जाता है कि गुजिया इसी से प्रेरित है। इसके पीछे की वजह यह भी है कि बकलावा मैदे की कई परतों के बीच ड्राई फ्रूट्स , चीनी और शहद की फिलिंग को भरकर बनाया जाता है। यह भी कहा जाता है कि बकलावा को केवल शाही परिवार में ही बनाया जाता है। इसी मिठाई की तर्ज पर भारत में गुजिया की शुरुआत 13 वीं शताब्दी में हुई। सबसे पहले गुजिया को धूप में सुखाकर खाया जाता था, फिर इसे बनाने की क्रिया में कई प्रयोग किए गए।
क्या है होली और गुजिया का कनेक्शन

होली और गुजिया का कनेक्शन सबसे खास है। गुजिया को खाने का जुड़ाव वृंदावन से रहा है। जानकारों के मुताबिक होली पर गुजिया बनाने की परंपरा वृदांवन से शुरू हुई है। इसकी शुरुआत राधा रमण मंदिर से हुई थी, जहां पर होली के समय मंदिर में गुजिया का भोग लगाया गया था। उल्लेखनीय है कि साल 1542 के दौरान से यह मंदिर स्थापित है। साथ ही देश के सबसे पुराने मंदिर में इसकी गिनती होती है। इसके बाद से ही होली के दिन गुजिया बनाने की परंपरा की शुरुआत हुई।
क्या है गुजिया और गुझिया में अंतर

कई जगह यह भी दुविधा रहती है कि इस रवे और मावे की पांरपिक होली की मिठाई को गुजिया कहा जाता है या फिर गुझिया? गुुजिया और गुझिया नाम केवल दो राज्यों की परंपरा से जुड़ी हुई है। उत्तर प्रदेश के ज्यादातर हिस्सों में इसे गुजिया कहा जाता है। कई अन्य जगहों पर इसे गुझिया नाम से पुकारा जाता है। हालांकि, नाम के इस हल्के से बदलाव से इसके स्वाद पर किसी भी तरह का कोई असर नहीं पड़ता है। गुजिया और गुझिया को बनाने की विधि एक जैसी ही है, केवल इसका उच्चारण अलग तरह से किया जाता है। यह भी माना गया है कि राजस्थान, मध्य प्रदेश , दिल्ली, हरियाणा में इसे गुजिया कहा जाता है। वहीं उत्तर प्रदेश, बिहार और झारखंड में इसे गुझिया के नाम से जाना जाता है। कई जगहों पर गुजिया को अधिक कुरकुरा बनाने के लिए उसके ऊपर चाशनी की एक पतली परत चढ़ाई जाती है। गुजिया और गुझिया के आकार और बनावट में थोड़ा सा अंतर नजर आता है, इसके पीछे की वजह यह है कि गुजिया का आकार हल्के घुमावदार किनारों वाला होता है, जो इसे एक सुंदर लुक देता है। गुझिया का आकार थोड़ा छोटा और मोटा हो सकता है। गुजिया की फिलिंग में खोया और मेवा (ड्राई फ्रूट्स) को डाला जाता है। गुझिया में खोया और नारियल के फिलिंग का इस्तेमाल अधिक होता है।