हर संस्कृति में नयी बहू का जब गृह प्रवेश होता है, तो उनके आगमन की तैयारी खासतौर से की जाती है, खास बात यह है कि इनका खास अंदाज होता है। आइए जानें विस्तार से।
बिहार में बहू आगमन
बिहार में जब नयी बहू का आगमन होता है, तो उनको परछा जाता है। साथ ही घर में गृह प्रवेश करने से पहले सूप और दउरा रखा जाता है और एक-एक करके नयी दुल्हन उसमें पैर रखती हैं और माना जाता है कि घर की समृद्धि बढ़ती जाती है। सुख और संपत्ति की भी प्राप्ति होती है। इसके अलावा, नयी बहू के आगमन पर कई पकवान बनते हैं, जिनमें दाल की पूड़ियां, गुड़ की खीर, सब्जियां, कढ़ी और चावल भी थाली में सजाई जाती है और फिर घर के सारे बच्चे, नयी दुल्हन के साथ खाना खाते हैं।
पश्चिम बंगाल में बहू आगमन
पश्चिम बंगाल में बहू के आगमन पर भी हर्षोल्लास का माहौल होता है। अमूमन बांग्ला संस्कृति में बहू के आगमन पर बहू के पैरों को आलते में डूबो कर, किसी एक सफेद चादर पर छाप लिया जाता है और फिर उसे अपने पास रखा जाता है। चावल के कलश को गिराने की परम्परा यहां नहीं होती है। यहां बहू भात का भी आयोजन होता है और खाने-पीने की चीजें दी जाती हैं और नयी साड़ी दी जाती है। बहू को किचन में दूध गर्म करने को कहा जाता है और इससे घर की समृद्धि आती है, ऐसी मान्यता होती है।
आदिवासी संस्कृति में बहू आगमन
आदिवासी संस्कृति में बहू आगमन पर उन पर जल डालते हैं, फिर पेड़ों की पूजा की जाती है, फिर मीठे पकवान से मुंह मीठा किया जाता है। संस्कृति की यह खासियत यह होती है कि यह हर रूप में पूजा सिर्फ प्रकृति की ही करते हैं, इसलिए बहू आगमन पर भी अच्छा सम्मान होता है।
तमिल संस्कृति में बहू आगमन
तमिल संस्कृति में बहू के आगमन पर उनकी आरती करके उन्हें हाथों में फल दिए जाते हैं और फिर उन्हें किचन के चूल्हे पर सबसे पहले दूध ही गर्म करना होता है, तमिल संस्कृति में बहू के आगमन पर खास संस्कृति को महत्व दिया जाता है।
उत्तराखंड में बहू आगमन
उत्तराखंड में बहू आगमन पर खास तौर से पीतल की गहरी थाली में आम के पत्तों से सजे लोटे के पानी से पैर धोया जाता है और फिर बहू के खास आगमन की तैयारी की जाती है। इसके बाद पूजा की जाती है और फिर दूसरी परम्पराएं शुरू होती हैं।
पंजाब में बहू का आगमन
पंजाब में बहू के आगमन पर कच्ची दही यानी छाछ से बहू की नजर उतारी जाती है और फिर सफेद तिल और काले तिल से कुछ कह कर सास और बहू के दूसरे की आंचल में इसे देते हैं और इसके पीछे यह मान्यता है कि अब जीवन के हर सुख-दुःख में बहू के साथ उसकी सास भी खड़ी रहेंगी, साथ ही आलते से सफेद चादर पर छाप भी लिए जाते हैं।