कंपनियां स्वयं को आर्थिक रूप से सक्षम बनाने के लिए अपनी प्रतिष्ठा के आधार पर, एक निश्चित ब्याज दर पर ऋण लेने के लिए डिबेंचर का इस्तेमाल करती है। इसे आम बोलचाल की भाषा में ऋण प्रमाणपत्र भी कहते हैं। आइए जानते हैं डिबेंचर से जुड़ीं खास बातें।
कंपनी को दिया गया आर्थिक कर्ज है डिबेंचर
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बड़ी कंपनियों के लिए पैसे उधार लेने का सबसे आसान तरिका है डिबेंचर। हालांकि ये एक निश्चित समय और ब्याज दर के साथ दिया जाता है, जिसकी देने की क्षमता सालाना या छमाही होती है। गौरतलब है कि इक्विटी शेयर्स की तरह डिबेंचर भी आम जनता को दिए जाते हैं, जिन्हें डिबेंचर डीड या प्रमाण पत्र कहा जाता है। हालांकि शेयरधारकों की तरह डिबेंचर धारकों को वोटिंग का कोई अधिकार नहीं होता, क्योंकि वे सिर्फ लेनदार होते हैं, हिस्सेदार नहीं। एक चीज जो इसे और खास बनाती है, वो ये कि शेयर की तरह इसमें घाटे की गुंजाइश नहीं होती। अगर कंपनी घाटे में है, फिर भी कंपनी को लोगों के पैसे लौटाने होते हैं।
डिबेंचर के फायदे-नुकसान
डिबेंचर के कई लाभ हैं, जिनमें पहला लाभ ये है कि कंपनी अपनी इक्विटी को बदले या काम किए बिना अपनी जरूरत के हिसाब से कर्ज पा सकती है। इसके अलावा, डिबेंचर एक लंबे समय तक चलनेवाली प्लानिंग और आर्थिक लाभ को बढ़ानेवाला साधन है। इसके अलावा दूसरे कर्ज की तुलना में डिबेंचर काफी सस्ते होते हैं। आम लोगों के लिए डिबेंचर फायदे का सौदा इसलिए भी है, क्योंकि दूसरे साधनों की तुलना में यहां उनके पैसे सुरक्षित रहते हैं। कंपनी के मद्देनजर मुद्रास्फीति के समय भी फंड इकट्ठा करने के लिए ये सबसे बेहतर विकल्प है। इसमें दो राय नहीं कि डिबेंचर के जरिए आम लोगों के साथ कंपनी भी अपना हित साधती है, लेकिन कंपनी के नजरिए से देखा जाए तो ये उनकी वित्तीय सेहत के लिए अच्छी नहीं है। दरअसल इससे कंपनी को इक्विटी के आधार पर बिजनेस करने में मदद तो मिलती है, लेकिन ये उन्हें कर्ज पर निर्भर होने का एहसास भी करवाती है। साथ ही पैसे चुकाते समय ये उनकी लिक्विडिटी को भी प्रभावित करती है। विशेष रूप से मंदी के दौरान जब कंपनी लाभ न कमा पा रही हो, तब डिबेंचर अपनी निश्चित ब्याज दर के कारण महंगे का सौदा साबित होती है।
कई प्रकार हैं डिबेंचर के
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यही वजह है कि डिबेंचर के फायदे-नुकसान को ध्यान में रखते हुए अपने हित के लिए कंपनी कई तरह के डिबेंचर जारी करती है। इन डिबेंचर में सबसे पहला नाम आता है सुरक्षित डिबेंचर। कंपनी अपने एसेट्स के विरुद्ध जिन डिबेंचर को जारी करती है, उन्हें सुरक्षित डिबेंचर कहते हैं। इसका मतलब यह है कि रकम लौटाते समय यदि कंपनी के पास पैसे न हो, तो वे इन एसेट्स को बेचकर लोगों का कर्ज चुकाएगी। दूसरे प्रकार के डिबेंचर हैं असुरक्षित डिबेंचर। आम तौर पर भारत में इन्हें जारी नहीं किया जाता, फिर भी समझने के लिए आपको बता दें कि इस तरह के डिबेंचर कंपनी एसेट्स से संबंधित नहीं होते। तीसरे डिबेंचर के तहत आते हैं रिडीमेबल डिबेंचर, जिन्हें आप कंपनी द्वारा दी गयी निश्चित अवधि में ही रिडीम कर सकती हैं, उससे पहले नहीं। हालांकि इसमें अपनी सुविधा अनुसार आप एक साथ या किश्तों में अपनी रकम ले सकती हैं। इसके अलावा इन्हें आप किसी डिस्काउंट पर भी रिडीम कर सकती है। कुछ डिबेंचर ऐसे होते हैं, जिन्हें रिडीम करने की कोई तिथि नहीं होती। इस डिबेंचर के तहत कंपनी अपनी सुविधा अनुसार लोगों को उनकी रकम लौटाती है। इन्हें न बदले जानेवाले डिबेंचर कहते हैं। हालांकि इसके मुकाबले पूरी तरह से बदले जानेवाले डिबेंचर आपके लिए फायदे का सौदा हो सकते हैं, क्योंकि इसके अंतर्गत आप चाहें, तो अपने डिबेंचर को इक्विटी शेयर में भी बदल सकती हैं। इसके अलावा, जहां आंशिक रूप से बदले जाने वाले डिबेंचर के तहत आपको अपने डिबेंचर आंशिक रूप से शेयर में बदलने के लिए चुनने का विकल्प दिया जाता है, वहीं गैर बदले जानेवाले डिबेंचर के तहत आपको अपने डिबेंचर, इक्विटी शेयर में बदलने का विकल्प नहीं दिया जाता। ये आम डिबेंचर होते हैं।
शेयर के मुकाबले फायदे का सौदा है डिबेंचर?
जैसा कि हमने बताया, आम तौर पर कंपनियां फंड जुटाने के लिए समय-समय पर अलग-अलग प्रकार के डिबेंचर जारी करती रहती हैं। अब अगर हम इसके परिणामों पर नजर डालें, तो ग्राहकों के साथ कंपनियों के लिए भी ये फायदे का सौदा होते हैं, क्योंकि एक तरफ जहां इसके जरिए ग्राहकों को पैसा डूबने का डर नहीं होता, वहीं कंपनियां भी इस बात से निश्चिंत होती हैं कि इससे उनकी कंपनी के मालिकाना हक पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। इसके अलावा, इक्विटी शेयरों के मुकाबले फंड जुटाने की लागत डिबेंचर में काफी सस्ती होती है। अक्सर देखा गया है कि अधिकतर कंपनियां रजिस्टर्ड सिक्योर एनसीडी जारी करती हैं, जिससे इंवेस्टर्स की रकम बची रहे। यदि आप भी अपने फाइनेंशियल पोर्टफोलियो में डिबेंचर जोड़ना चाहती हैं, तो किसी विशेषज्ञ का मार्गदर्शन लेकर आगे बढ़ सकती हैं।
डिबेंचर, बॉन्ड और शेयर में अंतर
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गौरतलब है कि शेयर, बॉन्ड और डिबेंचर का प्रारूप एक होने के बावजूद ये तीनों एक दूसरे से काफी अलग होते हैं। जहां डिबेंचर कंपनियों द्वारा ऋण जुटाने का मात्र एक साधन है, वहीं शेयर किसी कंपनी में स्वामित्व या प्रतिनिधित्व को दर्शाता है। डिबेंचर धारकों के पास कंपनी के मालिकाना हक के साथ वोटिंग अधिकार नहीं होते, वहीं शेयर धारक न सिर्फ कंपनी के मालिक होते हैं, बल्कि उनके पास वोटिंग का अधिकार भी होता है। डिबेंचर धारकों को एक निश्चित अवधि पर ब्याज और मेच्योरिटी पर पूरे पैसे मिलते हैं। साथ ही इंवेस्टमेंट पर रकम पहले से तय होती है, लेकिन शेयरधारकों का रिटर्न कंपनी की आर्थिक स्थिति अनुसार बदलता रहता है। इसके अलावा शेयरधारकों की तुलना में डिबेंचर धारकों का रिस्क काफी कम होता है। शेयरधारकों का लाभ कंपनी के आर्थिक प्रदर्शन पर निर्धारित होता है, जैसे कंपनी का फायदा, उनका फायदा और कंपनी का नुकसान, उनका नुकसान होता है। इसके अलावा बॉन्ड, कर्ज से संबंधित वो सिक्योरिटी होती है, जो सुरक्षित और असुरक्षित दोनों हो सकती है। इन्हें आम तौर पर सरकार, नगरपालिका या निगमों, जैसी विभिन्न संस्थाएं ऋण साधनों के रूप में जारी करती हैं। डिबेंचर की तरह इनमें भी कुछ बॉन्ड्स को इक्विटी शेयर में बदलने का विकल्प होता है। हालांकि जारी करनेवाली संस्थाओं के आधार पर इसके साथ भी कई रिस्क जुड़े होते हैं, जिससे एक निश्चित रिटर्न या रिटर्न में बदलाव हो सकते हैं। साथ ही डिबेंचर की तरह क्रेडिट रेटिंग, बॉन्ड पर भी लागू होती है, जो ब्याज दर पर कथित क्रेडिट रिस्क को प्रभावित कर सकती है।
डिबेंचर के रिस्क फैक्टर
यह बात तो आप भी जानती होंगी कि बाजार में फायदे और नुकसान के अलावा तीसरी कोई चीज नहीं होती। आम तौर पर लोग फायदे की मंशा के साथ ही बाजार में प्रवेश करते हैं, लेकिन मात खा जाते हैं। हालांकि ये उनके साथ होता है, जो किसी भी इंवेस्टमेंट से पहले उसके रिस्क फैक्टर पर ध्यान नहीं देते। अत: डिबेंचर में अपनी किस्मत आजमाने से पहले आपको इसके रिस्क फैक्टर पर भी गौर कर लेना चाहिए। तो सबसे पहले जरूरी है कि किसी भी कंपनी के डिबेंचर खरीदने से पहले आप उस कंपनी के कर्ज लेने और देने की योग्यता का आकलन करें। इसके अलावा, ब्याज दरों में बदलाव के प्रति डिबेंचर की कीमतों को समझें। बाजार में कुछ डिबेंचरों की आर्थिक मूल्य सीमित हो सकती है, इसलिए उस पर भी ध्यान दें और बाजार की स्थितियों के अनुसार मूल्य में आ रहे उतार-चढ़ाव के लिए सदैव तैयार रहें।