स्टॉक्स, बॉन्ड्स और अन्य सिक्योरिटीज के जरिए एसेट्स का निवेश पोर्टफोलियो प्रबंधन कहलाता है। आइए जानते हैं किस तरह निवेशक इनके जरिए वित्तीय उद्देश्यों के साथ जोखिम उठाने की क्षमता को ध्यान में रखते हुए अधिक से अधिक वित्तीय लाभ कमा सकते हैं।
निवेश के साथ प्रबंधन भी जरूरी है
जोखिम को कम करते हुए किसी व्यक्ति या संस्थान को अधिकतम रिटर्न प्राप्त करवाना परफेक्ट प्रबंधन के दायरे में आता है। अगर ये कहें तो गलत नहीं होगा कि एसेट्स का बंटवारा, सिक्योरिटी सिलेक्शन, जोखिम प्रबंधन और पोर्टफोलियो की लगातार निगरानी, पोर्टफोलियो प्रबंधन के अंतर्गत आता है। ऐसे में जोखिमों को कम करने के साथ अधिक से अधिक रिटर्न पाने के लिए, निवेशकों के लिए पोर्टफोलियो प्रबंधन बहुत जरूरी है। वैसे अपने निवेश बाजार के नॉलेज के आधार पर आप अपने शेयर बाजार पोर्टफोलियो का प्रबंधन स्वयं कर सकते हैं या फिर किसी एक्सपर्ट की भी सलाह ले सकते हैं, लेकिन इसकी गहराई में जाने से पहले यह समझना बहुत जरूरी है कि पोर्टफोलियो प्रबंधन का उद्देश्य क्या है।
पोर्टफोलियो प्रबंधन का उद्देश्य
जैसा कि हमने ऊपर बताया निवेश को अपने अनुकूल करते हुए, जोखिम को कम करना ही आदर्श पोर्टफोलियो प्रबंधन के दायरे में आता है। पोर्टफोलियो प्रबंधन के कई उद्देश्य हैं, जैसे डिफाइंड जोखिम मापदंडों के अनुसार अधिकतम रिटर्न पाने का प्रयास करना, अस्थिरता को कम करने के लिए विभिन एसेट्स में निवेश करना, लंबे समय तक स्थिरता को सुनिश्चित करने के लिए प्रारंभिक निवेश की सुरक्षा, अपने लक्ष्यों के साथ तारतम्यता बिठाना, बदलते बाजार स्थितियों के अनुसार पोर्टफोलियो का नियमित मूल्यांकन करते हुए निरंतर निगरानी करना, रुपयों की जरूरत पड़ने पर अपने निवेश का सही उपयोग करना और टैक्स कम करना। गौरतलब है कि ऐसे कई एसेट्स और सिक्योरिटीज है, जिन्हें आप अपने लक्ष्यों को पूरा करते हुए जोखिम सहनशीलता और निवेश की रणनीति के अनुसार अपने पोर्टफोलियो में शामिल कर सकते हैं। इनमें इक्विटीज, फिक्स्ड इनकम बॉन्ड्स, म्युच्युअल फंड्स, मनी मार्केट फंड्स के साथ वैकल्पिक निवेश और एक्सचेंज ट्रेड फंड शामिल है। गौरतलब है कि वैकल्पिक निवेश में रियल एस्टेट, प्राइवेट इक्विटी और हेज फंड्स आते हैं, वहीं एक्सचेंज ट्रेड फंड में शेयर, बॉन्ड्स और दूसरे ऐसेट्स आते हैं।
पोर्टफोलियो प्रबंधन के प्रकार
आम तौर पर पोर्टफोलियो चार प्रकार के होते हैं, जिनमें सबसे पहले आता है सक्रीय पोर्टफोलियो प्रबंधन। इसके अंतर्गत एक्सपर्ट रुझानों का विश्लेषण करते हुए गहन शोध करते हैं, जिससे निवेशक को बेहतर रिटर्न मिल सके। उसके बाद आता है निष्क्रिय पोर्टफोलियो प्रबंधन। इसके अंतर्गत किसी तरह का कोई विश्लेषण किए बिना सूचकांक के आधार पर रणनीति बनाना। तीसरे नंबर पर है विवेकाधीन पोर्टफोलियो प्रबंधन, जिसके अंतर्गत प्रबंधकों द्वारा दी जा रही निवेश सेवाओं का लाभ उठाते हैं। इसमें प्रत्येक लेन-देन के दौरान ग्राहक की सहमति अनिवार्य नहीं होती। इसके विपरीत चौथे प्रकार के पोर्टफोलियो प्रबंधन अर्थात गैर विवेकाधीन पोर्टफोलियो प्रबंधन में प्रबंधकों से निवेश सलाह तो ली जाती है, किंतु पूरा नियंत्रण निवेशक का होता है। साथ ही प्रत्येक लेन-देन के लिए ग्राहक की स्पष्ट सहमति अनिवार्य होती है।
पोर्टफोलियो प्रबंधन का तरीका
बाजार की गतिविधियों पर नजर रखना बहुत जरूरी है, क्योंकि आप सिर्फ किसी और पर निर्भर नहीं रह सकते। ऐसे में ये समझना बहुत जरूरी है कि पोर्टफोलियो प्रबंधन का तरीका क्या है? निवेशक के तौर पर सबसे पहले इस बात का ख्याल रखें कि निवेश के दौरान जोखिम को कम करते हुए अपने रिटर्न को अपने अनुकूल बनाएं और फिर एक रणनीति के तहत, स्थिर और अस्थिर दोनों ऐसेट्स के लिए फंड मुहैया करवाएं। इसके साथ ही अपने एसेट्स को ध्यान में रखते हुए वित्तीय लक्ष्यों और जोखिम में तारतम्यता बनाएं। इससे पोर्टफोलियो प्रबंधन को एक व्यक्तिगत दृष्टिकोण मिलता है। यदि आप एक से अधिक निवेश करते हैं, तो एक संतुलित पोर्टफोलियो के जरिए आप जोखिम और रिटर्न में सही संतुलन बिठा पाएंगे। इस विषय में आपका नॉलेज आपके जोखिम को कम करने में कारगर हो सकता है, इसलिए कोशिश कीजिए कि सभी बातों पर अपनी पैनी नजर बनाए रखें। ध्यान रखिए फ्लेक्सिबल पोर्टफोलियो के साथ आप जोखिम को एडजस्ट करते हुए समय के साथ लगातार रिटर्न पा सकते हैं। हालांकि समय समय पर पोर्टफोलियो पर ध्यान देना भी जरूरी है, जिससे आप पोर्टफोलियो को बाजार के अनुरूप बनाकर अधिक लाभ कमा सकें।
अलग-अलग एसेट्स के अलग-अलग जोखिम
निवेश के दौरान सबसे जरूरी बात जो निवेशक को पता होनी चाहिए, वो ये कि अलग-अलग एसेट्स के साथ अलग-अलग जोखिम जुड़े होते हैं। कुछ स्थिर होते हैं तो कुछ अस्थिर, लेकिन एक बात जो आपको ध्यान में रखनी चाहिए, वो ये कि पोर्टफोलियो निवेश के अधिकतर मामलों में जोखिम सीधे निवेश के रिटर्न से जुड़ा होता है। आपने अक्सर देखा होगा कि कभी-कभी कुछ अस्थिर सिक्योरिटीज भी हाई रिटर्न दे जाती हैं। इसका मतलब ये नहीं है कि कम समय में अधिक लाभ कमाने के लिए आप जोखिम से भरे एसेट्स में ही निवेश करें। यहां से ये बात आपको समझनी होगी कि इसके लिए ही पोर्टफोलियो डाइवर्सिफिकेशन की जरूरत पड़ती है। इसके जरिए जोखिम को कम करते हुए लंबे समय तक रिटर्न पाने के लिए विभिन्न एसेट्स और सिक्योरिटीज में निवेश करने की सलाह दी जाती है। इससे यदि आपको किसी एक एसेट में घाटा भी उठाना पड़े, तो दूसरे एसेट के जरिए भरपाई की संभावना बनी रहती है और आपका पोर्टफोलियो खराब नहीं होता।
पोर्टफोलियो का सही प्रबंधन करें या एक्सपर्ट की सलाह लें
ये बात बिल्कुल जाहिर-सी है कि पैसा आपका है, तो जोखिम भी आपका ही होगा। ऐसे में अपने निवेश को अच्छी तरह प्रबंधित करते हुए उसके जोखिम को कम करना और अपने रिटर्न को बढ़ाना, आपकी प्राथमिकता होनी चाहिए। और इसके लिए जरूरी है अपने निवेश का विश्लेषण करते हुए पोर्टफोलियो का सही प्रबंधन करना। इस तरह अपनी व्यक्तिगत जरूरतों और लक्ष्यों को ध्यान में रखते हुए आप वित्तीय सुरक्षा के साथ सफलता भी प्राप्त कर सकते हैं। हालांकि इसके लिए जरूरी है कि एक योजना बनाते हुए आप बाजार पर नजर रखें और कंपनी के प्रदर्शन का विश्लेषण करते हुए कम या ज्यादा मूल्य के एसेट्स की पहचान करें और लाभ कमाएं। यदि आपके पास समय, नॉलेज या बाजार के रुझानों की कमी है, तो आप एक्सपर्ट्स की भी सलाह ले सकते हैं। वे बाजार के रुझानों पर नजर रखते हुए आपके पोर्टफोलियो को न सिर्फ व्यवस्थित करते हैं, बल्कि पोर्टफोलियो ट्रैकिंग में भी आपकी मदद कर सकते हैं।
पोर्टफोलियो प्रबंधन की प्रक्रिया
बतौर निवेशक अपनी आय के साथ अपनी पूंजी का ख्याल रखते हुए, अपने समय और अपने जोखिम पर ध्यान देना बहुत जरूरी है। ये आपके निवेश उद्देश्यों के साथ पोर्टफोलियो लक्ष्यों को पूरा करने में मददगार हो सकते हैं। इसके अलावा अपने निवेश और जोखिम के आधार पर अपनी निश्चित आय, अपनी इक्विटी, अपने रूपये और अन्य विकल्पों के जरिए भी आप अपने निवेश उद्देश्यों को पूरा कर सकते हैं। सिर्फ यही नहीं एक्टिव एसेट के साथ सही एसेट का चुनाव करके आप बास्केट निवेश पोर्टफोलियो की कला भी सीख सकते हैं। डाइवर्सिफिकेशन और हेजिंग के साथ अन्य तकनीकों का सहारा लेकर आप बाजार जोखिम, क्रेडिट जोखिम और लिक्विडिटी जोखिम पर अपनी नजरें जमाए रख सकते हैं। जैसा कि हमने ऊपर भी बताया था, अपने रिटर्न और जोखिम में संतुलन बनाते हुए समय-समय पर अपने एसेट्स में बंटवारा करते रहें। गौरतलब है कि पोर्टफोलियो प्रबंधन की प्रक्रिया, पोर्टफोलियो के प्रकार और निवेश प्रबंधक के दृष्टिकोण के आधार पर अलग-अलग हो सकते हैं, लेकिन लक्ष्य एक ही है और वो है जोखिम और रिटर्न में तारतम्यता बनाते हुए वित्तीय लाभ कमाना।