बचपन में हमारे गुल्लक का खजाना मां होती है। बाजार से गुल्लक खरीदने से लेकर लेकर हमारी हथेली में चवन्नी या फिर अठन्नी रखते हुए मां बचत करने की सीख देती थी। बचपन की सीख का यह असर हुआ है कि गुल्लक आज भी हमारे लिए बचत का सबसे सशक्त माध्यम बना हुआ है। यह कहने में कोई गुरेज नहीं है कि मां असल तौर पर एक बैंक है। घर छोटा हो या बड़ा, इससे मां को फर्क नहीं पड़ता। वह पैसे सुरक्षित रखने के लिए अपने घर के कई सारे कोनों में कोई न कोई ठिकाना खोज लेती थी। आइए जानते हैं कैसे।
साड़ी के पल्लू के गांठ में बंधा पैसा
मां की यह आदत हुआ करती थी कि वह सब्जी या राशन की दुकान पर सामान खरीदने जाती, तो बचे हुए पैसे को अपनी साड़ी के पल्लू में दबाकर गांठ बना लेती। मां के साड़ी के पल्लू की गांठ में छुट्टे पैसों की खन-खन होती है। जब भी मां को दुकान से कुछ सामान लाना हो या फिर घर के दरवाजे पर सब्जी वाले से धनिया खरीदनी हो, तो मां अक्सर पल्लू में अपने बनाए गए इस छुट्टे पैसे का इस्तेमाल करतीं। मां के बैंक में यह दैनिक बचत खाता कहलाता है।
चावल के डिब्बे में पैसे की पुड़िया
जब भी घर में कोई इमरजेंसी आ जाये या फिर स्कूल की फीस के साथ पिकनिक के लिए पैसे चाहिए होते, तो मां का यह डिब्बे वाला बैंक हमेशा काम आता था। चावल या फिर दाल के डिब्बे के नीचे के हिस्से में रूमाल में बांधकर मां नोट रखा करती। यहां वह घर के खर्च से बचाये गए हर दिन के पैसे को शाम को पूरा काम खत्म करने के बाद रूमाल में बांधकर रखती और जरूरत पड़ने पर मां के चावल के डिब्बे वाला जुगाड़ सारी दिक्कत खत्म कर देता था। मां के बैंक में यह रिकरिंग अकाउंट कहलाता है।
मसालों के डिब्बे के बीच छुपी तिजोरी
किचन में मां ने अपनी एक दुनिया बसा रखी है। अपनी इस दुनिया में मां ने छोटी सी डिब्बे वाली तिजोरी भी सजा कर रखी है। मसालों के सारे डिब्बों के एक दम पीछे मां अपने बचाए हुए पैसे को इस डिब्बे के अंदर रखती है। मां के बैंक में यह फिक्स डिपॉजिट कहलाता है।
परिवार का गुल्लक
बाजार से कुछ पैसे में मां घर के लिए सबसे जरूरी सामान लेकर आती थी, वो है गुल्लक। मां इस गुल्लक के जरिए यह सिखाती हैं कि कैसे बचत करनी चाहिए। परिवार का हर छोटा-बड़ा सदस्य इस गुल्लक में हर दिन पैसे जरूर डालता है। यह गुल्लक मां के बैंक में फैमिली सेविंग कहलाता है।
मां की पेटी में भी पैसे का इंतजाम
घर के कई कोने में मां की मौजूदा बैंक के साथ अलमारी में एक पेटी भी हुआ करती थी। इस छोटी सी पेटी के साथ अलमारी के ऊपर मौजूद बड़ी पेटी में भी पैसे बांधकर रखे होते हैं। छोटी और बड़ी पेटी में मां के गहनों के साथ पैसों का एक बंडल होता था, जो कि घर में किसी त्योहार या फिर यात्रा के दौरान बचाई गई बड़ी रकम में से मां किसी न किसी तरह से बचा लेती थी। मां के बैंक में यह बचत खाता कहलाता है।
मां के पास होते थे कई सारे छोटे बटुए
मां की एक आदत हुआ करती थी कि ज्वेलर्स के पास से मिले छोटे-छोटे बटुए( पर्स) को इकट्ठा करके मां अपने लिए कई सारे बटुए बना लेती। इन सारे बटुए में मां कुछ न कुछ पैसे जरूर रखा करती थी। मां का मानना था कि बटुए को कभी भी खाली नहीं रखते हैं। मां के बैंक में यह छोटे-छोटे बटुए में जमा किए हुए पैसे सेविंग अकाउंट कहलाता है।
दरअसल, यह कहने में कोई गुरेज नहीं है कि मां असल मायने में पूरे परिवार के लिए बैंक का काम करती हैं। हर मुश्किल वक्त में मां का यह बैंक दुआ का काम करता है। जरूरी है कि भले ही आपके पास बैंक अकाउंट क्यों न हो, लेकिन मां की पैसे को लेकर बनाई गईं इन तरकीबों को हम सभी को अपने जीवन में जरूर अपनानी चाहिए। मां के पैसों की बचत को लेकर बनाई गई यह योजना सालों से यह सीख देती है कि बूंद-बूंद से घड़ा भरता है और यह घड़ा मुश्किल दिनों की प्यास को मिटाने के लिए सबसे बड़ा यंत्र है।