नॉन बैंकिंग फाइनेंशियल कंपनियों के साथ बैंक, पोस्ट ऑफिस, बिल्डिंग सोसायटी और क्रेडिट यूनियन जैसी फाइनेंशियल संस्थानों में टाइम डिपॉजिट पर उपलब्ध इंवेस्टमेंट इंस्ट्रूमेंट को टर्म डिपॉजिट कहते हैं। आइए जानते हैं इससे जुड़ी कुछ खास बातें।
क्या है टर्म डिपॉजिट
टर्म डिपॉजिट के अंतर्गत अकाउंट होल्डर एक निश्चित समय सीमा के लिए निश्चित ब्याज दर के साथ एक राशि जमा करता है, जिसमें आम तौर पर शॉर्ट टर्म मेच्यॉरिटीज होती हैं। गौरतलब है कि टर्म डिपॉजिट में आप चाहकर भी समय से पहले अपनी रकम नहीं निकाल सकती। हां, यदि आप चाहें तो पैनल्टी के रूप में कुछ रकम अदा कर टर्म खत्म होने से पहले अपनी रकम प्राप्त कर सकती हैं, लेकिन उसके लिए आपको इन फाइनेंशियल संस्थानों को जल्द से जल्द सूचित करना होगा। गौरतलब है कि फाइनेंशियल संस्थानों द्वारा टर्म डिपॉजिट के अंतर्गत आपके द्वारा जमा किए गए रकम का उपयोग किसी बिजनेस या ग्राहक को उधार देने के लिए किया जाता है, जिसके बदले में निवेशक को ज्यादा ब्याज मिलता है। आर्थिक दृष्टि से देखें तो अधिक मुनाफे के साथ यह एक सुरक्षित इंवेस्टमेंट है, जिसमें दूसरे इंवेस्टमेंट की तुलना में सबसे कम जोखिम होता है।
टर्म डिपॉजिट के फायदे
ऊपर-नीचे होते मार्केट में जहां इंवेस्टर अपने पैसों को लेकर हमेशा सशंकित रहते हैं, वहीं टर्म डिपॉजिट में आप अपने पैसे इंवेस्ट करके बिना जोखिम अच्छी खासी रकम जमा कर सकती हैं। साथ ही इसमें आप अपनी इच्छा अनुसार अवधि भी चुन सकती हैं, जिससे आप लंबे समय के लिए न सिर्फ अपनी रकम को लेकर निश्चिंत रह सकें, बल्कि इसके जरिए अच्छी खासी रकम भी कमा सकें। इसके अलावा बिना किसी बदलाव के प्रभावित होनेवाली ब्याज दरें टर्म डिपॉजिट को और खास बनाती हैं, लेकिन आपको ये बात भी ध्यान में रखनी होगी कि इन्कम टैक्स एक्ट को ध्यान में रखते हुए ब्याज पर टैक्स लगता है, जो टीडीएस के अधीन होता है। इसमें आपके द्वारा डिपॉजिट की जा रही अधिकतम रकम की कोई सीमा नहीं होती, लेकिन इसमें कम से कम में 1000 रूपये रूपये तय किये गए हैं। टर्म डिपॉजिट का एक फायदा यह भी है कि इसके अंतर्गत मेच्योर होनेवाली रकम की यदि आपको जरूरत न हो तो आप उस रकम को एक बार फिर निश्चित समय सीमा के साथ डिपॉजिट कर सकती हैं, जिसे रोल ओवर कहते हैं। इसमें मेच्योरिटी प्रोसीड को दुबारा इंवेस्ट करके मिल रहे ब्याज को फिर से जोड़ा जाता है। सिर्फ यही नहीं जरूरत पड़ने पर आप चाहें तो टोटल डिपॉजिट रकम पर लोन का लाभ भी उठा सकती हैं।
टर्म डिपॉजिट के प्रकार
टर्म डिपॉजिट के अंतर्गत यह फाइनेंशियल संस्थान अलग-अलग ग्राहकों के लिए अलग-अलग तरह के टर्म डिपॉजिट का विकल्प देती है, जिनमें बच्चों और युवाओं से लेकर सीनियर सिटिजंस शामिल हैं। विशेष रूप से सीनियर सिटिजंस के लिए जहां ऊंचे ब्याज दर के साथ टैक्स सेविंग टर्म डिपॉजिट की सुविधा है, वहीं बच्चों के लिए दस वर्ष से कम आयु की लड़की की आर्थिक स्थिरता में सुधार करने के लिए सुकन्या योजना है। इसके अलावा स्वीप-इन-फैसिलिटी, लॉन्ग टर्म-शॉर्ट टर्म डिपॉजिट, टैक्स-सेवर डिपॉजिट, पोस्ट ऑफिस डिपॉजिट और जमा तथा गैर जमा टर्म डिपॉजिट है। स्वीप-इन-फैसिलिटी के अंतर्गत जहां सेविंग्स अकाउंट के फंड को टर्म डिपॉजिट से स्वीप-इन, स्वीप-आउट किया जा सकता है, वहीं लॉन्ग टर्म-शॉर्ट टर्म डिपॉजिट में 1 से 12 महीनों की शॉर्ट टर्म अवधि और 1 से 10 वर्ष की लॉन्ग टर्म अवधि शामिल होती है। शॉर्ट टर्म डिपॉजिट की तुलना में, लॉन्ग टर्म डिपॉजिट में ब्याज दर ज्यादा होता है। जमा तथा गैर जमा टर्म डिपॉजिट में जमा टर्म डिपॉजिट के अंतर्गत अपनी रकम रोल ओवर करनेवाले डिपॉजिटर को मेच्योरिटी के समय लमसम ब्याज दिया जाता है और गैर जमा टर्म डिपॉजिट के अंतर्गत 12 महीने में, 3 महीने में या हर महीने ब्याज दर मिलता है। पोस्ट ऑफिस डिपॉजिट के अंतर्गत डाकघर भी वित्तीय सेवाएं देता है, जिनमें डिपॉजिट की एक राशि निश्चित कर उसे निश्चित ब्याज दर पर निश्चित समय सीमा के लिए लॉक कर दिया जाता है। उदाहरण के तौर पर 200 रूपये की निश्चित राशि को 7.5 प्रतिशत की ब्याज दर पर पांच वर्ष के लिए टर्म डिपॉजिट कर दिया जाए। हालांकि पोस्ट ऑफिस डिपॉजिट के तहत पांच वर्ष से अधिक समय की अवधि के बाद डिपॉजिटर को इनकम टैक्स एक्ट 800 के तहत टैक्स में लाभ भी मिलता है।
कैसे काम करता है टर्म डिपॉजिट
उधार लेनेवाले धारकों से अधिक ब्याज दर लेकर टर्म डिपॉजिटर को लाभ के जरिए निश्चित राशि का भुगतान करना टर्म डिपॉजिट का उद्देश्य है। ऐसे में बढ़ रही ब्याज दरों को देखते हुए ग्राहक, टर्म डिपॉजिट करते हैं और जब ब्याज दरें कम होती हैं, तो ग्राहक उधार लेकर अपनी जरूरतें पूरी करती हैं। यही वजह है कि टर्म डिपॉजिट में मेच्योरिटी डेट तक ब्याज दरें तय होती हैं, जैसे अधिक अवधि पर अधिक ब्याज और कम अवधि पर कम ब्याज दी जाती हैं। टर्म डिपॉजिट को डिपॉजिट सर्टिफिकेट भी कहा जाता है, क्योंकि इसमें कस्टमर स्टेटमेंट के द्वारा टर्म डिपॉजिट की सारी शर्तें साफ-साफ लिखी होती हैं, जैसे जमा की जा रही रकम पर मिलनेवाला ब्याज दर और उसकी मेच्योरिटी डेट। इसके अलावा, यह भी लिखा होता है कि मेच्योरिटी डेट से पहले डिपॉजिटर के पैसे लेने पर उन्हें पैनल्टी के रूप में कुछ रकम बैंक या फाइनेंशियल संस्थानों को देनी होंगी। इस स्टेटमेंट पर डिपॉजिटर के हस्ताक्षर सहित उक्त फाइनेंशियल संस्थानों की सील भी होती है।
फिक्स्ड डिपॉजिट और टर्म डिपॉजिट में अंतर
अक्सर लोग टर्म डिपॉजिट और फिक्स्ड डिपॉजिट को एक समझ लेते हैं। यह बात सच है कि इसकी रूपरेखा और कार्यप्रणाली एक जैसी है, लेकिन एक जैसी होने के बावजूद दोनों में काफी अंतर है। टर्म डिपॉजिट के अंतर्गत विशेष अवधि के लिए डिपॉजिट बढ़ाया जाता है। उदाहरण स्वरूप टर्म डिपॉजिट में 3 या 6 महीने या उससे अधिक के लिए समय सीमा बढ़ाई जाती है। फिक्स्ड डिपॉजिट में डिपॉजिट को कम से कम 6 महीने या उससे अधिक की अवधि के साथ लॉक कर दिया जाता है। हालांकि दोनों इंवेस्टमेंट में डिपॉजिटर अधिक से अधिक ब्याज पाने के लिए एक निश्चित समय सीमा के लिए पैसे जमा करते हैं, किंतु अधिक ब्याज की बात करें, तो टर्म डिपॉजिट की बजाय फिक्स्ड डिपॉजिट में डिपॉजिटर को अधिक ब्याज दर के साथ अधिक रकम मिलती है क्योंकि इसकी अवधि लंबी होती है।
टर्म डिपॉजिट के लिए क्या करें
आप कम से कम राशि, जैसे 100 या 200 रुपयों के साथ भी टर्म डिपॉजिट खोल सकती हैं, क्योंकि टर्म डिपॉजिट में इंवेस्टमेंट के लिए बैंक या फाइनेंशियल संस्थानों ने कोई राशि तय नहीं कर रखी है। हां, आप यदि ज्यादा ब्याज दर चाहती हैं, तो इसके लिए आपको लंबी इंवेस्टमेंट अवधि का विकल्प चुनना होगा। और इस बात से सहमत होना होगा कि आप निश्चित समय से पहले अपने रूपये नहीं निकालेंगी। हालांकि टर्म डिपॉजिट के अंतर्गत इंवेस्ट करते समय आपको इस बात का भी ख्याल रखना होगा कि टर्म डिपॉजिट पर मुद्रा स्फीति अर्थात महंगाई का कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। उदाहरण के लिए अगर टर्म डिपॉजिट की दर 4 प्रतिशत है और महंगाई की दर 5 प्रतिशत है, तब भी डिपॉजिटर के नुकसान की भरपाई बैंक या कोई भी फाइनेंशियल संस्थान नहीं करती हैं। ऐसे में आपको इस बात का खास ख्याल रखना होगा कि बाजार नीतियों से जुड़े होने के बावजूद बैंकिंग की ये सुविधा शेयर बाजार और वहां मिलनेवाली सुविधाओं से पूरी तरह भिन्न हैं।